चेचक की वैक्सीन मंकी पॉक्स के लिए भी कारगर

वैक्सीन 18 साल से ज्यादा उम्र के लोगों के लिए होगी इस्तेमाल, बच्चों में मंकी पॉक्स का ज्यादा खतरा, बच्चों लिए अभी नहीं है वैक्सीन

चेचक की वैक्सीन मंकी पॉक्स के लिए भी कारगर

भारत में अभी मंकी पॉक्स मरीज नहीं मिले लेकिन सरकार इस बीमारी को लेकर नई गाइड लाइन तैयार कर रही है।

कोटा। कोरोना से पीछा छूटा नहीं कि मंकी पॉक्स नाम की बीमारी पैर पसारने लगी है। अब तक 11 से अधिक देशों में इसके मरीज मिल चुके है। भारत में अभी इसके मरीज नहीं मिले लेकिन सरकार इस बीमारी को लेकर नई गाइड लाइन तैयार कर रही है। इस बीमारी में बच्चों को सबसे ज्यादा खतरा है कारण कि अभी तक बच्चों के लिए वैक्सीन नहीं है। इसलिए सावधानी ज्यादा जरूरी है। कोटा के डॉक्टरों का कहना है कि मंकी पॉक्स एक छुआछूत की बीमारी है। इसमें सावधानी रखना जरूरी है। वर्ल्ड हेल्थ सिक्योरिटी एजेंसी डब्ल्यूएचओ का कहना है कि अब तक11 लोगों में इसका संक्रमण पाया गया है। सीडीसी के  अनुसार चेचक की वैक्सीन भी मंकी पॉक्स के संक्रमण पर असरदार साबित होती है। इस दुर्लभ बीमारी से बचने के लिए अमेरिका के फूड एंड ड्रग एसोसिएशन एफडीए ने 2019 में जिनीओस  नाम की वैक्सीन को मंजूरी दी थी। इसे यूरोपियन मेडिसिन एजेंसी ने 2013 में ही अप्रूव कर दिया था। हालांकि, वैक्सीन को 18 साल से ज्यादा उम्र के लोगों पर ही इस्तेमाल किया जा सकता है। ऐसे में बच्चों का विशेष ध्यान रखने की डॉक्टर सलाह दे रहे है।

मंकी पॉक्स बीमारी ये दिखाई दे तो हो जाए सावधान
मंकी पॉक्स में चेहरे पर एक तरह के दाने उभरने लगते हैं, जो शरीर के दूसरे हिस्सों में भी फैल सकते हैं। मंकी पॉक्स में चेहरे पर एक तरह के दाने उभरने लगते हैं, जो शरीर के दूसरे हिस्सों में भी फैल सकते हैं। डब्ल्यूएचओं के मुताबिक, मंकी पॉक्स के शुरुआती लक्षणों में बुखार, सिर दर्द, मांसपेशियों में दर्द, कमर दर्द, कंपकंपी छूटना, थकान और सूजी हुई ग्रंथियां शामिल हैं। इसके बाद चेहरे पर एक तरह के दाने उभरने लगते हैं, जो शरीर के दूसरे हिस्सों में भी फैल सकते हैं। संक्रमण के दौरान यह दाने कई बदलावों से गुजरते हैं और आखिर में पपड़ी बनकर गिर जाते हैं।

ये रखनी होगी सावधानी
अभी 11 देशों में मंकी पॉक्स के मामले आए है।  जिसमें यूरोप, आॅस्ट्रेलिया और कनाडा से बिना किसी मौत के रिपोर्ट संक्रमित मिले है। भारत में मंकी पॉक्स की रिपोर्ट नहीं हुई है, लेकिन नए मामलों के साथ विभिन्न देशों से पता लगाया जा रहा है कि भारत में इस बीमारी के होने की संभावना है इंकार नहीं किया जा सकता। दुनिया भर में जो मामले सामने आए हैं, वे दोनों के कारण हैं स्थानीय संचरण और अफ्रीकी देशों की यात्रा के कारण भी हो सकता है।  सर्तकता के  रूप में एनसीडीसी, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने कई सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यों की पहचान की है । भारत से संदिग्ध मामलों की रिपोर्ट होने की स्थिति के अनुसार कार्र्य किया जाएगा। पिछले 21 दिनों में किसी ऐसे देश की यात्रा की हो या जिसने हाल ही विदेश की यात्रा की हो मंकीपॉक्स के पुष्ट  या संदिग्ध मामले वाले देश से लौटे लोगों से संपर्क में सावधानी रखनी होगी।

इनका कहना
सरकार की ओर से मंकी पॉक्स को लेकर गाइड लाइन तैयार की जा रही है। अभी सावधानी रखने की आवश्यकता है।  मंकी पॉक्स की वैक्सीन है। विदेश यात्रा कर आए लोगों को अपने स्वास्थ्य की जांच करा लेनी चाहिए।
- डॉ. विजय सरदाना, प्राचार्य मेडिकल कॉलेज

चेचक वायरस परिवार का सदस्य मंकी पॉक्स
मंकी पॉक्स का वायरस स्मॉल पॉक्स यानी चेचक के वायरस के परिवार का ही सदस्य है। यह बीमारी मंकी पॉक्स वायरस के कारण होती है। यह इन्फेक्शन ज्यादा गंभीर नहीं है और इसके फैलने की दर भी काफी कम है। फिलहाल मंकी पॉक्स मध्य और पश्चिम अफ्रीकी देशों के कुछ इलाकों में पाया गया है। इसकी दो मुख्य स्ट्रेंस भी हैं- पश्चिम अफ्रीकी और मध्य अफ्रीकी। हालांकि भारत में इसका केस नहीं आया इसलिए चिंता नहीं है। बच्चों को चेचक के टीके लगे हुए लेकिन इस बीमारी से सावधान रहने की आवश्यकता भी है।
-डॉ. गोपी किशन शर्मा, उप अधीक्षक व शिशुरोग विशेषज्ञ

18 वर्ष के लिए वैक्सीन, बच्चों को बीमारी से बचाना जरूरी
यह बीमारी 1970 में पहली बार एक कैद किए गए बंदर में पाई गई थी, जिसके बाद यह 10 अफ्रीकी देशों में फैल गई थी। 2003 में पहली बार अमेरिका में इसके मामले सामने आए थे। 2017 में नाइजीरिया में मंकी पॉक्स का सबसे बड़ा आउटब्रेक हुआ था, जिसके 75 प्रतिशत मरीज पुरुष थे। ब्रिटेन में इसके मामले पहली बार 2018 में सामने आए थे। मंकी पॉक्स संक्रमित व्यक्ति के करीब जाने से फैलता है। यह वायरस मरीज के घाव से निकलकर आंख, नाक और मुंह के जरिए शरीर में प्रवेश करता है। यह संक्रमित बंदर, गिलहरी या मरीज के संपर्क में आए बिस्तर और कपड़ों से भी फैल सकता है। अभी 18 वर्ष से अधिक आयु के लिए जिनीओस  नाम की वैक्सीन बनी है।  हालांकि चेचक की वैक्सीन इसमें 85 प्रतिशत कारगर रही है। बच्चों का विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है। बच्चों के लिए वैक्सीन नहीं है।
- डॉ. अभिमन्यु शर्मा, टीकारण व जांच प्रभारी

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