इतनी कम हुई तादाद की सेंचुरी से हट गया घड़ियाल का नाम

राजस्थान में 425 किलोमीटर के क्षेत्र में फैली है राष्ट्रीय चंबल घड़ियाल सेंचुरी: जिले के 160 में से 154 किमी. एरिया में एक भी नहीं घड़ियाल

इतनी कम हुई तादाद की सेंचुरी से हट गया घड़ियाल का नाम

चंबल में घड़ियालों की अच्छी तादात के चलते 43 साल पहले मिला घड़ियाल अभयारण्य का दर्जा छीन लिया गया है। लगातार कम होती घड़ियालों की संख्या के चलते अब चंबल घड़ियाल अभयारण्य का नाम बदल कर घड़ियाल शब्द ही हटा दिया गया है। अब इस सेंचुरी का नाम राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य कर दिया गया है।

कोटा। चंबल में घड़ियालों की अच्छी तादात के चलते 43 साल पहले मिला घड़ियाल अभयारण्य का दर्जा छीन लिया गया है। लगातार कम होती घड़ियालों की संख्या के चलते अब चंबल घड़ियाल अभयारण्य का नाम बदल कर घड़ियाल शब्द ही हटा दिया गया है। अब इस सेंचुरी का नाम राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य कर दिया गया है। राजस्थान को 7 दिसम्बर 1979 में  43 साल पहले चंबल घड़ियाल अभयारण्य का दर्जा मिला था। इससे पहले 20 दिसम्बर 1978 में मध्यप्रदेश और 29 जनवरी 1979 में उत्तर प्रदेश को चंबल घड़ियाल सेंचुरी घोषित किया था।  बाद में चंबल घड़ियाल अभयारण्य का नाम बदलकर राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य कर दिया गया। विशेषज्ञों ने लगातार घट रही घड़ियालों की संख्या को अभयारण्य का नाम बदलने की वजह बताया।

यहां तक फैली है राजस्थान की सीमा
राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य तीन राज्यों की सेंचुरी है। जिसमें मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश व राजस्थान शामिल हैं। हमारा प्रदेश अभयारण्य का 425 किमी एरिया कवर करता है, जो 2 भागों में बंटा है। पहला-जवाहर सागार डेम से कोटा बैराज के बीच का उपरी इलाका (अप स्ट्रीम) व दूसरा, केशवरायपाटन से धौलपुर तक का निचला इलाका (डाउन स्ट्रीम) तक है। यहां से राजस्थान की सीमा समाप्त हो जाती है। वहीं, कोटा का 160 किमी इलाका अभयारणय का हिस्सा है।

कोटा में नहीं घडियाल
राष्ट्रीय चंबल सेंचुरी में हमारा जिला जवाहर सागर से खातौली स्थित गुड़ला गांव तक 160 किमी में फैला है। विड़ंबना यह है, 160 में से करीब 154 किमी के दायरे में एक भी घड़ियाल नहीं है। जबकि, 6 किमी के दायरे में बसा गुड़ला में मौजूदगी नजर आती है। चंबल सेंचुरी प्रशासन द्वारा इन क्षेत्रों में घड़ियालों को बसाने की दिशा में कोई प्रयास नहीं किया जा रहा। वहीं, इको सेंसटिव जोन घोषित होने से इन क्षेत्रों में पर्यटन के लिहाज से अन्य कार्य भी नहीं हो पा रहे।

 अभयारण्य में आते हैं कोटा के ये इलाके
प्रोफेसर कृष्नेंद्र सिंह नामा के मुताबिक नेशनल चम्बल अभयारण्य में कोटा का करीब 160 किमी एरिया शामिल है। ये इलाका बैराज की अप और डाउन स्ट्रीम में बंटे हैं। इनमें 27 किमी का एरिया जवाहर सागर से कोटा बैराज का है, जिसमें से 13 किमी का दायरा मुकुंदरा में आ रहा है। जबकि, डाउन स्टीम में 148 किमी का एरिया कवर होता है। 

