अस्पतालों में नई व्यवस्था : दवाओं का दर्द बन रहा अब नया मर्ज

बाहर से खरीदनी पड़ रही दवा , एक काउंटर से दूसरे काउंटर पर चक्कर काटना बन रहा मजबूरी

 अस्पतालों में नई व्यवस्था : दवाओं का दर्द बन रहा अब नया मर्ज

मरीज को अस्पताल में डॉक्टर से दिखाने से लेकर दवा लेने तक 5 से 6 घंटे लग रहे हैं। उस पर दवाएं नहीं मिलने से बाजार से दवा खरीदना मजबूरी बना हुआ है।

कोटा। संभाग के बड़े एमबीएस और जेकेलोन अस्पताल में अव्यवस्थाओं का दर्द तो मरीज पहले ही झेल रहे थे अब दवाओं का टोटा दोहरा दर्द दे रहा है। अस्पतालों में नये वित्त वर्ष शुरू होने के साथ ही दवाओं की सप्लाई गड़बड़ाने का सिलसिला  जारी है। जहां एक ओर  सरकार ने सरकारी अस्पतालों में मरीजों का इलाज नि:शुल्क  कर दिया है, वहीं दूसरी ओर अस्पताल के हालात ऐसे हैं कि सामान्य दवा भी मुख्यमंत्री नि:शुल्क दवा योजना के तहत मरीजों को नहीं मिल पा रही है।  ऐसे में अस्पतालों के बदतर हालात नि:शुल्क दवा की पोल खोल रहे है।  इससे मरीजों को काफी दिक्कत झेलनी पड़ रही है।

यूं जांची नवज्योति ने व्यवस्था
 संभाग के सबसे बड़े अस्पताल में आप इलाज के लिए जा रहे हैं तो घर से पहले घंटों लाइन में खड़े रहने के लिए तैयार होकर ही जाएं। यहां पर्ची बनाने से लेकर डॉक्टर तक दिखाने में घंटों लाइन में धक्के खाना पड़ेगा। डॉक्टर को दिखाने के बाद नि:शुल्क दवा लेने टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। अस्पताल में आए दिन मरीजों को इस समस्या से दो चार होना पड़ा रहा है। दैनिक नवज्योति ने मरीजों की इस समस्या जानने के लिए पर्ची काउंटर से लेकर दवा लेने तक लाइन खड़े रहकर जांच की तो एक मरीज को अस्पताल में डॉक्टर से दिखाने से लेकर दवा लेने तक 5 से 6 घंटे लग रहे हैं। उस पर दवाएं नहीं मिलने से बाजार से दवा खरीदना मजबूरी बना हुआ है।

समय सुबह 9 बजे
नवज्योति टीम का एक सदस्य एमबीएस अस्पताल में  9 बजे पर्ची काउंटर में लाइन में लगा। करीब 15 मिनट के कतार में खड़ा रहने के बाद पर्ची बनी।

दवा लेने में लगे दो घंटे
मुख्यमंत्री नि:शुल्क दवा केंद्र पर11 बजे लाइन में लगे। लाइन इतनी लंबी थी की हमारे काउंटर तक पहुंचने में पौन घंटा लग गया। उसके बाद पर्ची में छह दवा में से दो दवा मिली . चार दवा पास वाले काउंटर पर लेने के लिए कहा। दवा लेकर दूसरे काउंटर पर लाइन में लगे तो एक सज्जन ने बताया कि पहले पर्ची की जैराक्स करा कर लाएं. फिर ही दवा मिलेगी। उसके बाद टीम का सदस्य पर्ची की फोटा काफी कराने गया. वहां भी लाइन लगी थी. करीब 15 मिनट के इंतजार के बाद फोटो कापी लेकर दवा काउंटर की लाइन में लगे तो करीब आधा घंटे बाद नंबर आया। इस काउंटर पर भी 3 तीन दवा ही मिली। एक दवा बाहर से खरीदी।

