'राजकाज'

जानें राज-काज में क्या है खास

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चर्चा में आंखों की शर्म
सूबे में इन दिनों आंखों की शर्म को लेकर चर्चा जोरों पर है। हो भी क्यों ना, अब कर्ताधर्ताओं को ही चुनौतियों का सामना जो करना पड़ रहा है। मराठी नाडू में चले रहे ड्रामा के बाद तो इन चर्चाओं ने और भी जोर पकड़ लिया। राज का काज करने वाले भी लंच केबिनो में बतियाते हैं कि जब बेटे की शर्म खुल जाती है, तो उसे बाप के सामने मुंह खोलने से कोई नहीं रोकने की कोई सोच भी नहीं सकता है। अब देखो ना गुजरे जमाने में जो एमएलए अपने लीडर के सामने मुंह खोलने से पहले अपना आगा-पीछा सोचता था, वो ही आंखों की शर्म खुलने के बाद अपनी लाल आंखों से चुनौती देने में माहिर हो गए। अब एमएलएज भी क्या करें, बाड़ाबंदियों में आधे कपड़ों में जो कुछ ओपन में सीखा, उसका असर तो दिखाए बिना चैन भी तो नहीं मिलता।


सकते में इधर भी
पॉलिटिक्स तो पॉलिटिक्स ही है, जहां भी होती है, उसके आसपास में भी असर दिखाए बिना नहीं रहती। गुजराती भाई लोग तो चौड़े में इसकी तुलना गोबर से करते हैं। गोबर जहां भी गिरता है, वहां की माटी को साथ लेकर उठता है। अब देखो ना, महाराष्ट्र की पॉलिटिक्स में जो कुछ चल रहा है, उसका असर मरु प्रदेश में भी दिखाई देने लगा है। सूबे में राज का काज करने वाले भाई लोग भी सकते में हैं। उनका सकते में आना लाजमी भी है। बड़ी चौपड़ पर चर्चा है कि दिल्ली में बैठे शतरंज के खिलाड़ी राज बदलने के लिए जिस ढंग की चाले चल रहे हैं, उसका असर यहां भी जल्द ही दिखाई देने वाला है।


तबादले और राजनीति
सूबे में तबादले हो और उन पर राजनीति नहीं हो, यह कतई संभव नहीं है। जिस दिन राज ने तबादलों पर से बैन हटाया था, उस दिन कई नेताओं के घरों में घी के दीए जले थे। और तो और छुटभैय्ये नेताओं के तो जमीं पर पैर ही नहीं टिक रहे थे। नेताओं के दूर तक के सगे समंधी भी लिस्टें बनाने के काम पर लग गए। राजधानी में इसका असर सबसे पहले दिखा, शुक्र को किशनपोल वाले भाईसाहब ने मंत्री के घर के सामने जो कुछ किया, वह उसी का फल था। मंत्री जी भी उनसे एक कदम आगे निकले, जिन्होंने साफ कह दिया कि धरने-वरने से मैं कतई डरने वाला नहीं हूं, चाहे कुछ भी कर लो, मैं भी लालसोटिया हूं।


एक जुमला यह भी
इन दिनों एक जुमला जोरों पर है, जुमला भी छोटा-मोटा नहीं, बल्कि सेना को लेकर है। यह जुमला हर गली और चौराहों पर खूब चल रहा है। हर कोई इसे चटकारे लेकर सुना रहा है। हमें भी इंदिरा गांधी भवन में बने हाथ वालों के ठिकाने पर एक वर्कर ने सुनाया। जुमला है कि चर्चा में थी सेना, लेकिन निपट गई शिवसेना।
- एल. एल. शर्मा, पत्रकार

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