अभी मरीज नहीं लेकिन मंकी पॉक्स को लेकर कोटा सतर्क

बंदर, चूहे, गिलहरी से रहें सतर्क, संक्रामक रोग है मंकी पॉक्स, जांच के लिए कोटा से भी भेजे जा रहे सैंपल,स्वास्थ्य मंत्रालय जुटा गाइड लाइन तैयार करने में , रखनी होगी सावधानी : छोटे बच्चों में खतरा ज्यादा, छुआछूत की बीमारी होने से खतरा ज्यादा

अभी मरीज नहीं लेकिन मंकी पॉक्स को लेकर कोटा सतर्क

विश्व के 11 देशों में दस्तक दे चुकी मंकी पॉक्स बीमारी को लेकर स्वास्थ्य मंत्रालय गाइड लाइन जारी करने में जुट गया है। इसके लिए कोटा से भी सैम्पल भेजे जा रहे हैं।

 कोटा। विश्व के 11 देशों में दस्तक दे चुकी मंकी पॉक्स बीमारी को लेकर स्वास्थ्य मंत्रालय गाइड लाइन जारी करने में जुट गया है। इसके लिए कोटा से भी सैम्पल भेजे जा रहे हैं। अमेरिका में 18 मई को मंकीपॉक्स का पहला केस मिलने के बाद अब बेल्जियम, फ्रांस, इटली और आॅस्ट्रेलिया में भी इसके मामले सामने आए हैं। यानी, अब तक यह बीमारी कुल11 देशों में फैल चुकी है, जिसके चलते विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की टीम भी एक्शन में आ गई है। हालांकि भारत में अभी इस बीमारी का एक भी केस नहीं आया लेकिन एहतियात के तौर पर इसको लेकर अभी से सावधानियां बरतना शुरू कर दिया है। विदेशों से आने वाली अंतरराष्टÑीय फ्लाइट के हर यात्री की जांच की जा रही है।   जिससे की यह संक्रमण भारत में नहीं फैले।  स्वास्थ मंत्रालय की ओर से इस बीमारी को लेकर लोगों के लिए भी गाइड लाइन तैयार की जा रही है। सरकार की ओर से हाल ही में फ्रांस, इटली, अमेरिका, बेल्जियम इटली, आॅस्ट्रेलिया की यात्रा कर आए व्यक्तिों पर भी नजर रखी जा रही है। मंकी पॉक्स को लेकर कोटा से भी सैंपल भेजे हैं जिससे पता चल सके कि यहां तो इसके मरीज नहीं है।

डब्ल्यूएचओ आया एक्शन मोड में
मंकीपॉक्स के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए डब्ल्यूएचओ ने भी अपनी वेबसाइट पर इससे जुड़ी सारी जानकारी को अपडेट किया है। इसके साथ ही एजेंसी प्रभावित देशों के साथ मिलकर संक्रमित लोगों की जांच भी कर रही है। ब्रिटेन में यह बीमारी समलैंगिक पुरुषों में सेक्शुअल कॉन्टैक्ट के जरिए फैली या नहीं, इसकी जांच भी जारी है। संभावित मरीजों की पहचान के लिए कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग भी की जा रही है।

मंकी पॉक्स के दो स्ट्रेंन चल रहे
मेडिकल कॉलेज प्राचार्य विजय सरदाना ने बताया कि डब्लयूएचओं के अनुसार  मंकीपॉक्स एक दुर्लभ बीमारी है, जिसका संक्रमण कुछ मामलों में गंभीर हो सकता है। इस वायरस की दो स्ट्रेंन हैं- पहली कांगो स्ट्रेन और दूसरी पश्चिम अफ्रीकी स्ट्रेन। दोनों ही 5 साल से छोटे बच्चों को अपना शिकार बनाती हैं। कांगो स्ट्रेन की मृत्यु दर 10 प्रतिशत और पश्चिम अफ्रीकी स्ट्रेन की मृत्यु दर एक से दो फीसदी  है। ब्रिटेन में पश्चिम अफ्रीकी स्ट्रेन की पुष्टि हुई है।

चेचक की तरह होता है मंकीपॉक्स
टीकाकरण व जांच प्रभारी डॉ. अभिमुन्य शर्मा ने बताया कि यह एक वायरल इन्फेक्शन है जो पहली बार 1958 में कैद किए गए बंदर में पाया गया था। 1970 में पहली बार इंसान में इसके संक्रमण के पुष्टि हुई थी। यह ज्यादातर मध्य और पश्चिम अफ्रीकी देशों में पाया जाता है। 2017 में नाइजीरिया में मंकीपॉक्स का सबसे बड़ा आउट ब्रेक हुआ था, जिसके 75फीसदी मरीज पुरुष थे। मंकीपॉक्स का वायरस मरीज के घाव से निकलकर आंख, नाक और मुंह के जरिए आपके शरीर में प्रवेश कर सकता है। ब्रिटेन में इसका पहला मरीज 7 मई को मिला था। फिलहाल यहां मरीजों की कुल संख्या 9 है। वहीं, स्पेन में 7 और पुर्तगाल में 5 मरीजों की पुष्टि हुई है। अमेरिका, इटली, स्वीडन, फ्रांस, जर्मनी और आॅस्ट्रेलिया में मंकी पॉक्स के 1-1 मामले सामने आए हैं। साथ ही कनाडा में 13 संदिग्ध मरीजों की जांच की जा रही है। बेल्जियम में शुक्रवार को 2 मामलों की पुष्टि हुई है।

