बेकाबू महंगाई

मध्यम वर्ग काफी चिंतित व परेशान है

बेकाबू महंगाई

महंगाई लगातार बढ़ रही है और देश का आम आदमी और मध्यम वर्ग काफी चिंतित व परेशान है। सरकारी आंकड़े के अनुसार थोक महंगाई बढ़कर 15.8 फीसदी पर पहुंच गई, जो तीन दशकों में सर्वाधिक है।

महंगाई लगातार बढ़ रही है और देश का आम आदमी और मध्यम वर्ग काफी चिंतित व परेशान है। सरकारी आंकड़े के अनुसार थोक महंगाई बढ़कर 15.8 फीसदी पर पहुंच गई, जो तीन दशकों में सर्वाधिक है। खुदरा मूल्य सूचकांक 7.79 प्रतिशत पर है, जो सरकारी आंकड़ा है, जबकि वास्तविक कुछ और ही है। काफी समय तक रिजर्व बैंक ने अपनी ब्याज दरों में इसलिए कोई बदलाव नहीं किया ताकि बाजार में पैसे का प्रवाह कुछ बढ़े। मगर ऐसा नहीं हुआ तो उसे ब्याज दरों में परिवर्तन करना पड़ा। उसने रेपो दरों में 40 आधार अंक की बढ़ोतरी कर दी। रिजर्व बैंक का मानना है कि महंगाई अभी और बढ़ेगी। यदि ऐसा है, तो रिजर्व बैंक को कुछ और उपाय करने की जरूरत है, लेकिन बैंक अकेला महंगाई से राहत नहीं दिला सकता। सरकार को भी कुछ आवश्यक कदम उठाने होंगे। सरकारी आंकड़े बता रहे हैं कि उत्तर प्रदेश, झारखण्ड में महंगाई दर राष्ट्रीय महंगाई दर से ज्यादा है, जबकि बिहार में महंगाई दर राष्ट्रीय औसत से कम है। मध्यप्रदेश में महंगाई दर सर्वाधिक है, तो दिल्ली में महंगाई अपेक्षाकृत कम है। सवाल है कि राज्यों के बीच महंगाई दर में यह अंतर क्यों दिख रहा है? क्या कुछ राज्य अपने लोगों को राहतें बांट रहे है। यदि राज्य राहत बांट रहे हैं, तो केन्द्र सरकार राहत भरे कदम उठाने से क्यों हिचकिया रही है। रसोई गैस की कीमतें बढ़ रही हैं। पेट्रोल-डीजल की कीमतों से भी लोग खासा परेशान हैं। ईंधन की बढ़ती कीमतों से ही महंगाई बढ़ रही है।

माल ढुलाई महंगी होने से रोजमर्रा की वस्तुएं उपभोक्ता तक पहुंचते-पहुंचते महंगी हो जाती है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री मोदी ने राज्य सरकारों के मुख्यमंत्रियों से अपील की थी कि वैट में कटौती करें ताकि लोगों को कुछ राहत मिल सकें। विडंबना ही है कि केन्द्र सरकार स्वयं कई सालों से तेल पर ऊंचा उत्पादन शुल्क वसूल कर रही है। इस वक्त पेट्रोल पर करीब 26 रुपए उत्पादन शुल्क वसूला जा रहा है। यह सही है अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत बढ़ी हुई है, जिसका असर हमारे यहां पड़ रहा है। लेकिन जब महंगाई बेकाबू हो रही है, तो फिर केन्द्र सरकार कोई कदम क्यों नहीं उठा रही है। लोग कर्ज लेकर व बचत की राशि से काम चला रहे हैं। गुजारा चलाने के लिए लोगों के पास पर्याप्त नकद राशि नहीं है, तो काफी लोग बेरोजगार हैं।

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