9.15 बजे से 10.50 बजे आउटडोर की कतार में
पर्ची बनाने के बाद टीम का सदस्य 9.15 बजे कमरा नं. 104 में आउटडोर में दिखाने के लिए मरीजों की लाइन में लगा। करीब 1 घंटा 35 मिनट डॉक्टर को दिखाने में लगे। उसके बाद डॉक्टर से बुखार, चक्कर आने उल्टी दस्त की दवाई लिखी पर्ची लेकर मुख्यमंत्री नि:शुल्क दवा काउंटर पर पहुंचे।

कई काउंटर पर पेरासिटामोल तक नहीं मिल रही
 हनुमान प्रसाद राठौड़ ने बताया कि सरकार ने 1 अप्रैल से सरकारी अस्पतालों में मरीजों का इलाज नि:शुल्क कर दिया है। सरकारी अस्पताल में ओपीडी और आईपीडी को नि:शुल्क करने का निर्देश दिया गया है। सीटी स्कैन और अन्य कई बड़ी जांचें तक नि:शुल्क हो रही है, लेकिन अस्पतालों के हालात ऐसे हैं कि सामान्य मेडिसिन भी मुख्यमंत्री नि:शुल्क दवा योजना के तहत मरीजों को नहीं मिल पा रही हैं।  एंटी कोल्ड दवा हो या फिर एंटी एलर्जी यह सामान्य दवाएं भी अस्पताल में उपलब्ध नहीं हैं। ये हालात मेडिकल कॉलेज कोटा के  जुड़े अस्पतालों के हैं।  अस्पतालों में दवाइयां ही उपलब्ध नहीं है।

एंटीकोल्ड, बीपी की दवा के लिए भी लगाने पड़ते हैं चक्कर
तीमारदार उमेरुद्दीन ने बताया कि एंटीकोल्ड, टिटनेस, वैक्सीन, बीपी के मरीजों के काम आने वाली लोसार्टन 50, दस्त की दवा मेट्रोजिल, एंटी एलर्जी सीपीएम, दर्द की डॉइक्लोफिनेक और सीरिंज 5 और 2 एमएल जैसी दवाइयां नहीं हैं।  साथ ही एंजायटी में काम आने वाली क्लोनजपम भी लंबे समय से नहीं आ रही हैं। एक कांउटर से दूसरे काउंटर पर दवा के लिए लंबी लाइन में लगना पड़ता है। दवा नहीं मिलने पर दूसरे काउंटर के लिए दवा की पर्ची की फोटो कापी देनी पड़ती है। ऐसी लच्चर व्यवस्था के कारण नि:शुल्क दवा लाभ नहीं मिल रहा बाहर से दवा खरीदना मजबूरी बन गया है। डॉक्टर बाहर की दवा लिख नहीं सकते ऐसे मरीज के हाल बुरे हो रहे है।

कई काउंटरों के चक्कर लगाकर मिल रही दवाइयां
तीमारदार नाथूलाल ने बताया कि मरीज  अस्पताल में डॉक्टर के पास से पर्ची पर दवाइयां लिखकर पहले एक काउंटर पर जाता है लेकिन वहां दवाइयां नहीं मिलती हैं।  मरीज को ऐसे ही कई काउंटरों के चक्कर लगाने पड़ते है लेकिन इसके बावजूद उसे दवाइयां नहीं मिल पा रही है।  जिससे मरीजों को काफी परेशानियों का सामना उठाना पड़ रहा है।  एमबीएस अस्पताल में बीते ढाई महीने से यूरिन बैंग की सप्लाई भी नहीं हो रही है।  ऐसे में मरीजों के परिजनों को इमरजेंसी होने पर निजी मेडिकल स्टोर की तरफ भागना पड़ रहा है।

