कहने को घड़ियाल सेंचुरी, कोटा में न नाम न कोई काम

कोटा चंबल घड़ियाल सेंचुरी: इंसानी दखल व प्रदूषण से इलाका छोड़ने को मजबूर घड़ियाल, शहरी इलाके में एक भी नहीं, गांव में 40 से ज्यादा घड़ियाल

कहने को घड़ियाल सेंचुरी, कोटा में न नाम न कोई काम

चम्बल में धड़ल्ले से हो रहे अवैध खनन व लगातार बढ़ते जलीय प्रदूषण से घड़ियालों का अस्तिव खतरे में पड़ गया है। जवाहर सागर से कोटा बैराज व केशवरायपाटन तक के इलाके में एक भी घड़ियाल नहीं है।

कोटा। चम्बल में धड़ल्ले से हो रहे अवैध खनन व लगातार बढ़ते जलीय प्रदूषण से घड़ियालों का अस्तिव खतरे में पड़ गया है। जवाहर सागर से कोटा बैराज व केशवरायपाटन तक के इलाके में एक भी घड़ियाल नहीं है। वहीं, ग्रामीण इलाके के इटावा उपखंड में एकमात्र नेस्टिंग साइड गुड़ला है। यह गांव खातौली कस्बे से करीब 25 किमी दूर है। यहां 40 से 45 घड़ियालों की मौजूदगी है।

विशेषज्ञों के मुताबिक चंबल घड़ियाल अभयारण्य के दायरे में आने वाले इलाके (राणा प्रताप सागर से कोटा बैराज तक) एक भी घड़ियाल नहीं बचा। जबकि, 30 साल पहले यहां घड़ियाल हुआ करते थे। इसका सबसे बड़ा कारण अवैध खनन, अवैध मतस्याखेट, किनारों पर होने वाली पेटाकाश्त व नदी में गिरते नाले हैं। जिन पर समय रहते अंकुश नहीं लगा तो जिले की नेस्टिंग साइड पर पनप रहे घड़ियालों की प्रजाति लुप्त हो जाएगी।  वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के मुताबिक घड़ियाल अभयारण्य में किसी भी तरह का खनन नहीं किया जा सकता। जबकि, जिम्मेदारों की लापरवाही के चलते खननकर्ता हर दिन चंबल का सीना छलनी कर बजरी व पत्थर निकाल रहे हैं। 

बिखरा घरौंदा
वन्यजीव स्कॉलर तरुण नायर के मुताबिक घड़ियाल रेत में पनपते हैं लेकिन चम्बल में लगातार बजरी का अवैध खनन होने से न नदी बची है और न ही घड़ियालों की मेटिंग के लायक माहौल। जैसे-तैसे घड़ियालों ने अंडे दे भी दिए हो तो वह सुरक्षित नहीं बच पाते। खनन के दौरान होने वाला शोर-शराबे से प्रजनन में खलल पड़ता है, जिससे घड़ियाल अपना इलाका छोड़ने को मजबूर हो गए। 

कोटा की एकमात्र नेस्टिंग साइड है गुड़ला
चंबल नदी के विशेषज्ञ हरिमोहन मीणा बताते हैं, कोटा में चंबल-पार्वती नदी का संगम स्थल गुडला जिले का एक मात्र घड़ियाल नेस्टिंग साइट है। यहां अच्छी तादात में घड़ियाल देखे जा सकते हैं। वर्तमान में यहां 40 से 45 घड़ियाल हैं। एक मादा करीब 50 अंडे देती है लेकिन, बाढ़ व पानी के बहाव के कारण 2 प्रतिशत ही जिंदा बच पाते हैं।

ढाई साल पहले यहां चार घड़ियाल और 35 बच्चे थे अब एक भी नहीं
मंडावरा नाका के वनरक्षक राजकुमार शर्मा ने बताया कि वर्ष 2020 में बूढ़ादीत कस्बे का मोराना गांव नेस्टिंग के लिए चर्चा में रहा। यहां तीन मादा और एक नर घड़ियाल था। वातावरण अनुकूल होने पर कुछ ही महीनों में मेटिंग होने से 35 से ज्यादा बच्चे नदी में अटखेलियां करते नजर आए थे, जो पानी के तेज बहाव में बह गए। वर्तमान में यहां एक भी घड़ियाल मौजूद नहीं है। हालांकि, चंबल-कालीसिंध नदी के संगम स्थल इटावा के नोनेरा गांव में वर्ष 2022 की गणना में एक घड़ियाल नजर आया है।

