साढ़े तीन साल से अधिकारी ही चला रहे यूआईटी

बिना जन भागीदारी के हो रहे अरबों के काम, सरकार अभी तक नियुक्त नहीं कर पाई यूआईटी अध्यक्ष

साढ़े तीन साल से अधिकारी ही चला रहे यूआईटी

स्वायत्त शासी संस्थाओं में नगर विकास न्यास सबसे बड़ी संस्था है। चार विधानसभाओं का प्रतिनिधित्व करने वाली यूआईटी का संचालन साढ़े तीन साल से अधिकारी कर रहे हैं। जिला कलक्टर का स्थानान्तरण प्रकरण होने के बाद यह सवाल तेजी से उठ रहा है कि अब तक न्यास में अध्यक्ष की नियुक्ति क्यों नहीं की जा रही।

कोटा। स्वायत्त शासी संस्थाओं में नगर विकास न्यास सबसे बड़ी संस्था है। चार विधानसभाओं का प्रतिनिधित्व करने वाली यूआईटी का संचालन साढ़े तीन साल से अधिकारी कर रहे हैं। जिला कलक्टर का स्थानान्तरण प्रकरण होने के बाद यह सवाल तेजी से उठ रहा है कि  अब तक न्यास में अध्यक्ष की नियुक्ति  क्यों नहीं की जा रही। न्यास अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं करने से यूआईटी के कामों में जन भागीदारी  नहीं हो पा रही है।  स्वायत्त शासन मंत्री कोटा के होने के बावजूद  विकास कार्यों में अधिकारी अपनी मनमर्जी कर रहे हैं। उन कामों में न तो जनता की जरुरतों को देखा जा रहा है और न ही जनता की भागीदारी हो रही है। न्यास में अधिकतर वही काम हो रहे हैं जिन्हें अधिकारी करना चाह रहे हैं।  राज्य सरकार के कार्यकाल का डेढ़  साल बाकी है।  अंतिम 6 माह चुनाव में निकल जाएंगे। वहीं सरकार ने इस साल बजट में कोटा में न्यास की जगह कोटा विकास प्राधिकरण बनाने की घोषणा की है। हालांकि उसे अभी तक मूर्त रूप देने में समय लगेगा। लेकिन स्थानीय मंत्री होने के बाद भी अभी तक न्यास में अध्यक्ष नियुक्त नहीं करने से सरकार की मंशा ऐसी लगती है  कि इस बार वह किसीे को भी अध्यक्ष नियुक्त नहीं करना चाहती।

22 साल में एक बार ही हुई न्यासियों की नियुक्ति
जिस तरह से नगर निगम में महापौर के साथ पार्षद निवाचित होते हैं। वे जनता के प्रतिनिधि के रूप में निगम में जनता के कामों को अधिकारियों व बोर्ड के समक्ष रखते हैं।  उसी तरह से नगर विकास न्यास में भी अध्यक्ष के साथ  सदस्यों के रूप में न्यासी मनोनीत करने का प्रावधान है। ये न्यासी ट्रस्ट मंडल की बैठक में जनता के मुद्दों को रखते हैं। जिससे उन कामों को किया जा सके। लेकिन पिछले 22 साल में अभी तक मात्र एक बार ही वर्ष 2000 में न्यास में 15 न्यासी सदस्य मनोनीत हुए थे। जिनमें से 13 राज्य सरकार द्वारा और दो नगर निगम के विशेष कोटे से थे। उसके बाद भाजपा और कांग्रेस सरकार में अध्यक्ष तो मनोनीत हुए लेकिन न्यासी नहीं बने। जिससे जनता के प्रतिनिधि के रूप में मात्र अध्यक्ष ही भागीदारी निभाते रहे हैं।  वर्तमान में न्यास में जनता की आवाज व उनके मुद्दे उठाने वाला कोई नहीं है।

वर्ष 1971 में हुआ था न्यास का गठन
कोटा में वर्ष 1971 में नगर विकास न्यास का गठन किया गया थो। उसके बाद से यहां कई जनप्रतिनिधि अध्यक्ष रह चुके हैं। जबकि जनवरी 2019 के बाद से अभी तक भी न्यास में अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं होने से न्यास अध्यक्ष के रूप में जिला कलक्टर व न्यास के सचिव ही काम कर रहे हैं। हालांकि इस सरकार में न्यास अध्यक्ष को तो नियुक्त नहीं किया।  उनके स्थान पर सेवानिवृत आरएएस अधिकारी व न्यास में ही सचिव रहे आर.डी. मीणा को विशेषाधिकाारी नियुक्त किया हुआ है। शुरुआत में उनकी नियुक्ति एक साल के लिए की गई थी। जिसमें उनकी भूमिका न्यास के कामों में सलाहकार के रूप में थी। लेकिन उनका कार्यकाल हर साल बढ़ रहा है। वर्तमान में हालत यह है कि विशेषाधिकारी ही पूरी यूआईटी का संचालन कर रहे हैं। 

न्यास में मेहता रहे अंतिम अध्यक्ष
नगर विकास न्यास में अंतिम अध्यक्ष के रूप में रामकुमार मेहता रहे हैं। उनका कार्यकाल 7 जुलाई 2016 से 21 दिसम्बर 2018 तक रहा है। उसके बाद राज्य में सत्ता परिवर्तन होने के कारण उन्होंने त्याग पत्र दे दिया था। जबकि कांग्रेस के दो कार्यकाल में रविन्द्र त्यागी दो बार अध्यक्ष रह चुके हैं। पहले कार्यकाल में वर्ष 2000 से 2003 तक व दूसरे कार्यकाल में 2011 से 2013 तक।

