हर धागे में मिला मेहनत का रंग और प्रेम का बंधन

बाजार में नहीं मिल रहे खरीदार : 10 हजार लोगों को मिल रहा रोजगार,सालाना पांच करोड़ का कारोबार

हर धागे में मिला मेहनत का रंग और प्रेम का बंधन

कोटा में निर्मित कोटा डोरिया साड़ियों ने देश-प्रदेश सहित विश्व में अपनी पहचान कायम की है। वर्तमान में हुनर के बाजीगर परिवार आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। वजह है बाजार में साड़ियों के खरीदार नहीं होना और नकली साड़ियों का कम दामों में बिकना।

कोटा। कोटा में निर्मित कोटा डोरिया साड़ियों ने देश-प्रदेश सहित विश्व में अपनी पहचान कायम की है। कोटा डोरिया ने शिक्षा नगरी की ख्याति में चार चांद लगाए हैं। कोटा से 20 किलोमीटर दूर कैथून नगरपालिका के बुनकरों के हुनर के परदेशी भी कायल हैं, लेकिन वर्तमान में हुनर के बाजीगर परिवार आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। वजह है बाजार में साड़ियों के खरीदार नहीं होना और नकली साड़ियों का कम दामों में बिकना। जिसके चलते कोटा डोरिया की चमक फीकी पड़ गई है। कैथून में लगभग 3 हजार से ज्यादा हथकरघे है। यहां हर घर में साड़ियां बनाने के लिए हथकरघे लगे हुए हैं जहां प्रसिद्ध कोटा डोरिया साड़ियां बुनी जाती हैं। लेकिन अब अधिकांश हथकरघे लुप्त होने होने की कगार पर है। कुछ हथकरघे जो अभी भी संचालित हो रहे हैं वह आने वाले दिनों में बंद होने के कगार पर है। कैथून के बुनकरों का कहना है केंद्र व राज्य सरकारें योजनाएं तो लागू करती है,लेकिन यह योजनाएं बुनकरों तक नहीं पहुंच पाती,ऐसे में कोटा डोरिया बनाने वाले बुनकर मायूस है।

एक साड़ी बनने में लगते है 20 से 40 दिन
कोटा डोरिया साड़ी की शुरूआती कीमत ढाई हजार रुपये है। कीमतें रेशम-कपास के मिश्रण,जरी के किनारों की चौड़ाई और रूपांकनों के मिश्रण पर निर्भर करती हैं। एक साड़ी को बुनने में लगभग 20 दिन लगते हैं, और जटिल रूपांकनों वाली साड़ी को पूरा होने में 40 दिन तक का समय लग सकता है। कैथून में लगभग हर घर में एक विशेष रूप से डिजाइन किया गया पिट लूम होता है, जिसमें पैडल होते हैं जो एक संकीर्ण आयताकार गड्ढे में लटके होते हैं। एक बुनकर फर्श पर बैठता है और करघे को चलाने के लिए पैडल का उपयोग करता है। कुछ घरों में दो करघे होते हैं।

मशीनों से तैयार हो रहा नकली कोटा डोरिया
बुनकर रुखसाना ने बताया है कि उत्तरप्रदेश, बिहार, गुजरात के सूरत व पश्चिम बंगाल में पावरलूम पर कोटा डोरिया ब्रांड की नकली साड़ी तैयार की जाती है। वहां मशीन से तैयार साड़ी को कम दामों में बेचा जा रहा है। कई बार असली व नकली की पहचान नहीं हो पाने के कारण लोग सस्ते दाम में नकली कोटा डोरिया खरीद लेते हैं। मोटे अनुमान से कोॉटा में कोटा डोरिया के नाम से 10 से 15 हजार साड़ीयां नकली बिक जाती है।

नई बुनकर नीति को लागू करे सरकार
मास्टर बुनकर इसरार हुसैन का कहना है कि उन्होंने राजस्थान हैंडलूम एंड हैंडीक्राफ्ट जोधपुर से इस विषय में डिग्री ली हुई है। कोटा डोरिया बनाना उनका पुश्तैनी काम है। वह पिछले 7 वर्षों से कोटा डोरिया साड़ियों का व्यापार कर रहे हैं और वह बुनकर भी है। हुसैन का कहना है कि केंद्र व राज्य सरकार की बुनकरों के लिए बहुत सारे योजनाएं तो है लेकिन वह प्रचार-प्रसार के अभाव में बुनकरों तक नहीं पहुंच पाती। अभी भी ऐसे सैंकड़ो बुनकर है जिन्हें हैंडलूम या हैंडिक्राफ्ट राजस्थान की तरफ से कार्ड नहीं मिले। वहीं दूसरी और खादी ग्रामोंद्योग या हैंडीक्राफ्ट हैंडलूम की और से किसी प्रदर्शनी,कार्यक्रम में उन्हें जगह नहीं मिल पाती और वह अपना माल बेचने से वंचित रह जाते है। जितने भी मास्टर बुनकर है उन्हें खादी ग्रामोद्योग में आरक्षण दिया जाए ताकि उन्हें भी सरकारी नौकरी का लाभ मिले। इसके साथ ही जयपुर,जोधपुर,कोटा मुख्य बाजार में दुकानें उपलब्ध करवाई जाए जहां पर्यटक ज्यादा आते हों, क्योंकि कैथून में ज्यादा बड़ी मार्केट नहीं है। पालिका की तंग गलियों में  व्यापारी कोटा डोरिया बेचते हंै। साउथ इंडिया के ज्यादातर लोग कोटा डोरिया खरीदने के लिए कैथून आते हैं। कोटा डोरिया का 99 प्रतिशत निर्यात साउथ इंडिया में होता है। हुसैन ने कहा है कि सरकार को बुनकर पॉलिसी बनाकर लागू करनी चाहिए ताकि बुनकरों को लाभ मिल सके। इसके साथ ही सरकार को कोटा डोरिया की सरकारी खरीद भी करनी चाहिए।

कोटा डोरिया से सालाना 5 करोड का कारोबार
कोटा डोरिया से सलाना 5 करोड का कारोबार  होता है। 90 प्रतिशत कोटा डोरिया का निर्यात साउथ में होता है। कोटा शहर में 30 दुकानों पर कोटा डोरिया बेचा जाता है। कैथून की एक बुनकर फरीदन बताती है कि एक कोटा डोरिया,जटिल रूपांकनों के साथ बनने वाली साड़ी में लगभग 4 से 5 हजार रुपए का खर्च आता है,ऐसे में साड़ियां नहीं बिकने से परिवार की आर्थिक स्थिति खराब हो जाती है और गुजारा करना मुश्किल हो जाता है। सरकार द्वारा इन साड़ियों की सरकारी खरीद भी नहीं कि जाती। हैंडलूम और क्राफ्ट सेंटर सरकार ने सिर्फ दिखावे के लिए बनाए है।

10 हजार लोगोें को मिला रोजगार
कोटा डोरिया से 10 लोगों को रोजगार मिला हुआ है। 5 हजार हैण्डलूम हाडौती अंचल में चल रहे हैं। 4 हजार हैण्डलूम कोटा के कैथून कस्बे में चल रहे है। कैथून में हर घर में लूम चल रही है। कैथून में रोजाना 800 साडियां तैयार होती है। जिसमें 70 प्रतिशत महिला बुनकर काम करती है। कैथून में 80 हजार से 1 लाख रूपए तक की साडी बनती है।

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