राज-काज में जानें क्या है खास

मंसूबों पर फिरा पानी

राज-काज में जानें क्या है खास

असर तो असर ही होता है, कब किसको हो जाए, कोई पता नहीं। अब देखो ना, सूबे में दिनों दोनों दलों में जेनरेशन गैप का असर साफ-साफ दिख रहा है।

असर जेनरेशन गैप का
असर तो असर ही होता है, कब किसको हो जाए, कोई पता नहीं। अब देखो ना, सूबे में दिनों दोनों दलों में जेनरेशन गैप का असर साफ-साफ दिख रहा है। गैप भी इतना हो गया कि कुछ यूथ तो जोश में होश तक खो दिया। हाथ वाले भाई लोगों का जेनरेशन गैप तो अंधों तक को दिखाई देने लगा है। भगवा वालों का गैप भी जगजाहिर है। अब यूथ ब्रिगेड के भाई लोगों को कौन समझाए कि घर के बुजुर्गों के बिना बीनणी लाना, दिन में तारे देखने से कम नहीं है। अब इसको समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी हैं।

मंसूबों पर फिरा पानी
राजनीति का अखाड़ा बने खेल के मैदान में राज के दो रत्नों की जंग को लेकर सूबे में कई दिनों से बहस छिड़ी हुई है। उन दोनों के पॉलिटिकल गेम खेल को राज का काज करने वाले भी नहीं पचा पा रहे हैं। इंदिरा गांधी भवन में बने हाथ वालों के दफ्तर में आने हर कोई अपने हिसाब से इसके मायने निकाल रहा है। ठिकाने पर कई सालों से आ रहे गांधी टोपी वाले बुजुर्गवार की मानें, तो हाथ वाले कुछ भाइयों ने जोधपुर वाले अशोक भाई साहब को भी लपेटने की कोशिश की थी, लेकिन जादुई छड़ी ने उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया।

आकलन नफा नुकसान का
दोनों तरफ के तीन बड़े जातीय नेताओं के ऊवाच के बाद दोनों दलों में लाभ नुकसान का आकलन के लिए लालकिले की नगरी वाले विशेषज्ञों की मदद ली जा रही है। राज का काज करने वाले भी लंच केबिनों में अपने हिसाब से जोड़, बाकी, गुणा और भाग में लगे हैं। दोनों दलों के ठिकानेदार भी अपने-अपने हिसाब से गुणिया कर रहे हैं। विशेषज्ञों का तर्क है कि तीन बड़ी जातियों के हाथ से खिसकने का डर अब दोनों तरफ के लीडर्स को सता रहा है। किसी तीसरे ने पुचकार कर गले लगाया, तो वह फायदा उठा सकता है।

बढ़ रही है सूची
राज और काज करने वालों की बीच छत्तीस का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। जोधपुर वाले भाईसाहब तो खाई पाटने की जुगत में हैं, लेकिन उनके नवरत्न कुछ समझना ही नहीं चाहते। काज करने वाले कायदे कानूनों की दुहाई देकर सुशासन के नारे की याद दिलाते हैं, लेकिन रत्न हैं कि अपनी लाल आंखें दिखाकर अपने मनमाफिक काम पर मुहर लगाना चाहते हैं। अब देखो ना, राज के एक युवा रत्न को ऊपर वालों ने आंख के इशारे से समझा दिया, लेकिन उनके समझ में नहीं आई। गुजरे जमाने में माथुर आयोग के चक्कर लगा चुके अफसरों से अभी भी उम्मीद कर रहे हैं कि आंख बंद कर चिड़िया बिठा दें, चाहे दूध फट ही क्यूं ना जाए। ऐसे में नवरत्नों से पिण्ड छुड़ाने वालों की सूची लंबी होती जा रही है। वह अब तक साठ को पार कर चुकी है।

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एक जुमला यह भी
सूबे में एक बार फिर दोनों बड़े दलों में रिप्लेसमेंट की राजनीति ऊंचाई पर है। सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 और इंदिरा गांधी भवन के साथ ही राज का काज करने वालों के लंच क्लब में भी रिप्लेसमेंट की राजनीति चर्चा में है। काज करने वाले चटकारे ले रहे हैं कि भगवा में मैडम और हाथ में जादूगरजी के रिप्लेसमेंट के लिए पसीने तो खूब बहाए जा रहे हैं, लेकिन तोड़ किसी के पास नहीं है। दोनों तरफ वफादारों का भी टोटा नहीं है। और तो और हाथ वाले दोनों छुटभैयों ने भी एक-दूसरे के रिप्लेसमेंट के लिए रात दिन एक किए हुए हैं। रिप्लेसमेंट तो संभव नहीं है, लेकिन दोनों तरफ धड़ाबंदी जरूर हो गई है।
(यह लेखक के अपने विचार हैं)

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