एमबीए कोर्स का हो गया बुरा हाल, लगातार घट रहा नामांकन

मैनेजमेंट और इंजीनियरिंग में घटी विद्यार्थियों की रुचि : आरटीयू से मिले वर्ष 2008 से 2021 तक के आंकड़ों में हुआ खुलासा

एमबीए कोर्स का हो गया बुरा हाल, लगातार घट रहा नामांकन

राजस्थान टेक्निकल यूनिवर्सिटी (आरटीयू) से जुड़े सरकारी व प्राइवेट कॉलेजों में एमबीए कोर्स का बुरा हाल है। प्रदेश के इंजीनियरिंग व मैनेजमेंट कॉलेजों से छात्र मैनेजर बनने को तैयार नहीं है। यही वजह है कि पिछले साल एमबीए कोर्स में छात्रों की बड़ी संख्या में बेरुखी सामने आई।

कोटा। राजस्थान टेक्निकल यूनिवर्सिटी (आरटीयू) से जुड़े सरकारी व प्राइवेट कॉलेजों में एमबीए कोर्स का बुरा हाल है। प्रदेश के इंजीनियरिंग व मैनेजमेंट कॉलेजों से छात्र मैनेजर बनने को तैयार नहीं है। यही वजह है कि पिछले साल एमबीए कोर्स में छात्रों की बड़ी संख्या में बेरुखी सामने आई। हालात यह है, रीप व आरमेट काउंसलिंग होने के बाद भी एमबीए में हजारों सीटें खाली रह गई। आरटीयू से जुड़े सभी सरकारी व निजी कॉलेज-यूनिवर्सिटियों में वर्ष 2008-09 में जहां 5 हजार 818 विद्यार्थियों का नामांकन था वहीं यह संख्या घटकर वर्ष 2020-21 में मात्र 1094 ही रह गई। इन 14 सालों में जहां एमबीए का ग्राफ लगातार गिरा वहीं बीटेक से भी बच्चों का मोह भंग हुआ है। इन वर्षों में 16 हजार से ज्यादा नामांकन घट गए हैं। इसके अलावा अन्य टेक्निकल कोर्सों का भी यही हाल है।

एक हजार से ज्यादा एमबीए की सीटें खाली
जानकार बताते हैं, राजस्थान इंजीनियरिंग प्रोसेज (रीप) व राजस्थान मैनेजमेंट एप्टीट्यूट टेस्ट (आरमेट) काउंसलिंग में पिछले साल भी एमबीए कोर्स में दाखिला लेने के लिए छात्रों ने रूचि नहीं दिखाई। प्रदेश के सरकारी व निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों में वर्ष 2021-22 में एमबीए की 2 हजार से अधिक सीटों पर महज 1 हजार सीट पर ही छात्रों ने दाखिला लिया। हालांकि अभी वर्ष 2022-23 के लिए आरटीयू में एडमिशन प्रोसेज शुरू नहीं किया गया है। जानकारों के मुताबिक इस बार शुरूआत से ही एमबीए कोर्स में छात्रों का बहुत कम रूझान नजर आ रहा है।

बीटेक का भी बुरा हाल 
मैनेजमेंट ही नहीं इंजीनियरिंग के भी बुरे हाल हैं। वर्ष 2008-09 में जहां 25 हजार 244 विद्यार्थियों का नामांकन था वहीं यह संख्या घटकर वर्ष 2020-21 में 8 हजार 988 रह गई। यानी इन वर्षों में 16 हजार 256 छात्र कम हो गए। नाम न छापने की शर्त पर बीटेक छात्रों ने बताया कि इस समस्या के पीछे आरटीयू प्रशासन की लेटलतीफी जिम्मेदार है। हम अभी तीसरे सेमेस्टर में हैं और अभी तक पहले सेमेस्टर का रिजल्ट घोषित ही नहीं किया। इसके अलावा र्प्याप्त प्लेसमेंट भी नहीं कराया जा रहा।

औंधे मुंंह गिरा बीटेक के प्रति रुझान
आरटीयू से मिले आंकड़ों के अनुसार शुरुआती 8 सालों में बीटेक स्टूडे्ंटस की पहली पसंद थी लेकिन आखिरी के 6 सालों में यह पसंद नापसंद में बदल गई। दरअसल, वर्ष 2008 से 2015 तक बीटेक में छात्रों का नामांकन तेजी से बढ़ा लेकिन 2016 से 21 तक विद्यार्थियों की संख्या अर्श से फर्श तक पहुंच गई।

