कोचिंग हब में आत्महत्याओं का अंतहीन दौर

इस साल अब तक यह छठीं आत्महत्या है

कोचिंग हब में आत्महत्याओं का अंतहीन दौर

कभी राजस्थान की औद्योगिक नगरी के रुप में जाना जाने वाला कोटा शहर बीते कुछ दशकों से शिक्षा नगरी के नाम से पहचान बना चुका है। आईआईटी और इंजीनियरिंग में प्रवेश दिलाने की कोचिंग के लिए कोटा शहर की पहचान पूरे देश में कोचिंग हब के रुप में है।

कभी राजस्थान की औद्योगिक नगरी के रुप में जाना जाने वाला कोटा शहर बीते कुछ दशकों से शिक्षा नगरी के नाम से पहचान बना चुका है। आईआईटी और इंजीनियरिंग में प्रवेश दिलाने की कोचिंग के लिए कोटा शहर की पहचान पूरे देश में कोचिंग हब के रुप में है। अकेले कोटा में ही कोचिंग के लिए आने वाले छात्र-छात्राओं की संख्या यही कोई दो से ढ़ाई लाख तक है। कोटा के कोचिंग हब में 4 जून को एक और होनहार छात्रा आयुषी ने जीवन लीला समाप्त कर ली। इस साल अब तक यह छठीं आत्महत्या है। इंजीनियर या डॉक्टर बनने आए बच्चों का बीच राह में मौत के आगोश में समा जाना हृदय विदारक होने के साथ ही साथ कहीं गहरे तक सोचने को मजबूर कर देता है। आखिर क्या कारण है कि उज्ज्वल भविष्य व गरिमामय प्रोफेसन से जुड़ने की तैयारी में नई पीढी के युवा राह पर उतरते ही इस कदर निराशा के दलदल में फंस जाते हैं कि बिना आगे-पीछे सोचे मौत को गले लगाने में क्षण भर भी नहीं हिचकते हैं। कोटा में कोचिंग कर रहे छात्रों में जिस तेजी से आत्महत्याओं का दौर चला है वह अपने आपमें गंभीर होने के साथ ही बच्चों के परिजनों, कोटावासियों या राजस्थान ही नहीं देश के मनोवैज्ञानिकों, राजनेताओं, प्रशासन, शिक्षाविदें को गहरी सोच में ड़ाल दिया है। कोरोना काल में कोचिंग गतिविधियां बंद होने से आत्महत्याओं का यह अंतहीन सिलसिला कुछ कम अवश्य हुआ पर कोंिचग संस्थानों के चालू होते ही आत्महत्याओं का जो सिलसिला शुरु हो गया है वह अपने आप में चिंतनीय हो जाता है।

पिछले दिनों कोटा में कोचिंग कर रही छात्रा कृति ने सरकार और अपने माता-पिता को मृत्युपूर्व अपने नोट में जो संदेश दिया है वह आंख खोलने के लिए काफी है। अपनी मां को लिखा है कि ‘आपने मेरे बचपन और बच्चा होने का फायदा उठाया और मुझे विज्ञान पसंद करने के लिए मजबूर करती रही। इस तरह की मजबूर करने वाली हरकत 11वीं पढ़ रहीं मेरी छोटी बहन के साथ मत करना, वो जो करना चाहती है, जो पढ़ना चाहती है वह उसे करने देना कुछ इसी तरह से सरकार को लिखा है कि अगर वे चाहते हैं कि कोई बच्चा नहीं मरे तो जितनी जल्दी हो सके इन कोचिंग संस्थानों को बंद करवा दें, यह कोचिंग खोखला बना देती है। कृति के इन संदेशों में कितनी सचाई और दर्द छिपा है यह अपने आप बयां कर रहा है। आखिर बच्चों का बचपन बढ़ों की इगों के आगे टिक नहीं पा रहा है और गला काट प्रतिस्पर्धा का कारण बनने के साथ ही बच्चों को मानसिक दबाव और कुंठा की राह धकेल रहा है, यह सच्चाई हैं।