5 लाख टेबलेट सीपीएम हो रही खपत
 एक ही महीने में जुकाम और स्किन एलर्जी में उपयोग आने वाली सीपीएम की खपत करीब 5 लाख टेबलेट की हो रही है।  बीपी के मरीज के काम आने वाली लोसर्टन व सर्दी जुकाम में उपयोगी एंटी कोल्ड की खपत 30-30 हजार गोलियां हैं।  डॉइक्लोफिनेक 50 एमजी टेबलेट की खपत भी हर माह करीब एक लाख रहती है।  ऐसे में बड़ी मात्रा में मरीजों को यह सामान्य दवा भी नहीं मिल पा रही है।  हालात ये भी हैं कि अस्पतालों में हर माह एक लाख सीरिंज की जरूरत है, लेकिन यह बीते 2 से 3 महीने से नहीं आ रही है।  अस्पताल को एनओसी मिलने पर कुछ खरीद स्थानीय स्तर पर कर लेता है लेकिन स्टॉक तुरंत खत्म हो जाता है।  दूसरी तरफ अस्पतालों को यह महंगी भी पड़ रही है। राजस्थान सरकार ने राज्य के सभी सरकारी अस्पतालों में मरीजों को ओपीडी और आईपीडी जैसी सुविधाएं नि:शुल्क की हैं।

पांच से सात दवाओं रोज कटती एनओसी
कई दवाएं राजस्थान मेडिकल सर्विस कॉरपोरेशन से ही सप्लाई नहीं हो रही है।  ऐसे में इन सभी दवाओं की खरीद स्थानीय स्तर पर करने के लिए एनओसी जारी की जा रही है। एमबीएस के ड्रग वेयरहाउस की बात की जाए तो वहां से लगातार पांच से सात दवाइयों की एनओसी जारी हो रही है। इनमें से कई दवाएं तो ऐसी है जिनकी खरीद के लिए प्रदेश स्तर पर राजस्थान मेडिकल सर्विस कॉरपोरेशन का रेट कॉन्ट्रेक्ट ही खत्म हो गया है।  ऐसे में अब दोबारा रेट कॉन्टेÑक्ट होगा, उसमें समय लगेगा, तब तक अस्पतालों में यह दवाओं की उपलब्धता नहीं रहेगी। इनकी एनओसी काटकर मंगवाई जा रही है।

20 फीसदी दवाएं नहीं है उपलब्ध
राज्य सरकार के मुख्यमंत्री निशुल्क दवा योजना के तहत मेडिकल कॉलेज के अस्पतालों में करीब 969 दवाएं मरीजों को फ्री देनी है।  लेकिन इनमें से 20 फीसदी यानी करीब 180 दवा उपलब्ध ही नहीं है। केवल 791 दवाएं ही अस्पताल में मिल रही है।  अधिकांश जो दवाइया उपलब्ध नहीं है, वहीं रूटीन सर्वाधिक उपयोग में आने वाली दवाइयां है।  एमबीएस अस्पताल के अधीक्षक डॉ. नवीन सक्सेना का कहना है कि वे स्थानीय स्तर पर खरीदकर मरीजों को दवा उपलब्ध करवाते हैं।  जैसे ही दवा खत्म होती है और उसकी ड्रग वेयरहाउस से सप्लाई बंद हो जाती है। उसके बाद एमसीडीडब्ल्यू से एनओसी लेकर दवा खरीद ली जाती है।

इनका कहना है
हर साल मार्च के बाद अप्रैल से नया वित्तीय वर्ष शुरू होता है। ऐसे में दवाओं खरीद के आर्डर लगते है। एक आर्डर में एक से दो महीने सप्लाई में लग जाते ऐसे में दवा उपलब्धता कम हो जाती है। करीब एक हजार तरह की दवा की सप्लाई होती है। कुछ दवाएं खत्म होने पर ड्रग वे हाउस से एनओसी जारी कर दी जाती  है। जिससे लोकल स्तर पर खरीद अस्पताल प्रशासन कर सकता है।
- सुनील सोनी,  औषधी भंडार प्रभारी मेडिकल कॉलेज कोटा

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