'इंडिया गेट'

जानें इंडिया गेट में आज है खास...

'इंडिया गेट'

जानें इंडिया गेट में क्या है खास

रंग में भंग...
नुपुर शर्मा एवं नवीन जिंदल प्रकरण से मानो मोदी सरकार के आठ साल पूरे होने का जश्न खराब कर दिया। मतलब रंग में भंग पड़ गया। जनता को बताने के लिए अच्छा खासा उपलब्धियों का पिटारा था। लेकिन अचानक सामने आए इस विवाद से सारा स्वाद कसेला हो गया। इसीलिए जब मीडिया का फोकस उधर गया। तो कार्रवाई करनी पड़ी। साथ में पार्टी और सरकार ने प्रवक्ताओं के कथनों से पल्ला भी झाड़ लिया। अब कहा जा रहा। यह सब विरोधियों की चाल को विफल करने के लिए ठंडे छींटे डाले गए। वैसे इससे पहले भी ऐसे वाकिए होते रहे। लेकिन चर्चा इसी प्रकरण की हो रही। देशभर में विरोध के सुर। फिर सोशल मीडिया इसके असर से कैसे बचेगा। लेकिन कार्रवाई की असली वजह आठ साल का जश्न ही! कहां तो बात विकास का होनी चाहिए थी और बात नुपूर के बयान पर आकर अटक गई। फिर गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव की योजना भी इसी के साथ बनी थी।


कोई चेहरा नहीं होगा...
राज्यसभा से टिकट कटने के बाद केन्द्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी को रामपुर लोकसभा उपचुनाव में भी मौका नहीं मिला। उच्च सदन में अब भाजपा का कोई मुस्लिम चेहरा नहीं बचा। नकवी के साथ ही राज्यसभा से एमजे अकबर और जफर इस्लाम का कार्यकाल भी खत्म हो गया। जो इन दिनों राजनीतिक गलियारे में चर्चा का विषय। लोकसभा में भी भाजपा का कोई मुस्लिम सांसद नहीं। सिर्फ गठबंधन सहयोगी का एक सदस्य। अब उच्च सदन में भी नहीं होगा। ऐसे में भाजपा का संकेत और संदेश क्या? पार्टी किस रणनीति पर काम कर रही? चर्चा यह भी कि भाजपा नेतृत्व नकवी को कोई बड़ा अवसर देने के मूड में। या फिर अगले आम चुनाव में वोट जुटाने के लिए संगठन में काम का मौका दिया जाए। वैसे भले ही जफर इस्लाम को बाद में कहीं से मौका मिले। लेकिन एमजे अकबर की संभावनाएं कम हीं। आखिर भाजपा मुस्लिम समुदाय को लेकर किस रणनीति पर काम कर रही? यही सभी में जिज्ञासा।


हाथ खींचा...
यूपी कांग्रेस की कमान प्रियंका गांधी के हाथों में। करीब तीन माह से वहां पीसीसी चीफ का पद भी खाली। अब पार्टी की हालत यह हो गई कि रामपुर और आजमगढ़ के लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस अपना प्रत्याशी तक नहीं उतार पाई। प्रियंका गांधी राज्य में पिछले आम चुनाव से ही सक्रिय। अब वह कांग्रेस का चेहरा। जिसे वह कह भी चुकीं। इसके बावजूद दोनों उपचुनाव में पार्टी ने उम्मीदवार उतारने से हाथ खींच लिए। आखिर कांग्रेस की इस हालत के लिए जिम्मेदार कौन? उदयपुर में चिंतन शिविर तो हुआ। लेकिन यूपी से कोई जिम्मेदार नेता वहां नहीं था। ऐसा कहा गया। और जब बात राज्यसभा चुनाव की आई। तो प्रमोद तिवारी को राजस्थान से, राजीव शुक्ल को छत्तीसगढ़ और इमरान प्रतापगढ़ी को महाराष्ट्र से मौका दिया गया। लेकिन मैदान में उतरकर पसीना बहाने वाला कोई नहीं मिल रहा। जबकि देश के सबसे बड़े सूबे में आम चुनाव में भी जाना होगा। आखिर भाजपा और सपा को वॉक ओवर देना कहां तक ठीक?