इन जानवरों से फैलता है मंकी पॉक्स
एक्सपर्ट्स का मानना है कि मंकी पॉक्स संक्रमित व्यक्ति के करीब जाने से फैलता है। यह वायरस मरीज के घाव से निकलकर आंख, नाक और मुंह के जरिए शरीर में प्रवेश करता है। यह संक्रमित बंदर, कुत्ते और गिलहरी जैसे जानवरों या मरीज के संपर्क में आए बिस्तर और कपड़ों से भी फैल सकता है। मरीज 7 से 21 दिन तक मंकी पॉक्स से जूझ सकता है।

छुआछूत की बीमारी है मंकीपॉक्स सावधानी जरूरी
यह वायरस मरीज के घाव से निकलकर आंख, नाक और मुंह के जरिए शरीर में प्रवेश करता है। इसके अलावा बंदर, चूहे, गिलहरी जैसे जानवरों के काटने से या उनके खून और बॉडी फ्लुड्स को छूने से भी मंकीपॉक्स फैल सकता है। ठीक से मांस पका कर नहीं खाने या संक्रमित जानवर का मांस खाने से भी इस बीमारी की चपेट में आ सकते हैं।

वैज्ञानिक ये बता रहे वजह
डब्ल्यूएचओं के अनुसार कोरोना महामारी के कारण बहुत समय तक इंटरनेशनल ट्रैवलिंग बंद थी। अब एकदम से पाबंदियां हटने के बाद लोगों का अफ्रीकी देशों में आना-जाना हो रहा है। शायद इसलिए ही मंकीपॉक्स के मामले सामने आ रहे हैं। ब्रिटेन में यह बीमारी समलैंगिक पुरुषों में सेक्शुअल कॉन्टैक्ट के जरिए फैली या नहीं, इसकी जांच भी जारी है। ब्रिटेन में अब तक मिले मंकी पॉक्स के ज्यादातर मामलों में मरीज वे पुरुष हैं, जो खुद को गे या बायसेक्शुअल आइडेंटिफाई करते हैं। अभी तक मंकीपॉक्स को यौन संक्रामक बीमारी नहीं माना गया है, लेकिन ऐसा हो सकता है कि समलैंगिकों में यह सेक्शुअल कॉन्टैक्ट से फैल रही हो। यह देखते हुए डब्ल्यूएचओ ने समलैंगिक पुरुषों को आगाह भी किया है।

ये लक्षण दिखाई दें तो तुरंत कराएं जांच
डब्ल्यूएचओे के अनुसार, मंकीपॉक्स के लक्षण संक्रमण के 5 वें दिन से 21वें दिन तक आ सकते हैं। शुरुआती लक्षण फ्लू जैसे होते हैं। इनमें बुखार, सिर दर्द, मांसपेशियों में दर्द, कमर दर्द, कंपकंपी छूटना, थकान और सूजी हुई लिम्फ नोड्स शामिल हैं। इसके बाद चेहरे पर दाने उभरने लगते हैं, जो शरीर के दूसरे हिस्सों में भी फैल जाते हैं। संक्रमण के दौरान यह दाने कई बदलावों से गुजरते हैं और आखिर में चेचक की तरह ही पपड़ी बनकर गिर जाते हैं।

फिलहाल भारत खतरे से बाहर
डॉ. विजय सरदाना ने बताया कि अब तक भारत में मंकी पॉक्स का एक भी संदिग्ध मरीज नहीं है। इसलिए हमें इसका ज्यादा खतरा नहीं है। हालांकि सावधानी बरतने की जरूरत है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि यूरोप और नॉर्थ अमेरिका में मंकी पॉक्स के मामले तेजी से कैसे बढ़े, इसकी जानकारी मिलने के बाद ही वो कुछ कह पाएंगे।

इनका कहना है...
मंकी पॉक्स अभी भारत में नहीं आया है लेकिन इसको लेकर हर प्रकार से सावधानी की जरूरी है। स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से इसको लेकर गाइड लाइन तैयार कर जारी होने वाली है। विदेशों से यात्रा करके आए लोगों को अभी स्वास्थ्य को लेकर पूरी सावधानी बरतने की जरुरत है। कोई भी लक्षण दिखाई देने पर तुरंत जांच कराएं। कोटा में इस बीमारी नहीं फैले इसके लिए यहां के सैंपल जांच के लिए भेजे है।
- डॉ. विजय सरदाना, प्राचार्य मेडिकल कॉलेज

मंकी पॉक्स को लेकर वैक्सीन व दवाएं बाजार में उपलब्ध है। चेचक में काम आने वाली वैक्सीन भी इस बीमारी में 85 फीसदी तक कारगार साबित हुई है।
- डॉ. अभिमन्यु शर्मा, टीकाकरण व जांच प्रभारी

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