फुटबॉल बना ग्रीन फील्ड एयरपोर्ट
एयरपोर्ट बनने में लगेंगे कई साल , धीमी गति से चल रहा काम
कोटा में ग्रीन फीेल्ड एयरपोर्ट प्रस्तावित है लेकिन अभी तक तो वह केन्द्र व राज्य सरकार के बीच फुटबॉल बना हुआ है। इसकी धीमी गति को लेकर चल रहे काम के चलते 2024 के चुनाव तक भी इसके मूर्त रूप लेने की संभावना कम नजर आ रही है।
कोटा । कोटा में ग्रीन फीेल्ड एयरपोर्ट प्रस्तावित है लेकिन अभी तक तो वह केन्द्र व राज्य सरकार के बीच फुटबॉल बना हुआ है। इसकी धीमी गति को लेकर चल रहे काम के चलते 2024 के चुनाव तक भी इसके मूर्त रूप लेने की संभावना कम नजर आ रही है। एयरपोर्ट अथोरिटी आॅफ इंडिया ने पहली बार वन विभाग को प्रोजेक्ट रिपोर्ट सौंपी है। इससे लगता है एयरपोर्ट तैयार होने में कई साल लगेंगे।
कोटा में वर्तमान एयरपोर्ट बड़ी व नियमित उड़ानों के लिए पर्याप्त नहीं होने से यहां नया एयरपोर्ट प्रस्तावित है। इसके लिए राज्य सरकार ने शम्भूपुरा के पास 1250 एकड़ भूमि नि:शुल्क देने की घोषणा भी कर दी है। एएआई की टीम यहां पूर्व में दो बार सर्वे भी कर चुकी है। लेकिन उसके बाद प्रक्रिया इतनी धीमी गति से चल रही है कि नए एयरपोर्ट का केन्द्र व राज्य की वर्तमान सरकारों के कार्यकाल पूरा होने तक इसका बनना मुश्किल लग रहा है। पूर्व में नगर विकास न्यास द्वारा एयरपोर्ट के लिए 550 एकड़ जमीन दी गई थी। लेकिन बाद में एएआई की डिमांड पर उसे बढ़ाकर 1250 एकड़ कर दिया गया। शम्भूपुरा व उसके आस-पास एयरपोर्ट के लिए दी गई जमीन में से नगर विकास न्यास की जमीन की तुलना में वन विभाग की जमीन काफी अधिक है। वन विभाग की जमीन का डायवर्जन होना है। यह डायवर्जन केन्द्र सरकार के स्तर पर किया जाना है। लेकिन अभी तक भी डायवर्जन नहीं होने से मामला आगे नहीं बढ़ा है।
कोटा के जनप्रतिनिधि कर रहे प्रयास
कोटा में एयरपोर्ट की मांग को देखते हुए यहां के जनप्रतिनिधि उसके प्रयास में जुटे हुए हैं। कोटा-बूंदी संसदीय क्षेत्र से सांसद व लोकसभका अध्यक्ष ओम बिरला केन्द्र के स्तर पर और कोटा उत्तर विधानसभा से विधायक व स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल राज्य सरकार के स्तर पर प्रयास कर रहे हैं। दोनों अपने-अपने स्तर पर एयरपोर्ट की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के दावे कर रहे हैं।
एएआई ने अभी सभी सौंपी है रिपोर्ट
स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल ने बताया कि कोटा में एयरपोर्ट के लिए राज्य सरकार ने नि:शुल्क जमीन दे दी। वन विभाग की जमीन की एवज में जमीन और उसका डायवर्जन शुल्क 45 करोड़ रुपए भी सरकार जमा करवाने को तैयार है। लेकिन वन विभाग की जमीन का डायवर्जन करने का अधिकार केन्द्र सरकार के पास है। अभी तक वहां से जमीन का डायवर्जन नहीं हुआ है। उसके बाद वहां से जितनी भी राशि का डिमांड नोट आएगा वह भी जमा करवा दिया जाएगा। मंत्री धारीवाल ने बताया कि एएआई ने कुछ दिन पहले ही पहली बार वन विभाग को प्रोजेक्ट रिपोर्ट सौंपी है जिसमें यह बताया कि है कि उनकी जमीन किस उद्देश्य के लिए ली जा रही है। उन्होंने कहा कि अभी तो प्रोजेक्ट रिपोर्ट का अध्ययन होगा। उसके बाद प्रक्रिया आगे बढ़ेगी। बजट व डीपीआर समेत लम्बीे प्रक्रिया को पूरा होने में कई साल लगेंगे। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के स्तर पर कोई देरी नहीं है। केन्द्र के स्तर पर ही मामला अटका हुआ है।
पहले तीन गांव थे अब 6 गांव किए शामिल
नगर विकास न्यास की ओर से पूर्व में एयरपोर्ट के लिए जो जगह निर्धारित की गई थी। वह बड़गांव से आगे हाइवे के नजदीक तीन गांवों को शामिल करते हुए देखी गई थी। जिनमें मानपुरिया, तुलसा व जाखमुंड गांव की जगह शामिल थी। लेकिन एयरपोर्ट अथोरिटी की टीम द्वारा अधिक जगह की आवश्यकता बताने पर न्यास ने तीन और गांवों की जगह को उसमें शामिल किया। जिनमें कैथूदा, बालापुरा व देवरिया शामिल हैं। जो गांव बूंदी जिले में आ रहे थे। एयरपोर्ट की जगह वाले उन गांवों को कोटा में शामिल कर लिया गया है। वे गांव नगर विकास न्यास को हस्तांतरित भी कर दिए गए हैं।
ओएलएस टीम ने किया था 8 दिन तक सर्वे
एयरपोर्ट अथोरिटी आॅफ इंडिया की दो सदस्यीय आॅब्सट्रेक् शन लिमिटेशन सर्वे(ओएलएस) टीम शम्भूपुरा में प्रस्तावित नए ग्रीन फील्ड एयरपोर्ट के रनवे की बाधाओं का सर्वे किया था। दिल्ली से आए एयरपोर्ट अथोरिटी आॅफ इंडिया के सहायक प्रबंधक सर्वे एसएस शेरावत व दिनेश संवल ने 20 से 28 नवम्बर 2019 तक कोटा में रहकर नए एयरपोर्ट के रनवे में आने वाली बाधाओं का सर्वे किया था। जीपीएस व अन्य मशीनों से किए गए सर्वे के दौरान उन्होंने एयरपोर्ट के रनवे से 15 किमी. के क्षेत्र में आने वाली बाधाओं को देखा था। टीम के सदस्यों ने एयरपोर्ट की जगह की चार दीवारी से लेकर रनवे तक 9 पाइंट चिन्हित कर उनकी मार्किंग की थी। जिसमें हाईटेंशन लाइन समेत कई बाधाओं को चिनिहत किया गया है।
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