छह माह में चार लाख बीस हजार एजिथ्रोमाइसिन गटक गए लोग

रोग प्रतिरोधक क्षमता हो रही कम : अस्पतालों में हर माह 30 हजार एजिथ्रोमाइसिन की हो रही खपत, लोग बिना डॉक्टर की सलाह के केमिस्ट से ले रहे एंटीबायोटिक

छह माह में चार लाख बीस हजार एजिथ्रोमाइसिन गटक गए लोग

कोरोना काल के दौरान मनमर्जी से अंधाधुंध दवाइयां लेने का जो सिलसिला शुरू हुआ वह संक्रमण कम होने के बाद भी बदस्तूर जारी है। कोरोना काल में सबसे ज्यादा एजीथ्रोमाइसिन टेबलेट मरीजों को दी गई वो संक्रमण कम होने के बाद भी लगातार दी जा रही है। जहां कोरोना काल में कोविड की शुरुआत से अब तक के दो साल में कोटा जिला एजीथ्रोमाइसिन की करीब 64 लाख टैबलेट खा चुके हैं।

कोटा । कोरोना काल के दौरान मनमर्जी से अंधाधुंध दवाइयां लेने का जो सिलसिला शुरू हुआ वह संक्रमण कम होने के बाद भी बदस्तूर जारी है। डॉक्टर से लेकर दवा विक्रेता तक कोरोना के दौरान दी गई एंटीबायोटिक दवाएं अभी धडल्ले से लिख रहे हैं जिससे लोगों की रोगप्रतिरोधक क्षमता कम होने लगी है। कोरोना काल में सबसे ज्यादा एजीथ्रोमाइसिन टेबलेट मरीजों को दी गई वो  संक्रमण कम होने के बाद भी लगातार दी जा रही है। जहां कोरोना काल में कोविड की शुरुआत से अब तक के दो साल में कोटा जिला एजीथ्रोमाइसिन की करीब 64 लाख टैबलेट खा चुके हैं। लोगों ने बिना डॉक्टर की सलाह पर भी यह दवा खूब ले रहे हैं मौसमी बीमारियों के सीजन में डॉक्टरों ने ऐसा आॅब्जर्व किया है कि 25 से 30 प्रतिशत मरीजों में एजिथ्रोमाइसिन बेअसर हो रही है। आम तौर पर तीन दिन यह दवा देने पर आराम मिल जाता था, लेकिन अब दूसरे सपोर्टिंग एंटीबायोटिक देने पड़ रहे हैं। कोरोना संक्रमण के मरीज कम होने के बाद हर माह 30 हजार एजीथ्रोमाइसिन खपत हो रही है।

दवा प्रतिरोधी संक्रमण बढ़ने का खतरा
सेल आॅफ एंटीबायोटिक्स एंड हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन इन इंडिया ड्यूरिंग द कोविड-19 पेंडेमिक' नाम के रिसर्च पेपर में दावा किया गया है कि कोविड-19 के दौरान एजिथ्रोमाइसिन, डॉक्सीसाइक्लिन, फेरोपेन जैसी एंटीबायोटिक दवाओं का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया। एंटीबायोटिक के अधिक इस्तेमाल से लोगों में एंटीबायोटिक रजिस्टेंस इंफेक्शन दवा प्रतिरोधी संक्रमण बढ़ने का खतरा बढ़ जाता है।  कोविड से लेकर मौसमी बीमारी में एजीथ्रोमाइसिन का अंधाधुंध यूज किया जा रहा है। अब तो हालात यह हो गए हैं कि  लोग  बिना डॉक्टर की सलाह पर भी यह दवा  लेने लगे हंै। शहर के विभिन्न मेडिकल स्टोर पर भी बिना पर्चे ये दवा आसानी से उपलब्ध हो रही है। जबकि डॉक्टरों का कहना है कि  किसी भी एंटीबायोटिक का बहुत ज्यादा प्रयोग करना अगले कुछ सालों में उस दवा को खत्म करने जैसा है। एजीथ्रोमाइसिन का एसिम्प्टोमेटिक और माइल्ड कैटेगिरी के कोविड मरीजों में अच्छा रेस्पोंस रहा था, ऐसे में सामान्य खांसी, जुकाम व गले में खराश पर भी लोगों ने यही दवा ली। मेडिकल स्टोर से लोग लक्षण बताकर इस दवा का धडल्ले से यूज कर रहे हंै।

