दुष्कर्म के बाद हत्या से जुड़े मामले में पुलिस से हुआ गंभीर अपराध
एक नाबालिग को मामले का अभियुक्त बना दिया
झालावाड़ में नाबालिग से दुष्कर्म और अप्राकृतिक कृत्य के बाद हत्या से जुड़े मामले में पुलिस से गंभीर अपराध हो गया।
जयपुर। झालावाड़ में नाबालिग से दुष्कर्म और अप्राकृतिक कृत्य के बाद हत्या से जुड़े मामले में पुलिस से गंभीर अपराध हो गया। पुलिस ने न सिर्फ एक नाबालिग को मामले का अभियुक्त बना दिया, बल्कि कथित अनुसंधान के चलते उसे फांसी तक पहुंचा दिया। यदि उसे फांसी दे दी जाती और उसके निर्दोष होने का खुलासा बाद में होता, तो संबंधित पुलिस वालों और गवाहों को भी फांसी या उम्रकैद हो सकती थी।
इस तरह निकला निर्दोष
झालावाड़ के कामखेड़ा थाना इलाके में सात साल की बच्ची से बलात्कार और अप्राकृतिक कृत्य के बाद हत्या की वारदात हुई थी। पुलिस ने मामले में नाबालिग को गिरफ्तार करते हुए हादसे के 9 दिन में ही कोर्ट में आरोप-पत्र पेश कर दिया। वहीं पॉक्सो कोर्ट ने भी आरोपी को अन्य अपराधों के अलावा हत्या के आरोप में फांसी की सजा सुना दी। मामला हाईकोर्ट में आने पर पूर्व में अदालत ने फांसी को उम्रकैद में बदला था। इस पर राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को प्रकरण वापस करते हुए फांसी या उम्रकैद पर फैसला लेने का निर्देश दिया था। हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए कहा कि हम भारी हृदय और न्याय की उम्मीद के साथ ऐसे जुर्म के लिए आरोपी को उम्रकैद दे रहे हैं, जो किसी अन्य ने किया था। हाईकोर्ट के न्यायाधीशों ने मामले की जांच कर एक बड़ा अन्याय होने से रोका।
धारा 194 और 195 नहीं जानती पुलिस
भारतीय दंड संहिता की धारा 194 में मृत्यु दंड से दंडनीय अपराध के लिए दोषसिद्धि कराने के आशय से मिथ्या साक्ष्य देना या बनाने के संबंध में प्रावधान किया गया है। इस धारा के तहत प्रावधान है कि मृत्युदंड से दंडित अपराध के लिए किसी व्यक्ति को दोषसिद्ध कराने के आशय से झूठा साक्ष्य देगा, उसे आजीवन कारावास तक से दंडित किया जा सकता है। वहीं यदि ऐसे निर्दोष व्यक्ति को फांसी दे दी जाती है, तो इस प्रकरण में झूठा साक्ष्य देने वालों को भी मृत्युदंड तक की सजा दी जा सकती है। इसके अलावा धारा 195 के तहत ऐसे अपराध के लिए झूठा साक्ष्य दिया जाए, जिसमें आजीवन कारावास तक की सजा हो, तो संबंधित गवाही देने वाले व्यक्ति को समान दंड से ही दंडित किया जाएगा।
न्यायाधीशों ने सजगता न दिखाई होती तो जाने क्या होता, झालावाड़ जेल प्रशासन ने तो आरोपी को फांसी के लिए भेज दिया था जयपुर जेल
झालावाड़ कोर्ट की ओर से सजा सुनाने के बाद स्थानीय जिला कारागृह अधीक्षक ने अगले ही दिन आरोपी को फांसी के लिए जयपुर स्थित केन्द्रीय कारागृह में भेज दिया था। झालावाड़ जिला कारागृह अधीक्षक राजपाल सिंह की ओर से इस संबंध में कोटा केन्द्रीय कारागृह अधीक्षक को भेजे पत्र में इसका खुलासा हुआ है।
क्या कहते है कानून के जानकार
वैसे तो राजकीय कृत्य करते हुए कोई गलती होती है, तो सीआरपीसी की धारा 197 के तहत लोक सेवक को यह संरक्षण प्राप्त है कि बिना प्रदेश की स्वीकृति के बिना आपराधिक कार्रवाई शुरू नहीं की जाएगी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट कई मामलों में कह चुका है कि यह दुर्भावना से हुआ है, तो यह संरक्षण नहीं मिलेगा। झालावाड़ वाले मामले में भी संबंधित पुलिसकर्मियों को संरक्षण नहीं मिलेगा और उन पर अभियोजन चलाया जा सकता है।
- अजय कुमार जैन, अधिवक्ता
पुलिस को आनन-फानन में चालान पेश करने से बचना चाहिए। उनके अनुसंधान पर ही केस की ट्रायल चलती है। यदि किसी बेकसूर को फांसी हो जाए, तो इससे बड़ा कोई जुर्म नहीं।
- राजकुमार गुप्ता, अधिवक्ता
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