कभी राजस्थान की औद्योगिक नगरी के रुप में जाना जाने वाला कोटा शहर बीते कुछ दशकों से शिक्षा नगरी के नाम से पहचान बना चुका है। आईआईटी और इंजीनियरिंग में प्रवेश दिलाने की कोचिंग के लिए कोटा शहर की पहचान पूरे देश में कोचिंग हब के रुप में है। कुकुरमुत्ते के छाते की तरह कोटा में कोचिंग व्यवसाय ने पांव पसारे हैं। अकेले कोटा में ही कोचिंग के लिए आने वाले छात्र-छात्राओें की तादाद यही कोई दो से ढ़ाई लाख तक है। एक मोटे अनुमान के अनुसार देश में कोचिंग का व्यवसाय कोई 20 हजार करोड़ रुपए से अधिक का माना जा रहा है। इसमें से अकेले कोटा में कोचिंग का कारोबार एक हजार करोड़ रुपए से अधिक है। साफ  है कोचिंग पूरी तरह से व्यवसाय का रुप ले चुकी है, ऐसे में मानवीय संबंध या गुरु-शिष्य के संबंध कोई मायने नहीं रखते। अपनत्व या आपसी संवेदना तो दूर-दूर की बात है। कोचिंग संस्थान पांच से छह घंटों तक कोचिंग कराते है। शेष समय हॉस्टल में अध्ययन में बीतता है। पहले से ही मानसिक दबाव में रह रहे बच्चे कोचिंग संस्थानों की नियमित परीक्षाआें के माध्यम से रेकिंग के दबाव में इस कदर रहते हैं कि संवेदनशील बच्चे तो इस दबाव को सहन ही नहीं कर पाते। कोचिंग संस्थानों के लिए तो यह निरा व्यवसाय बनकर रह गया है। उन्हें बच्चों के मनोविज्ञान को समझने की ना तो जरुरत महसूस होती है और ना ही इसकी परवाह। दूसरी तरफ  परिजन ऊंचे-ऊंचे ख्बाब देखते हुए बच्चों का इन कोचिंग संस्थानों में प्रवेश कराकर अपने दायित्व की इतिश्री कर लेते हैं। बीच सत्र में छोड़ने की स्थिति में फीस वापस नहीं करने की स्थिति में बच्चों पर दबाव बना रहता है। हॉस्टल या पेइंग गेस्ट के रुप में रहने वाले स्थान पर सेहतमंद खाने की व्यवथा होती है ना ही आपसी दुख दर्द को बांटने वाली बातें करने वाला कोई। रेकिंग के गिरते चढ़ते ग्राफ के चलते बच्चे अत्यधिक दबाव में आ जाते हैं। बच्चों पर मनोवैज्ञानिक दबाव बढ़ जाता है और इसका परिणाम सामने हैं।

कोटा में चल रहे आत्महत्याओं के दौर से केन्द्र व राज्य सरकार दोनों ही चिंतित है। सरकार और मनोविज्ञानियों ने अपने स्तर पर प्रयास भी शुरु किए पर वह अभी कारगर नहीं हो पा रहे हैं। कोरोना से पहले केन्द्र सरकार ने आत्म हत्या के कारणों का अध्ययन कराने के लिए कमेटी गठित की। तो जिला प्रशासन भी सक्रिय हुआ। बच्चों के मानसिक दबाव को कम करने के लिए कोचिंग विद फन का कंसेप्ट लाया गया। जिला प्रशासन ने कोचिंग संस्थानों के लिए गाइड लाइन जारी करने के साथ ही होप हेल्प लाईन को शुरु किया गया। जिला प्रशासन की दखल के बाद फन डे, योग, मेडिटेशन के माध्यम से पढ़ाई के तनाव को कम करने के प्रयास शुरु किए गए। परिजनों ने भी अपने बच्चों से निरंतर सम्पर्क बनाना शुरु किया। काउसलिंग व स्क्रीनिंग व्यवस्थाएं भी नियमित करने का प्रयास आरंभ हुआ। कोटा में कोचिंग छात्रों की आत्म हत्या के कारण कोई भी रहे हो पर यह बेहद चिंतनीय है। चिंतनीय यह भी है कि कोचिंग अब संस्थागत कारोबार का रुप ले चुकी है।

Read More चीन की हरकतों से भारत सतर्क रहे

- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

Read More कच्चातिवु द्वीप के स्वामित्व को लेकर फिर विवाद

Post Comment

Comment List

Latest News