टॉलीवुड की चमक-दमक के पीछे एक विराट स्याह अंधेरा, ख्वाबों के टूटने के सदमें में खुदकुशी कर लेती हैं अभिनेत्रियां
कोलकाता। टॉलीवुड की चमक-दमक के पीछे एक विराट स्याह अंधेरा है। जिसका पता तब मालूम होता है, जब कोई सितारा असमय टूटता और बुझ जाता है। वहां लाइम लाइट के बाद गुमनामी के अंधेरे में खो जाने का डर सताता है। गर इंसान जहां तन्हा होता है। मोहब्बत में भावनाओं की सच्चाई नहीं होती। गरजपरस्ती होती है। और जब चारों ओर घना अंधेरा पसरता नजर आता है, तो पलायनवादी लड़कियां कई बार खुदकुशी का रास्ता अपना लेती हैं।
कोलकाता। टॉलीवुड की चमक-दमक के पीछे एक विराट स्याह अंधेरा है। जिसका पता तब मालूम होता है, जब कोई सितारा असमय टूटता और बुझ जाता है। वहां लाइम लाइट के बाद गुमनामी के अंधेरे में खो जाने का डर सताता है। गर इंसान जहां तन्हा होता है। मोहब्बत में भावनाओं की सच्चाई नहीं होती। गरजपरस्ती होती है। और जब चारों ओर घना अंधेरा पसरता नजर आता है, तो पलायनवादी लड़कियां कई बार खुदकुशी का रास्ता अपना लेती हैं।
खुद को मजबूत बताने के दस दिन बाद ही टूट गई विदिशा
कोलकाता की उभरती मॉडल विदिशा डे मजूमदार के पिता विश्वजीत डे मजूमदार बताते हैं कि अभिनेत्री पल्लवी डे की मौत के बाद अपनी बेटी को लेकर आशंकित हो गया था। वह भी पल्लवी की तरह अकेली रहती थी। ऐसे में वह कहीं कोई गलत फैसला न ले ले। उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उनकी बेटी भी संघर्ष से घबरा कर पलायन का रास्ता चुन लेगी। वह बताते हैं कि पल्लवी की मौत की खबर सुनने के बाद विदिशा की मां बहुत परेशान हो गई थीं और उन्होंने विदिशा से अपने मन का डर भी जताया था।
लेकिन तब विदिशा ने कहा था, अरे! पल्लवी ने बेवकूफी की है, मैं बहुत मजबूत लड़की हूं। आप एकदम बेफिक्र रहें। मैं ऐसा नहीं करूंगी।लेकिन ऐसा कहने वाली उस लड़की ने महज दस दिनों बाद ही अपनी इहलीला खत्म कर ली। उसके ठीक दो दिन बाद विदिशा की सहेली और एक अन्य मॉडल मंजूषा नियोगी ने भी इसी तरीके से अपनी जान दे दी। मंजूषा की मां बताती हैं, विदिशा की मौत के बाद से ही मेरी बेटी गहरे अवसाद में थी और बार बार उसी का जिक्र कर रही थी।
बांग्ला फिल्मोद्योग में चिंता का माहौल
पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में मई के आखिरी दो सप्ताह के दौरान छोटे परदे की तीन उभरती अभिनेत्रियों और एक मॉडल की मौत से टॉलीवुड के नाम से मशहूर बांग्ला फिल्मोद्योग में चिंता का माहौल है। इनमें से ज्यादातर मामलों को फिल्मी दुनिया की चमक दमक के नीचे पसरे अंधेरे और संघर्ष में नाकामी से जोड़ कर देखा जा रहा है। हालांकि एकाध मामलों में असफल प्रेम प्रसंग को कारण बताया जा रहा है। लेकिन इन चारों की मौत की मूल वजह मानसिक अवसाद ही है। इसमें किसी को कोई संदेह नहीं है, लेकिन अब ज्यादातर लोग इन घटनाओं के बारे में खुल कर बात नहीं करना चाहते।
आत्महत्या एक गंभीर मनोवैज्ञानिक और सामाजिक समस्या है। इन घटनाओं ने फिल्मों में रातोंरात कामयाब होने की जद्दोजहद, संघर्ष और पलायन को सतह पर ला दिया है। एक पखवाड़े के भीतर हुई इन चार मौतों ने बांग्ला फिल्म और धारावाहिकों की दुनिया को कठघरे में खड़ा कर दिया है। आम धारणा है कि बाहरी चमक से प्रभावित होकर तमाम लड़कियां इसकी ओर आकर्षित होती हैं, लेकिन भीतर की कालिख और कीचड़ देख कर उनके सपने जल्दी ही टूट जाते हैं। फिल्मोद्योग से जुड़े लोगों के अलावा मनोवैज्ञानिको ने भी इन पर गहरी चिंता जताई है और इससे सबक लेकर एहतियाती उपाय करने का अनुरोध किया है ताकि भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति रोकी जा सके।
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