जेकेके में हरिजस की गूंज: 'मन्दिर जाती मीरा ने सांवरियो मिल गयो रे'

लोक गायिका भंवरी देवी व साथियों ने दी प्रस्तुति

 जेकेके में हरिजस की गूंज: 'मन्दिर जाती मीरा ने सांवरियो मिल गयो रे'

जयपुर। जवाहर कला केंद्र में 26 जून को लोक संगीत की जाजम कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसके तहत लोक गायिका भंवरी देवी व उनके साथियों ने हरिजस की प्रस्तुति दी। भंवरी देवी के श्रीमुख से जैसे ही सुरीली आवाज में राजस्थानी भजनों के बोल निकले तो भक्ति की बयार बह उठी।

जयपुर।  जवाहर कला केंद्र में 26 जून को लोक संगीत की जाजम कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसके तहत लोक गायिका भंवरी देवी व उनके साथियों ने हरिजस की प्रस्तुति दी। भंवरी देवी के श्रीमुख से जैसे ही सुरीली आवाज में राजस्थानी भजनों के बोल निकले तो भक्ति की बयार बह उठी। लोग भजन सुनकर इतना मंत्र मुग्ध हो उठे कि उन्होंने ईश्वर से सीधा जुड़ाव महसूस किया। लोक कला के संरक्षण और शहरवासियों को दिव्य आध्यात्मिक शांति देने के उद्देश्य से जेकेके व जाजम फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

अलसुबह जुटने लगे लोग
 अलसुबह जब अधिकतर लोग नींद से जागे भी नहीं थे तभी हरि भजन प्रेमी व लोक कला के प्रति लगाव रखने वाले शहरवासी जेकेके में जुटने लगे। तय समय सुबह 7 से 8 के बीच भंवरी देवी ने भजनों की प्रस्तुती दी। उन्होंने कुल 10 भजन गाए। इनमें सोहन लाल लोहागर रचित कुण जाने आ माया श्याम की अजब निराली रे, मीरा बाई द्वारा रचित मन्दिर जाती मीरा ने सावरियो मिल गयो रे, थारे घट में बिराजे भगवान और भजना सूं लागे मीरा मीठी आदि शामिल है। जेकेके की ओर से सभी कलाकारों को भेंट प्रदान की गईं।

कम उम्र में टूटी जोड़ी
लोक गायिका भंवरी देवी किसी परिचय की मोहताज नहीं है। उन्होंने राजस्थानी संगीत को ऊंचाई तक पहुंचाया है। जीवन में आने वाली समस्त कठिनाईयों के बावजूद उन्होंने गाना नहीं छोड़ा। भंवरी देवी बहुत छोटी थी तभी उनकी मां का देहांत हो गया। उन्होंने बचपन में अपने पिता से गाना सीखा। छोटी उम्र में ब्याह कर ससुराल पहुंची भंवरी देवी ने बाद में अपने पति के संग गाना शुरू किया। मिली जानकारी के अनुसार भोपा जाति की गायिकाएं अपने पति के संग ही गायन करती हैं। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। कम उम्र में ही भंवरी देवी के पति का स्वर्गवास हो गयाा। वे अपने पीछे भंवरी देवी और छह बच्चों को छोड़ गए थे।

नहीं झुका भंवरी देवी का हौंसला
इसके बाद भंवरी देवी ने कुछ समय के लिए गायन छोड़ दिया। किस्मत के फैसलों के आगे भी भंवरी देवी का हौंसला नहीं झुका। उन्होंने अपने बच्चों को संगीत की शिक्षा देना शुरू किया। लगभग पांच से आठ साल की उम्र के अपने बड़े बेटे कृष्ण कुमार को साथ लेकर उन्होंने फिर मंच की ओर कूच की और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। भंवरी देवी व उनके साथी देश-विदेश में प्रस्तुति देते हैं। भंवरी देवी ने बताया कि आने वाली पीढ़ी तक हमारी संस्कृति को पहुॅंचाने के लिए लोक गीतों के गायन को बढ़ावा देना जरूरी है। अगर कोई उनसे सीखना चाहेगा तो वे हमेशा तैयार रहेंगी।

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