कर्ज में डूबे राज्य

भारतीय रिजर्व बैंक ने अपने एक सर्वे में देखा है कि देश के दस राज्य भारी कर्ज के दबाव में हैं और इन राज्यों में सभी सूचक चिंताजनक संकेत दे रहे हैं।

कर्ज में डूबे राज्य

भारतीय रिजर्व बैंक ने अपने एक सर्वे में देखा है कि देश के दस राज्य भारी कर्ज के दबाव में हैं और इन राज्यों में सभी सूचक चिंताजनक संकेत दे रहे हैं।

भारतीय रिजर्व बैंक ने अपने एक सर्वे में देखा है कि देश के दस राज्य भारी कर्ज के दबाव में हैं और इन राज्यों में सभी सूचक चिंताजनक संकेत दे रहे हैं। इन दस राज्यों में सबसे ज्यादा खराब स्थिति पंजाब की है, जहां कर्ज और राज्य के सकल घरेलू उत्पादन का अनुपात 45 प्रतिशत से अधिक हो जाने का अनुमान है। इस अवधि तक राजस्थान, केरल और पश्चिम बंगाल में यह अनुपात 35 प्रतिशत से अधिक हो सकता है। शीर्ष बैंक की सलाह है कि वित्तीय स्थिति को और ज्यादा गड़बड़ाने से बचाने के लिए ठोस और कारगर उपाय किए जाने चाहिए। इन राज्यों को सबसे पहले अपने कर्ज के स्तर को स्थिर करने को प्राथमिकता देनी चाहिए। कर्ज का बोझ झेल रहे राज्यों में पंजाब, बिहार, आंध्र प्रदेश, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और हरियाणा विशेष रूप से शामिल हैं। पूरे देश की सभी राज्य सरकारें जितना खर्च करती है, उसका लगभग आधा इन दस राज्यों में खर्च किया जाता है, क्योंकि कर्ज का ब्याज चुकाने में ही काफी धन खर्च कर दिया जाता है। फिर पेंशन व प्रशासनिक खर्च भी काफी होता है। आंध्र प्रदेश, बिहार, राजस्थान और पंजाब ने वित्त वर्ष 2020-21 में 15वें वित्त आयोग द्वारा निर्धारित कर्ज और वित्तीय नुकसान के लक्ष्यों को भी पार कर लिया। पश्चिम बंगाल, केरल व झारखण्ड ने तो निर्धारित लक्ष्य से अधिक कर्ज लिया। मध्य प्रदेश का वित्तीय नुकसान तय हिसाब से ज्यादा रहा। हरियाणा और उत्तर प्रदेश लक्ष्यों के भीतर ही कर्ज व वित्तीय नुकसान को रख सके।

रिजर्व बैंक का आंकलन है कि राजस्थान, केरल और पश्चिम बंगाल वर्तमान वित्त में कर्ज और वित्तीय घाटे के लक्ष्य को लांघ सकते हैं। राज्यों द्वारा कर्ज लेने की मुख्य वजह यह होती है कि उनकी राजस्व प्राप्तियां और केन्द्र से प्राप्त होने वाली राशि से उनका खर्च पूरा नहीं होता। ऐसे वित्तीय नुकसान बढ़ जाता है। राज्यों की राजस्व प्राप्ति में लगातार कमी आ रही है और गैर कर राजस्व गिरावट देखी जा रही है। ऐसी स्थिति में ये राज्य अपने राजस्व का 80 से 90 प्रतिशत हिस्सा खर्च करने को विवश होते हैं, जिससे खर्च की गुणवत्ता पर तो नकारात्मक असर पड़ता ही है। इसके साथ ही विकास कार्य आगे नहीं बढ़ पाते हैं। इन दस राज्यों में विकास के काम आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। अगर इन राज्यों ने राजस्व बढ़ाने तथा खर्चो पर अंकुश नहीं लगाया तो अर्थव्यवस्था पर विपरीत असर पड़ेगा और विकास की गति धीमी पड़ जाएगी।

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