निचला इलाका ( डाउन स्ट्रीम)
रंगपुर घाट से सेंचुरी शुरू हो जाती है, जो विभिन्न इलाकों से होती हुई आखिरी छोर श्योपुर (एमपी) से मिल जाता है। यहीं से ही कोटा की 148 किमी की सीमा खत्म होकर मध्यप्रदेश की शुरू होती है। लेकिन, लेफ्ट साइड से राजस्थान की सीमा जारी रहती है। क्योंकि, इस साइड में बूंदी का केशवरायपाटन, सवाईमाधोपुर, करौली व धौलपुर हंै।

ऊपरी इलाका ( अप स्ट्रीम)
रावतभाटा स्थित जवाहर सागर डेम से कोटा बैराज तक के उपरी इलाकों में चंबल गार्डन, अधरशिला, भीतरिया कुंड, हैंगिंग ब्रिज, आरटीयू यूनिवर्सिटी के पीछे वाला क्षेत्र, गरड़िया महादेव, भंवरकुंज सहित 27 किमी का एरिया चंबल अभयारणय में आता है।

यूं होती है घड़ियालों की गिनती
प्रोफेसर नामा के अनुसार चंबल घड़ियाल सेंचुरी द्वारा हर साल फरवरी माह में ही घड़ियालों की गिनती की जाती है। सरीसृप यानी पानी में रहने के साथ धरती पर रैंगने वाले वन्यजीवों को भोजन के अलावा अपने शरीर का तापमान भी मेंटेन करना होता है। फरवरी एक मात्र ऐसा महीना होता है, जिसमें तापमान न तो ज्यादा गर्म होता है और न ही ठंडा। जब यह बाहर निकलते हैं तभी घड़ियालों व मगरमच्छों की गिनती हो पाती है। 

95 प्रतिशत बच्चे बह जाते हैं बहाव में
घड़ियालों को प्रजनन एवं नेस्ट बनाने के लिए मोटी रेत की जरूरत होती है। लेकिन, कोटा का नदी तट पथरीला है जो इनके लिए उपयुक्त नहीं है। इनके अंडों से जब बच्चे निकलते हैं तो यह वह समय होता है, जब बारिश के कारण बेराज के गेट खोले जाते हैं। ऐसे में पानी के तेज बहाव में 95 प्रतिशत बच्चे बह जाते हैं। इनका संरक्षण तभी संभव होगा जब इनके प्राकृतिक आवास को बचाया जाए। हर तरह का अवैध खनन पर पूरी तरह से रोक लगे। वहीं, बांधों के गेट खोलने के दौरान पानी की निकासी इस तरह की जाए, जिससे घड़ियालों के बच्चे अकाल मौत का शिकार न हो। इसके अलावा मध्यप्रदेश के देवरी और उत्तर प्रदेश के कुकरैल कस्बे की तरह कोटा में भी प्रजनन केंद्र स्थापित किया जाना चाहिए।
कृष्णेंद्र सिंह नामा, सहायक आचार्य एवं रिसर्च सुपरवाइजर वनस्पति विभाग एलजेबरा कॉलेज

कोटा में मानवीय दखल ज्यादा
 यह बात सही है, जवाहर सागर से कोटा बैराज तक के इलाके में एक भी घड़ियाल नहीं है, क्योंकि इस इलाके में चट्टाने अधिक हैं। घड़ियाल रेतीली जगहों पर ही अंडे देते हैं, जो गुड़ला से धौलपुर तक के क्षेत्र में बहुत है। इसके अलावा कोटा के उपरी इलाके में प्राकृतिक आवास भी नहीं है। जबकि, मानवीय दखल बहुत ज्यादा है और गंदे नालों का पानी, अपशिष्ट पदार्थों का गिरने से पानी दूषित होता है, जिसके चलते घड़ियाल यहां रह नहीं पाते। यह नदी से 50 या 100 के दायरे में ही अंडे देते हैं, जो पानी प्रवाह के दौरान या तो बह जाते हैं या चट्टानों से टकराकर नष्ट हो जाते हैं।
अनिल यादव, एसीएफ राष्ट्रीय चंबल घड़ियाल अभयारण्य

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