पीजी में सेमेस्टर सिस्टम: परीक्षा करवाना ही कॉलेजों के लिए चुनौती

विद्यार्थियों को नुकसान, देनी पड़ेगी अतिरिक्त परीक्षा फीस, कोटा विश्वविद्यालय महाविद्यालयों में सेमेस्टर प्रणाली लागू करने की तैयारी में जुटा

पीजी में सेमेस्टर सिस्टम: परीक्षा करवाना ही कॉलेजों के लिए चुनौती

कोटा विश्वविद्यालय संभाग के सभी राजकीय महाविद्यालयों में नई शिक्षा पॉलीसी के तहत सेमेस्टर सिस्टम लागू करने जा रहा है। एमए और एमकॉम पाठ्यक्रम में पहली बार सेमेस्टर प्रणाली अपनाई जाएगी। यह पॉलिसी महाविद्यालयों के नियमित विद्यार्थियों पर ही लागू होगी। इससे कॉलेजों की शिक्षण व्यवस्था में अमूलचूल परिवर्तन होगा।

कोटा। कोटा विश्वविद्यालय संभाग के सभी राजकीय महाविद्यालयों  में नई शिक्षा पॉलीसी के तहत सेमेस्टर सिस्टम लागू करने जा रहा है। एमए और एमकॉम पाठ्यक्रम में पहली बार सेमेस्टर प्रणाली अपनाई जाएगी। यह पॉलिसी महाविद्यालयों के नियमित विद्यार्थियों पर ही लागू होगी। विश्वविद्यालय द्वारा कॉलेजों में साधन-संसाधनों को परखे बिना ही नई शिक्षा पॉलसी थोपी जा रही है। इससे कॉलेजों की शिक्षण व्यवस्था में अमूलचूल परिवर्तन होगा। साथ ही लाखों विद्यार्थियों को हर 6-6 महीनों में दो बार परीक्षा देनी होगी। इस व्यवस्था से जहां परीक्षाएं सम्पन्न करवाने में डेढ़ माह का अतिरिक्त समय लगेगा। वहीं, प्रिवियस व फाइनल ईयर को मिलाकर 4 बार परीक्षा फीस देनी होगी जो ढाई हजार प्रति सेमेस्टर के हिसाब से 10 हजार हो जाएगी। जबकि, अभी तक दो साल में दो बार ही ढाई-ढाई हजार रुपए के हिसाब से कुल 5 हजार रुपए ही एग्जाम फीस लगती है। ऐसे में विद्यार्थियों को 5 हजार रुपए का अतिरिक्त नुकसान उठाना पड़ेगा।

ऐसे होगा स्टूडेंट्स को करोड़ों का नुकसान
एमए, एमकॉम दो वर्षीय पाठ्यक्रम है। प्रिवियस व फाइनल ईयर की परीक्षा एक-एक साल में होती है। एग्जाम फीस ढाई हजार रुपए भी एक-एक बार ही देनी होती है। यानी, दो साल की डिग्री के लिए 2 बार परीक्षा और ढाई हजार रुपए के हिसाब से एग्जाम फीस 5 हजार रुपए हो जाती है। लेकिन, सेमेस्टर सिस्टम से इस डिग्री के लिए 4 बार परीक्षा और 4 बार ही एग्जाम फीस देनी होगी, जो ढाई हजार के हिसाब से 10 हजार रुपए हो जाएगी।  हर वर्ष संभाग के महाविद्यालयों में लाखों विद्यार्थी एमए व एमकॉम करते हैं। ऐसे में प्रत्येक स्टूडेंट्स पर परीक्षा फीस के रूप में 5 हजार रुपए का अतिरिक्त भार पड़ेगा, जो तीनों संकाय के कुल विद्यार्थियों की संख्या के अनुसार यह राशि करोड़ों में पहुंच जाएगी।

एक साल में करवाते हैं 40 विषयों की परीक्षा
एआईएफयूसीपीओ के जोनल सचिव डॉ. रघुराज सिंह परिहार ने बताया कि अभी महाविद्यालयों में 40 तरह के विषयों की परीक्षाएं साल में एक बार ही सम्पन्न करवाई जाती है। जिसमें 3 माह का  समय लगता है। सेमेस्टर सिस्टम लागू होने के साथ हर 6 महीने में परीक्षाएं करवाने में एक से डेढ़ माह का समय अतिरिक्त लगेगा। ऐसे में कॉलेजों में परीक्षाएं करवाने में ही पांच माह बीत जाएंगे। वहीं, परीक्षा में प्रोफेसरों की ड्यूटी लगने से बीए, बीकॉम व अन्य संकाय के विद्यार्थियों की पढ़ाई प्रभावित होगी। इस व्यवस्था से न तो समय पर परीक्षाएं होंगी और न ही सिलेबस पूरा होगा। जिसका दुष्प्रभाव परीक्षा परिणाम के रूप में सामने आएगा।