कोरोना काल में 70 हजार एजिथ्रोमाइसिन की होती थी खपत अब 30 हजार पर आ गई
कोरोना काल में ड्रग वेयर हाउस से हर 70-80 हजार एजिथ्रोमाइसिन टैबलेट की खपत हो रही थी। संक्रमण कम होने के बावजूद अभी  भी एंटीबायोटिक दवाओं खपत 30 हजार टेबलेट ही कम हुई है। अभी 30 हजार गोली हर माह एजीथ्रोमाइसिन की खपत हो रही है। एजीथ्रोमाइसिन का देश में टाइफाइड बुखार और दस्त के इलाज के लिए एक महत्वपूर्ण दवा रूप में इस्तेमाल होता था लेकिन कोविड के बाद इसका प्रयोग संक्रमण की रोकथाम में किया जा रहा है। एजीÞथ्रोमाइसिन के अनावश्यक उपयोग से इन दोनों बीमारियों का कारण बनने वाले जीवाणुओं में प्रतिरोध पैदा होगा। नतीजतन, ऐसे रोगियों को संभालने के लिए हमेशा अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता होगी। काबार्पेनम एंटीबायोटिक्स को अंतिम उपाय एंटीबायोटिक माना जाता है जो अस्पतालों में गंभीर संक्रमण के इलाज के लिए आवश्यक हैं।

टॉप 10 जन स्वास्थ्य खतरों में शामिल है ड्रग रेजिस्टेंस 
डॉ. जेपी सोनी ने बताया कि ड्रग रेजिस्टेंस वर्तमान में एक गंभीर जन स्वास्थ्य समस्या के रूप में उभरकर सामने आ रहा है। डब्ल्यूएचओ ने इसे विश्व के टॉप-10 जन स्वास्थ्य खतरों में शामिल किया है। ड्रग रेजिस्टेंस के प्रमुख कारणों में जरूरत से ज्यादा खुराक, खुद से उपचार शामिल है। भारत में अनाधिकृत मेडिकल प्रैक्टिस भी एंटीबायोटिक्स के प्रति प्रतिरोधकता को बढ़ावा देता है। कुछ बैक्टीरिया प्राकृतिक रूप से ही एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधक होते हैं तो कुछ में यह उत्परिवर्तन व जीन स्थानांतरण से विकसित होती है। एंटीबायोटिक दवाओं में जेनेटिक बदलाव भी प्रतिरोधकता उत्पन्न करती है।

एक साल में  एजिथ्रोमाइसिन की खपत का ये रहता है गणित
-  सालभर में जिले में 8 से 10 लाख टैबलेट की खपत होती है, मौसमी बीमारियों के दौरान खपत बढ़ जाती थी।
- कोविड के में यह आंकड़ा दो साल में 16 लाख 80 हजार तक पहुंच गया। चिकित्सा विभाग ने मरीजों को यह दवा बंटवाई।
- मेडिकल कॉलेज ड्रग वेयर हाउस से अप्रैल 2020 से 2022  तक 500 एमजी की 8 लाख 80 हजार और 250 एमजी की 8 लाख 80 हजार टैबलेट खपत हो चुकी है।
- मेडिकल व्यवसायियों अनुसार कोविड में 20 लाख टैबलेट की खपत हुई है।

