
गर्मी के बीच बाढ़
गर्मी पड़ रही है। वैसी पिछले कई सालों में नहीं पड़ी। देश का बड़ा हिस्सा भीषण गर्मी का कहर झेल रहा है, तो दूसरी तरफ पूर्वोत्तर के असम में मूसलधार बारिश से आई भीषण बाढ़ प्रकृति की भीषणता बताती है।
गर्मी पड़ रही है। वैसी पिछले कई सालों में नहीं पड़ी। देश का बड़ा हिस्सा भीषण गर्मी का कहर झेल रहा है, तो दूसरी तरफ पूर्वोत्तर के असम में मूसलधार बारिश से आई भीषण बाढ़ प्रकृति की भीषणता बताती है। असम के अलावा कर्नाटक में भी भारी बारिश ने तबाही मचाई है। बंगलुरु शहर के हिस्सों में जल भराव ने संकट खड़ा कर दिया। पूर्वोत्तर के त्रिपुरा मिजोरम और मणिपुर में भारी बारिश और भूस्खलन से सड़क और रेल सम्पर्क टूट गया है। असम के कई हिस्सों में भू-स्खलन से भारी तबाही हुई है। प्रदेश की कई नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही है। आठ लोगों की मौत हो गई है, तो पांच लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हुए हैं। बढ़ता तापमान और अतिवृष्टि भले ही जलवायु परिवर्तन के अलग-अलग स्वरूप हों, लेकिन विकास के बदलते पैमाने ने दोनों ही क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन को घनीभूत करने का काम किया है। उत्तर भारत अगर अतिशय शहरीकरण और उससे जुड़े दुष्प्रभावों का नतीजा भुगत रहा है, तो असम में विकास कार्य में स्थानीय परम्परा की अनदेखी करने तथा ब्रह्मपुत्र के किनारे के दलदली इलाकों में हुए निर्माण कार्यों को बाढ़ के घनीभूत होने का कारण बताया जा रहा है।
हर बार की तरह राहत कार्य तो किया जा रहा है, लेकिन बाढ़ के खतरे को कम करने के उपायों पर काम नहीं किया जा रहा। मानसून में कई क्षेत्रों में हर साल बाढ़ भारी तबाही होती है। क्षति भी होती है। ऐसे ही उत्तरी भारत में गर्मी कहर शह रही है, लू के थपेड़े लोगों को सता रही हैं। तापमान 45 डिग्री और उससे ऊपर जा रहा है। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान के कई इलाकों में तापमान 48 से 49 डिग्री तक रिकार्ड किया गया है। हालात के मद्देनजर पर्यावरण विशेषज्ञ अब 50 डिग्री तापमान में रहने की हिदायत दे रहे हैं। लंबे समय से लू चलने से फसलों का नुकसान हो रहा है, जल संकट बढ़ रहा है। जून में मानसून आने से पहले तक बड़ी आबादी को राहत मिलने की उम्मीद नहीं है। मौसम में आ चुके भीषण बदलाव को सामान्य मानकर नहीं टाला जा सकता है। यह भविष्य में आने वाले खतरे की चेतावनी है।
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