अग्निपरीक्षा?
तो सीएम गहलोत अग्निपरीक्षा पार कर गए। राज्यसभा चुनाव में वह राजनीति के जादूगर ही साबित हुए। साथ ही भीतर और बाहर वालों के लिए इक्कीस! अब समीकरण बदले हुए होंगे। प्रदेश में सरकार और संगठन पर पकड़ मजबूत होगी। राष्ट्रीय स्तर पर भी कद बढ़ेगा। अब 2023 तक कोई न बाधा और न कोई रूकावट। न कोई चुनौती देने वाला। अब इससे आगे क्या? गहलोत तो भाजपा में भी सेंध लगाने में कामयाब रहे। सो, खटपट तो वहां भी संभावित। हां, अब पार्टी में उनके विरोधी ठंडे पड़ जाएंगे। एक बात और। उन बागियों का क्या? जो 2023 में विधानसभा चुनाव तो लड़ना चाहेंगे। लेकिन उनके टिकट का क्या होगा? क्योंकि इसका दारोमदार गहलोत पर ही रहेगा। फिर अब प्रभारी अजय माकन की बात का वजन कितना रहेगा? अब चर्चा यहां तक। प्रभारी महासचिव में बदलाव संभव। क्योंकि माकन को पार्टी संगठन में एक नए ईजाद होने वाले विभाग की जिम्मेदारी मिलेगी! फिर राजस्थान का प्रभारी भी गहलोत की पसंद का ही होगा!

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इस तैयारी का अर्थ ..!
नेशनल हेराल्ड मामले में सोनिया गांधी और राहुल गांधी बीते साल साल से जमानत पर। आरोप मनी लॉड्रिंग का। अब बात ईडी द्वारा पूछताछ तक आ गई। सो, सोमवार को राहुल गांधी इसी मामले में ईडी के समक्ष उसके कार्यालय में पेश होंगे। लेकिन जब राहुल गांधी ईडी आॅफिस जाएंगे। तब पार्टी के तमाम सांसद और सभी महासचिव, प्रदेश प्रभारी और पीसीसी चीफ भी जुटेंगे। मतलब पूरा लमाजवा होगा। इस तैयारी के भी मायने! क्या कांग्रेस को इससे आगे की आशंका? इसीलिए विरोध का पुख्ता इंतजाम? जो रविवार से ही शुरू हो गया। लेकिन ऐसी क्या बात। जो कांग्रेस को विरोध का सुर इतना तीखा करना पड़ रहा। देशभर में प्रदर्शन की तैयारी। कांग्रेस में चल क्या रहा? इसे समझना जरुरी। हां, पार्टी का कार्यकर्ता इससे जरुर ‘बूस्टअप’ हो जाएगा। जो पार्टी के लिए अच्छा होगा। साथ ही भाजपा के लिए भी! क्योंकि मोदी सबसे ज्यादा हमलावर कांग्रेस पर ही रहते। आखिर कांग्रेस आज भी एक पैन इंडिया पार्टी।

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संभावनाओं का खेल...
राजनीति असीम संभावनाओं का खेल। कब क्या हो जाए। कुछ पता नहीं। कौन किधर चला जाए और कौन कब किससे आ मिले। बिहार में सत्ताधारी जदयू में घमासान की तैयारी हो रही! कहां एक समय लल्लन सिंह साइड लाइन हो गए और आरसीपी सिंह नितिश कुमार की आंख, कान हो गए। बाजी पलटी तो अब आरसीपी सिंह साइड हो गए। और लल्लन सिंह जदयू अध्यक्ष। सो, पुरानी हिसाब चुकता करना तो बनता। अदावत बढ़ती ही जा रही। अब चर्चा आरसीपी सिंह द्वारा अलग राह लेने की। संगठन में काम किया। इसीलिए पूर्व नौकरशाह होने के बावजूद जनता से कनेक्ट होने माद्दा। अब केन्द्रीय मंत्री पद पर तलवार लटक रही। इधर नितिश भी कुछ बोल नहीं रहे। इसी बीच, आरसीपी सिंह राज्य में राजनीतिक उपेक्षितों का मन टटोल रहे! बात चाहे लोजपा, हम या वीआईपी दल की हो। समीकरण बैठाने की कोशिश हो रही। दावा यह कि यह सब मिलाकर करीब 17 फीसदी वोट। अब राजद और जदयू का दौरा जाने का वक्त!
-दिल्ली डेस्क

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