शहर को छोड़कर अन्य कॉलेजों में नहीं पर्याप्त संसाधन
सूत्रों के अनुसार शहर के राजकीय कॉलेज संसाधनों की दृष्टि से बेहतर स्थिति में है। लेकिन ग्रामीण सहित संभाग के अन्य जिलों के महाविद्यालयों में संसाधनों की कमी ज्यादा है। हायर एज्युकेशन में सरकार का स्टैंडर्ड रिक्वायरमेंट कहीं भी पूरा नहीं होता। वहीं, प्रैक्टिकल सब्जेक्ट हो तो लैब में संसाधनों की कमी रहेगी। वहीं, ग्रीष्मावकाश में पढ़ाई करवाने में दिक्कत होगी।

 8 हजार स्टूडेंट्स पर 80 शिक्षक, सिलेबस पूरा करवाना चैलेंज
गवर्नमेंट आर्ट्स कॉलेज के प्राचार्य डॉ. संजय भार्गव के मुताबिक, जिन महाविद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या ज्यादा है, वहां विश्वविद्यालय द्वारा लागू की जा रही नई शिक्षा निति के हिसाब से हर 6-6 माह में परीक्षाएं करवाना चुनौतीपूर्ण होगा। क्योंकि, पढ़ाई का अधिकतर समय परीक्षाएं करवाने में ही बीत जाएगा। यूजीसी नियमों के अनुसार 40 स्टूडेंट्स पर एक प्रोफेसर होना चाहिए, जो प्रदेश के किसी भी महाविद्यालय में संभवत: नहीं है। कोटा गवर्नमेंट महाविद्यालय में वर्तमान में कुल 8 हजार 800  विद्यार्थी हैं। जबकि, शिक्षकों की संख्या 78 से 80 है। ऐसे में सेमेस्टर परीक्षाओं में शिक्षकों की ड्यूटी लगने से अन्य संकाय के स्टूडेंट्स की पढ़ाई प्रभावित होगी। साथ ही समय पर सिलेबस पूरा करवाना चैलेंज होगा।

ये होंगे नुकसान
-2 साल की डिग्री करने के लिए अब विद्यार्थियों को 4 बार परीक्षा फॉर्म भरने होंगे। जबकि, पहले 2 बार ही फॉर्म भरने होते थे।
-अभी तक प्रिवियस व फाइनल इयर में दो बार ढाई-ढाई हजार रुपए परीक्षा फीस देनी होती है। लेकिन, सेमेस्टर सिस्टम लागू होते ही दो साल में चार सेमेस्टर के 10 हजार रुपए एग्जाम फीस देनी होगी। ऐसे में डिग्री पूरी करने में विद्यार्थियों को 5 हजार रुपए का अतिरिक्त नुकसान भुगतना पड़ेगा।
- महाविद्यालयों में दो-दो बार एग्जाम होंगे तो शेष अन्य विषयों के विद्यार्थियों की पढ़ाई प्रभावित होना निश्चित है।
- कॉलेजों में एक साल में 2 माह का समय समर वेकेशन का होता है। ऐसे में सिलेबस पूरा करवाना चुनौतीपूर्ण होगा।

फायदे : कॉलेजों में स्टूडेंट्स की उपस्थिति भी बढ़ेगी
जेडीबी कॉलेज में समाजशास्त्र की प्रोफेसर ज्योति सिड़ाना ने बताया कि सेमेस्टर सिस्टम से फीस के रूप में विद्यार्थियों को भले ही नुकसान हो सकता हो लेकिन इसके फायदे भी हैं। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय की नई शिक्षा निति से महाविद्यालयों में विद्यार्थियों की उपस्थिति बढ़ेगी। सेमेस्टर के रूप में पेपर बढ़ने से स्टूडेंट्स को क्वालिटी कंटेंट मिलेगा। परीक्षा में पास होने वाले छात्रों का प्रतिशत भी बढ़ जाएगा। साथ ही कम्पीटिशन की भावना भी बढ़ेगी और स्कील भी डवलप होगी।

विश्वविद्यालय संभाग के राजकीय महाविद्यालयों में सेमेस्टर सिस्टम लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है। इसकी तैयारियां पूरी कर ली गई है। विद्या परिषद से स्वीकृति मिलने के बाद इसे लागू कर दिया जाएगा।
- राजकुमार उपाध्याय, रजिस्ट्रार कोटा विश्वविद्यालय

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