डॉक्टरों ने बताए ज्यादा एंटीबायोटिक के नुकसान
शिशुरोग विशेषज्ञ डॉ. गोपी किशन ने बताया कि  लोगों को ये समझना चाहिए की कोविड -19 एक वायरस है और एंटीबायोटिक दवाएं बैक्टीरिया पर असर करती हैं। कोई भी एंटीबायोटिक दवा बिना डॉक्टर की सलाह के नहीं लेनी चाहिए। अलग -अलग एंटीबायोटिक दवा का अलग अलग नेचर है। कोई एंटीबायोटिक ज्यादा लेने पर किडनी को नुकसान पहुंचता है तो किसी से लीवर या किसी अन्य शरीर अंग को। एंटीबायोटिक दवाएं लेने से आपके पाचनतंत्र में मौजूद अच्छे बैक्टीरिया मर जाते हैं। इससे आपको खाने की इच्छा नहीं होती है।  कोविड के दौरान बिना डॉक्टर के लिखे बड़ी संख्या में लोगों ने एंटीबायोटिक खाए हैं। जिसके साइड इफेक्ट अब आने लगे है। ज्यादा एंटीबायोटिक लेने पर बैक्टीरिया में उसके लिए रजिस्टेंस पैदा हो जाता है। ऐसे में बैक्टीरिया के संक्रमण पर जब ये एंटीबायोटिक दी जाएगी, तो ये काम ही नहीं करेगी। 90 फीसदी बुखार के इलाज के लिए एंटीबायोटिक की जरूरत पड़ती ही नहीं है, जबकि कोरोना तो एक वायरस है। ऐसे में एंटीबायोटिक का इस्तेमाल कोरोना में किया जाना  शरीर को नुकसान पहुंचाने जैसा ही है।

इन बीमारियों के इलाज पर पड़ रहा असर
डॉ. जगदीश कुमार सोनी ने बताया कि  एंटीबायोटिक के अत्यधिक इस्तेमाल से रेजिस्टेंट के कारण सामान्य चोट और आमतौर पर होने वाले संक्रमण जैसे निमोनिया आदि को ठीक करना भी मुश्किल हो जाएगा। ऐसे में ये बीमारियां भी गंभीर और जानलेवा रूप ले सकती हैं। महामारी के दौर में एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल सामान्य से बहुत अधिक हुआ है। जिसके दुष्परिणाम अब आ रहे है। कई लोगों के एजीथ्रोमासिन अब असदार नहीं रही है।

एजीथ्रोमाइसिन का कोविड के बाद से यूज बढ़ा
कोरोना काल के बाद से एजिथ्रोमाइसिन का उपयोग बढ़ा है। यह बहुत लॉजिकल और स्वाभाविक है कि जब भी कोई एंटीबायोटिक का धड़ल्ले से यूज होता है तो उसका रेजिस्टेंस डवलप होने लगता है। एजिथ्रोमाइसिन के मामले में भी ऐसा ही हो रहा है।  एंटीबायोटिक के दुरुपयोग को लेकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बनी गाइडलाइंस का पालन करना चाहिए। एंटीबायोटिक्स को मेडिकल प्रिसक्रिप्शन होने पर ही दिया जाना चाहिए। इसके अधिक और बेवजह इस्तेमाल पर नियंत्रण की आवश्यकता है। इसको लेकर लोगों में जागरुकता फैलाने की आवश्यकता है। इसके गलत इस्तेमाल से होने वाले दुष्प्रभावों के बारे में लोगों को बताना होगा।
- डॉ. ओपी मीणा, एमडी मेडिसन एमबीएस अस्पताल कोटा

इनका कहना है
कोरोना काल में हर माह 70 हजार एजिथ्रोमाइसिन टैबलेट की खपत होती थी। वहीं अभी 30 हजार गोली की खपत हो रही है। 50 हजार पेरासिटामोल गोली,एमोक्सिसिलिन-क्लैवुलनेट 10 हजार गोली हर माह खपत हो रही है। इसके अलावा सर्दी जुकाम, खांसी, एसीडिटी, गैस की गोलियों की सबसे ज्यादा खपत होती है।
-सुनील सोनी, प्रभारी औषधि भंडार मेडिकल कॉलेज कोटा

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