अर्श से फर्श पर पहुंचा होटल मैनेजमेंट
होटल मैनेजमेंट की बात करें तो इसकी स्थिति सबसे बुरी है। आरटीयू से जुड़ा यह प्रदेश का पहला कॉलेज है जो भरतपुर जिले में है। वर्ष 2008 में 180 विद्यार्थियों का नामांकन था जो साल दर साल घटकर 2021 में 0 हो गया है। हालात यह हो गए कि इस कोर्स के लिए ढूंढने से भी बच्चे नहीं मिल रहे। जानकारों के अनुसार, इस कोर्स के विद्यार्थियों को अपेंडशिप, प्लेसमेंट, प्रैक्टिकल टैÑनिंग, लाइव सेशन नहीं मिल पाया। इंस्टीट्यूट बच्चों से मोटी फीस तो लेते हैं लेकिन कोर्स के अनुरूप सुविधाएं नहीं दे पाते।

एमटेक और एमसीए में तेजी से गिरा नामांकन
एमटेक में भी समय के साथ छात्रों का रूझान कम होता गया। आरटीयू को मिलाकर प्रदेश के 26 कॉलेजों में 1402 सीटों पर एमटेक कराया जा रहा है, जहां पिछले साल मात्र 444 छात्रों ने ही एडमिशन लिया। एज्युकेशन से जुड़े लोगों के अनुसार शिक्षा का व्यवसायीकरण होने से बच्चों को क्वालिटी कंटेंट नहीं मिल पा रहा। जिससे व्यवहारिक समझ नहीं बढ़ने और रोजगार नहीं मिलने से छात्रों का रुझान तेजी से घटा है। इधर, एमसीए मास्टर डिग्री की भी यही कहानी है, वर्ष 2008 में जहां 1068 छात्रों का नामांकन था जो 2009 से 2014 तक तेजी से बढ़ा। हालांकि इन 6 सालों में नामांकन की संख्या घटती-बढ़ती रही लेकिन वर्ष 2015 से यह आंकड़ा तेजी से गिरा और 2021 में 484 ही रह गया। हैरानी की बात यह है, कि एक भी सरकारी कॉलेज में एमसीए नहीं कराया जा रहा। आरटीयू से मान्यता प्राप्त 17 प्राइवेट कॉलेजों में 1170 सीटों पर यह कोर्स कराया जा रहा है। ऐसे में पिछले साल तक 686 सीटें खाली रह गई।

स्कोलर्स की संख्या बढ़ी
कॉलेज-यूनिवर्सिटियों में जितनी तेजी से डिग्री कोर्सज में नामांकन घटा उतनी ही रफ्तार से स्कोलर्स की संख्या भी बढ़ी। वर्ष 2009-10 में जहां पीएचडी में 2 नामांकन थे वहीं 2020-21 में यह आंकड़ा 35 तक पहुंच गया। हालांकि वर्ष 2017 -18 में सबसे ज्यादा 90 स्कोलर्स का नामांकन हुआ।

क्वालिटी कंटेंट की कमी
राजस्थान टेक्निकल यूनिवर्सिटी (आरटीयू) में एमबीए की 60 सीटें हैं, जो हमेशा फुल रहती है। हालांकि आरटीयू से जुड़े अन्य कॉलेजों में नामांकन घटा है। इसका सबसे बड़ा कारण क्वालिटी कंटेंट और पर्याप्त प्लेसमेंट की कमी है। वहीं, प्राइवेट कॉलेजों में फैकेल्टी  की सैलरी कम होती है, ऐसे में क्वालीफाई टीचर नहीं मिल पाते। जबकि, आरटीयू में अधिकतर प्रोफेसर आईआईटी क्वालिफाइड हैं। हमने च्वाइस बेस क्रेडिट सिस्टम लागू किया है। जिसके तहत छात्रों को फाइनेंस के साथ एचआर में भी स्पेशलाइजेशन करवाया जा रहा है। यह सिस्टम पूरे राजस्थान में सबसे पहले आरटीयू ने लगाया है।
-धीरज कुमार पवोलिया, डीन अकेडमिक अफेयर्स आरटीयू

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