ऐसे बस सकती है यहां घड़ियालों की बस्ती
राष्टÑीय चंबल अभयारण्य प्रशासन को सबसे पहले राणासागर बांध से कोटा बैराज तक के एरिए में घड़ियालों के लिए प्राकृतिक आवास चिन्हित करना चाहिए। सरवाइवल बजरी (विशेष मोटाई वाली रेत) चिन्हित स्थान पर बिछाकर अवैध मतस्य आखेट पर पूरी तरह रोक लगाएं। इसके बाद दो व्यस्क नर व मादा घड़ियालों को रेडियो ट्रांसमीटर लगाकर प्राकृतिक आवास में छोडेÞ। ट्रांसमीटर के जरिए इनकी गतिविधियों पर बराबर नजर रही जाए। यदि 2 माह तक ये घड़ियाल जोड़ा इस वातावरण में जीवित रह जाता है तो फिर एक-एक साल के बच्चे इनके पास छोड़े जाना चाहिए। इन प्रयासों के बाद यहां घड़ियालों की बस्ती बसाने की उम्मीद की जा सकती है। 
-डॉ. कृष्नेंद्र सिंह नामा, सहायक आचार्य एवं रिसर्च सुपरवाइजर वनस्पति विभाग एलजेबरा कॉलेज

चंबल को प्रदूषित होने से बचाना जरूरी
घड़ियाल अभयारण्य की जद में आने वाला चंबल का शहरी इलाका प्रदूषित हो चुका है। नदी में 22 तरह के नालों का गंदा पानी कैमिकल के साथ गिर रहा है। जिससे जलीय वन्यजीव अकाल मौत का शिकार हो रहे हैं। जनप्रतिनिधियों व जिम्मेदार अफसर मूक दर्शक बने हुए हैं, इनकी तरफ से चंबल शुद्धिकरण को लेकर कोई प्रयास नहीं किया गया। घड़ियालों को बसाने के लिए चंबल की शुद्धी जरूरी है।
-बाबूलाल जाजू, प्रदेश प्रभारी, पीपुल फॉर एनिमल्स

गुडला में हैं 40 से 45 घड़ियाल
चंबल सेंचुरी में आने वाले शहरी इलाकों में एक भी घड़ियाल नहीं है, जबकि ग्रामीण इलाके के खातौली कस्बे से 25 किमी दूर गुडला में इनकी संख्या 40 से 45 है। अप स्टीम का एरिया पथरीला होने से ये टकराकर अकाल मौत का शिकार हो जाते है। चंबल-पार्वती नदी का संगम स्थल गुड़ला कोटा की एकमात्र नेस्टिंग साइड है।
-हरिमोहन मीणा, चंबल नदी विशेषज्ञ

मानवीय दखल सबसे बड़ा कारण
 घड़ियाल सेंसटीव जीव होता है। चंबल के आसपास खेती करने वाले लोग विभिन्न तरह के रसायनों का उपयोग करते हैं, जो नदी में मिलने से पानी दूषित होता है, जिसके कारण जलीय जीव जीवित नहीं रह पाते। मानवीय गतिविधियां अधिक होने से शोर-शराबे के कारण ये अपनी जगह बदल है।
अनिल यादव, एसीएफ, चंबल अभयारण्य

घड़ियालों को बसाने के किए जाएं इंतजाम
करीब 25 साल पहले वन्यजीव विभाग ने हाड़ौती नेच्यूरल सोसाइटी के सहयोग से चंबल गार्डन से 8-9 घड़ियालों को जवाहर सागर की कड़पका खाळ में शिफ्ट किया था। क्योंकि, यहां पानी का दबाव कम होने के साथ वातावरण भी इनके अनुकूल था लेकिन संरक्षण के अभाव में कुछ ही सालों बाद यह गायब हो गए। राष्टÑीय चंबल अभयारणय प्रशासन को घड़ियाल के कुछ अंडे लाकर इनक्यूबेटर में रखें और बच्चे निकलने के बाद इन्हें अभेड़ा व उम्मेदगंज के रियासतकालीन तालाब में छोड़ा जाए। साथ ही इनके पालन-पोषण के पुख्ता इंतजाम किए जाएं।
-एमएच जेदी, नेचर प्रमोटर

1970 के बाद तेजी से हुई गिरावट
1970 के बाद से धड़ियालों की संख्या में तेजी से गिरावट होने लगा। क्योंकि इनका नेच्यूरल आवास खत्म होने लगे। अवैध खनन व मतस्य आखेट के कारण इन्हें अपना घर छोड़ना पड़ा। यहां घड़ियालों की बस्ती फिर से बसाने के लिए विभाग को गाइड लाइन तैयार करनी चाहिए।
-डॉ. फातिमा सुल्ताना, विभागाध्यक्ष प्राणीशास्त्र जेडीबी कॉलेज

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