एआई जरूरी, लेकिन फैसले दिमाग से ही नहीं दिल से भी होते हैं : मिश्रा

न्याय व्यवस्था में वैकल्पिक वाद निस्तारण व्यवस्था और तकनीक जरूरी है

एआई जरूरी, लेकिन फैसले दिमाग से ही नहीं दिल से भी होते हैं : मिश्रा

न्याय व्यवस्था में आर्टिफिशल इंटेलीजेंसी जरूरी है, लेकिन सिर्फ एआई से न्याय नहीं मिल सकता, क्योंकि कई बार फैसले दिमाग से ही नहीं दिल से भी दिए जाते हैं। 

जयपुर। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश प्रशांत कुमार मिश्रा ने कहा कि वर्तमान परिपेक्ष्य में न्याय व्यवस्था में वैकल्पिक वाद निस्तारण व्यवस्था और तकनीक जरूरी है। तकनीक के चलते लोगों को भौगोलिक बाध्यताओं के बिना कम लागत में न्याय मिल रहा है। जस्टिस मिश्रा राजस्थान हाईकोर्ट की प्लेटिनम जुबली को लेकर आयोजित समारोह की कड़ी में हाईकोर्ट बार एसोसिएशन की ओर से एडीआर में तकनीक-भविष्य में नवाचार और चुनौतियां विषय पर हुए समारोह में संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि न्याय व्यवस्था में आर्टिफिशल इंटेलीजेंसी जरूरी है, लेकिन सिर्फ एआई से न्याय नहीं मिल सकता, क्योंकि कई बार फैसले दिमाग से ही नहीं दिल से भी दिए जाते हैं। 

अमीर व्यक्ति की चोरी और जीवन जीने के लिए की गई चोरी में अन्तर
जस्टिस मिश्रा ने कहा कि एआई तकनीक न्याय दिलाने में सहायक हो सकती है, लेकिन यह मानव मस्तिष्क का स्थान नहीं ले सकती। मशीन सिर्फ अपनी फाइंडिंग दे सकती है, लेकिन हर फाइंडिंग जजमेंट नहीं होता। एक अमीर व्यक्ति की ओर से की गई चोरी और एक गरीब व्यक्ति की ओर से जीवन जीने के लिए की गई चोरी को एआई एक तरह से ही देखेगी। यदि तकनीक का उचित उपयोग नहीं किया गया तो यह अर्श से फर्श पर भी ला सकती है। वैकल्पिक वाद निस्तारण में वकील की भूमिका से भी इनकार नहीं किया जा सकता। 

निचली अदालतों में 4 करोड़ मामले फैसलों के इंतजार में 
हाईकोर्ट के सीजे एमएम श्रीवास्तव ने कहा कि आज निचली अदालतों में करीब चार करोड़ और हाईकोर्ट ने 65 लाख मामले लंबित हैं। बिना गुणवत्ता कम किए इनका जल्दी निस्तारण करना एक चुनौती है। अब न्यायिक प्रक्रिया में तकनीक का उपयोग कर मुकदमों का निस्तारण किया जा रहा है और ई-कोर्ट इनका उदाहरण है। हमने कोविड में तकनीक की महत्ता देखी है। आॅनलाइन लोक अदालतों के जरिए हमने बड़ी संख्या में मुकदमें तय किए हैं। वैकल्पिक वाद निस्तारण की व्यवस्था न्याय प्रणाली में गेम चेंजर की भूमिका निभाएगी। हाईकोर्ट के सीजे एमएम श्रीवास्तव ने कहा कि आज निचली अदालतों में करीब चार करोड़ और हाईकोर्ट ने 65 लाख मामले लंबित हैं। बिना गुणवत्ता कम किए इनका जल्दी निस्तारण करना एक चुनौती है। अब न्यायिक प्रक्रिया में तकनीक का उपयोग कर मुकदमों का निस्तारण किया जा रहा है और ई-कोर्ट इनका उदाहरण है। हमने कोविड में तकनीक की महत्ता देखी है। आॅनलाइन लोक अदालतों के जरिए हमने बड़ी संख्या में मुकदमें तय किए हैं। वैकल्पिक वाद निस्तारण की व्यवस्था न्याय प्रणाली में गेम चेंजर की भूमिका निभाएगी। हाईकोर्ट के सीजे एमएम श्रीवास्तव ने कहा कि आज निचली अदालतों में करीब चार करोड़ और हाईकोर्ट ने 65 लाख मामले लंबित हैं। बिना गुणवत्ता कम किए इनका जल्दी निस्तारण करना एक चुनौती है। अब न्यायिक प्रक्रिया में तकनीक का उपयोग कर मुकदमों का निस्तारण किया जा रहा है और ई-कोर्ट इनका उदाहरण है। हमने कोविड में तकनीक की महत्ता देखी है। आॅनलाइन लोक अदालतों के जरिए हमने बड़ी संख्या में मुकदमें तय किए हैं। वैकल्पिक वाद निस्तारण की व्यवस्था न्याय प्रणाली में गेम चेंजर की भूमिका निभाएगी। 

ऑनलाइन निस्तारण से कम लागत में न्याय
जस्टिस पंकज भंडारी ने कहा कि आॅनलाइन वाद निस्तारण से कम लागत में न्याय मिल रहा है। ई-कोर्ट से भी लोगों को न्याय मिल रहा है। इससे जुड़े कुछ कानूनों में भी संशोधन करने की जरूरत है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि एआई की सहायता तो ली जा सकती है, लेकिन इसके साथ ही मानव मस्तिष्क का उपयोग भी जरूरी है। एआई सेवक हो सकती है, मालिक नहीं। 

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