आओ सभी मिलकर पेड़ लगाएं और बचाएं

लोग हरे वृक्षों को काट देते हैं

आओ सभी मिलकर पेड़ लगाएं और बचाएं

तपती दोपहर में किसी भी व्यक्ति को विश्रांति के लिए किसी सघन हरे वृक्ष की तलाश रहती है, चाहे वह पैदल, दोपहिया या चौपहिया वाहन पर सवार ही क्यों ना हो। हमें अपने और अपने वाहन को चिलचिलाती धूप और भयंकर गर्मी से राहत पाने के लिए एकमात्र सड़क किनारे लगे वृक्षों का ही सहारा होता है।

तपती दोपहर में किसी भी व्यक्ति को विश्रांति के लिए किसी सघन हरे वृक्ष की तलाश रहती है, चाहे वह पैदल, दोपहिया या चौपहिया वाहन पर सवार ही क्यों ना हो। हमें अपने और अपने वाहन को चिलचिलाती धूप और भयंकर गर्मी से राहत पाने के लिए एकमात्र सड़क किनारे लगे वृक्षों का ही सहारा होता है। इसलिए उनकी तलाश में लग जाते हैं। उस समय वृक्ष और उसकी छाया नहीं मिलने पर लोगों को कोसते हैं कि अंधाधुंध कटाई और पैसा कमाने के चक्कर में लोग हरे वृक्षों को काट देते हैं और मन में स्वयं पेड़ लगाने का संकल्प ले लेते हैं। वहां से निवृत हो जीवन के अन्य कार्यों में व्यस्त होते है, तो वह  मन के द्वंद को बिसरा देते हैं और उसके बाद इस पीड़ा की जब तक याद नहीं आती, जब तक दोबारा पेड़ की जरूरत नहीं हो। परिवार, मित्रों के साथ छुट्टियां बिताने या घूमने जाने के लिए क्यों हम सभी हरे-भरे वृक्षों से आच्छादित प्राकृतिक वातावरण में जाना पसंद करते हैं7 क्यों उस समय शहर से दूर प्रकृति के बीच जाना पसंद करते हैं। सुबह सड़कों की जगह पार्कों में क्यों घूमना पसंद करते हैं, क्यों मन बार-बार प्रकृति के बीच जाने के लिए लालायित रहता है, क्यों बालक, किशोर, युवा, प्रौढ़ प्रकृति में जाना चाहते हैं।

हम प्रयास तो करते है, लेकिन हम प्रकृति संरक्षण और वृक्षारोपण की चिंता नहीं करते।  चिंता है तो बड़ी- बड़ी गगन चुंबी इमारतों की। अगर ऐसा ही रहा, तो वो दिन दूर नहीं कि हमें ऊंची-ऊंची इमारतें तो खूब दिखेंगी, लेकिन हरे-भरे पेड़ और प्रकृति अवशेष के रूप में संग्रहालयों में ही नजर आएगी। जब हम आकड़ों को देखते हैं तो हमारी आंखें फटी रह जाती है। हम हमारी धरोहर खो रहे हैं। अभी यूएन की ताजा रिपोर्ट में जहां प्रति व्यक्ति वृक्षों की संख्या में कनाडा 8953 प्रति व्यक्ति वृक्षों के साथ श्रेष्ठ स्थान पर है। विश्व में 400 से अधिक वृक्ष प्रति व्यक्ति का औसत है। भारत में वर्तमान में केवल 28 वृक्ष प्रति व्यक्ति का आंकड़ा है, ये हमें सोचने को मजबूर कर रहा है कि गिरावट इस प्रकार जारी रही, तो वाकई वृक्ष तलाशने पर भी नहीं मिलेंगे। प्राण वायु या ऑ क्सीजन का हमारे जीवन में महत्व क्या है,यह कोविड काल ने भलीभांति परिचित करवा दिया है। उसके बावजूद आंकड़ा बढ़ने के स्थान पर लगातार कम हो रहा है। इतनी चेतावनियों के बाद भी हम इस ओर ध्यान क्यों नहीं दे पा रहे? सोचते रहने और ध्यान देने का समय जा चुका है, अब वक्त है एक्शन मोड पर पूर्ण सक्रियता से आगे बढ़ने का।  ताकि हम समय रहते परिस्थितियों को संभाल सकें। गुजरे कोरोना काल के दिन याद हैं जब हम एक-एक श्वास के लिए भटकते नजर आए थे।

उठ जाग मुसाफि र भोर भई अब रैन कहां जो सोवत है। स्थितियों ने इशारा कर दिया है बस आगे आने वाले इस खतरे को भांप कर जहां एक ओर केवल हम पौधे लगाने का आग्रह किया करते थे, अब उसे पालने की जिम्मेदारी भी उठानी होगी। आज पेड़ लगाने के आंकड़ों का काम जारी है, उसे हमें उसे धरातल पर लाना होगा। पेड़ लगाने से जिम्मेदारी पूर्ण नहीं होगी बल्कि उन्हें एक बालक की तरह पाल-पोस कर बड़ा करना होगा ताकि आने वाले समय में वह हमारी रक्षा कर सकें। हमारे यहां भारतीय संस्कृति में हमेशा रक्षा के लिए बहन-भाई को जिस प्रकार अपनी रक्षा के लिए रक्षा सूत्र बांधती है, उसी की भांति मानव द्वारा प्रकृति पूजा के साथ वृक्षों को भी रक्षा सूत्र बांधा जाता रहा है, ताकि विपरीत परिस्थितियों में वह हमारी रक्षा कर सकें।
भारतीय संस्कृति और परम्पराओं में हमने सदैव पृथ्वी को मां का दर्जा देकर पूजा-अर्चना की है, इसका एक ही कारण था हमारी प्रकृति पृथ्वी एक बालक के समान हमारा पोषण करती है, तो हमारा भी कर्तव्य बनता है कि हम एक पुत्र की भांति सदैव धरती माता का सम्मान और संरक्षण करे, लेकिन व्यक्तिगत स्वार्थों ने मनुष्य को इतना नीचे गिरा दिया कि उसके लिए पृथ्वी माता के संरक्षण को छोड़ उसी के दोहन में लग गए और यही कारण है कि अति दोहन की वजह से पर्यावरण के खिलाफ जाने से हमें अनेक प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ रहा है।

इसी खतरे को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस वर्ष 2022 के विश्व पर्यावरण दिवस की थीम केवल एक पृथ्वी के आधार पर प्रकृति के साथ सद्भाव में रहना पर ध्यान केंद्रित किया है। जब संयुक्त राष्ट्र संघ को ही यह महसूस हो गया कि पर्यावरण संरक्षण के लिए पृथ्वी के साथ सद्भाव में रहना होगा। हमें केवल एक पृथ्वी को सर्वमान्य मानते हुए ध्यान केंद्रित करना होगा। इसके  संरक्षण के लिए, तो आइए साथियों इस पर्यावरण दिवस पर अपनी धरती माता के संरक्षण के लिए कटिबद्ध हो जाएं, 135 करोड़ से अधिक संतानें मिलकर पृथ्वी माता के संरक्षण और श्रृंगार के लिए सजग हो जाएं। आओ सभी मिलकर पेड़ लगाएं। पेड़ों के संरक्षण के लिए बलशाली हों, आओ मिलकर पेड़ लगाएं, आओ मिलकर धरती मां को बचाएं।

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- रामदयाल सैन
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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