जिला कलक्टर के पास न्यास अध्यक्ष का चार्ज
न्यास में अध्यक्ष की राजनीतिक नियुक्ति नहीं करने से करीब साढ़े तीन साल से जिला कलक्टर ही न्यास अध्यक्ष के रूप में काम कर रहे हैं। पूरे जिले के रोजाना सैकड़ों काम होने के बाद एक जिला कलक्टर अरबों रुपए के विकास कार्य करवाने वाली संस्था न्यास के अध्यक्ष का अतिरिक्त चार्ज संभालकर कितना काम करवा सकता है। इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। हालांकि स्वायत्त शासन मंत्री कोटा के होने और न्यास में विशेषाधिकारी का मंत्री के नजदीकी होने से जिला कलक्टर द्वारा कलक्ट्री के काम में देरी की जा सकती है लेकिन यूआईटी के काम में नहीं। इसकी पुष्टि एक दिन पहले निवर्तमान जिला कलक्टर ने अपने फेसबुक पोस्ट में जताई पीड़ा में भी कर दी है।

शहरवासियों का मत
नगर विकास न्यास में जब अध्यक्ष का पद है तो उसमें जनता की भागीदारी के लिए नियुक्ति होनी ही चाहिए। जिससे वह जनता के हित के कामों को करवा सके। जबकि जिला कलक्टर बाहर से आए अधिकारी होते हैं उनके पास पहले से ही काम का इतना अधिक बोझ होता है कि वे न्यास में विकास के कामों पर पूरा फोकस नहीं कर पाते। जन भागीदारी नहीं होने से अधिकारी मनमानी करते हैं। वर्तमान में जिस तरह के हालात बने हैं उनके लिए न्यास के अधिकारी जिम्मेदार हैं। एक साथ सभी जगह के काम बिखेर दिए। बरसात में ये काम परेशानी का कारण बनेंगे।
- जी.डी. पटेल, समाजसेवी

नगर विकास न्यास में अध्यक्ष का पद राजनीतिक नियुक्ति से किया ही इसलिए जाता है कि वह जनता के कामों को करवा सके। जनता की प्राथमिकता के कामों को अधिकारियों को बता सके। लेकिन साढ़े तीन साल से न्यास में अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं करने से जनता को ही नुकसान हो रहा  है। व्यक्तिगत हितों की पूर्ति एक व्यक्ति विशेष के माध्यम से की जा रही है। जनप्रतिनिधि नेताओं व आमजन सभी के काम करेगा जबकि अधिकारी एक व्यक्ति विशेष के लिए काम कर रहे हैं।
- महेश गुप्ता, वरिष्ठ अधिवक्ता

शहर में पहले भी नगर विकास न्यास के माध्यम से काम हुए हैं। उसमें जनता को उतनी परेशानी नहीं हुई। जिनती वर्तमान में हो रही है। इसका कारण पहले चाहे कांग्रेस शासन रहा हो या भाजपा न्यास में अध्यक्ष जनता का प्रतिनिधि व स्थानीय व्यक्ति होता था। जिससे वह काम को प्राथमिकता से और एक काम पूरा होने के बाद दूसरा शुरू करवाता था। लेकिन वर्तमान में अध्यक्ष का कार्य भार जिला कलक्टर के पास होने से उन्हें शहर के बारे में अधिक जानकारी नहीं होती। ऐसे में अधिकारी जहां चाहे जो चाहे वैसा काम कर रहे हैं। उन पर लगाम लगाने वाला एक मंत्री के अलावा कोई  अन्य जनप्रतिनिधि नहीं है। इसाका खामियाजा जनता को ही परेशानी के रूप में भुगतना पड़ रहा है।
- राजेश गुप्ता, व्यवसायी

इनका कहना है...
नगर विकास न्यास में अध्यक्ष और न्यासी होने से जनता का प्रतिनिधित्व तो होता ही है। साथ ही जनता के काम भी तीव्रता से होते हैं। जनता की समस्याओं को सुनकर उनका त्वरित निस्तारण भी होता है। अध्यक्ष व न्यासी जनता की बात को अधिकारियों तक रखते हैं और विकास के कामों की प्राथमिकता बताते हैं। बिना अध्यक्ष व  न्यासी के अधिकारी अपनी मनमर्जी से काम करते हैं। भाजपा शासन की तुलना में कांग्रेस शासन में अध्यक्ष तो नियुक्त हुए हैं।
- महेन्द्र शर्मा, पूर्व न्यासी

शहर के विकास की सबसे बड़ी संस्था है नगर विकास न्यास। हर साल अरबों रुपए के बजट से विकास कार्य करवाए जाते हैं। न्यास में अध्यक्ष की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा की जाती है। अध्यक्ष जनप्रतिनिधि होने से जनता की भागीदारी व जनता के कामों को प्राथमिकता से करवाने का प्रयास किया जाता है। साथ ही अधिकारियों पर भी लगाम रहती है। जबकि बिना अध्यक्ष के जनता की सुनवाई और काम उतनी तीव्र गति से नहीं हो सकते। जिला कलक्टर के पास न्यास अध्यक्ष का चार्ज रहता है तो उनके पास पहले से ही पूरे जिले का इतना अधिक काम है कि वे न्यास के कामों पर पूरा ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाते हैं।  न्यास में पूर्णकालिक अध्यक्ष होना ही चाहिए।
- रामकुमार मेहता, पूर्व अध्यक्ष नगर विकास न्यास

नगर विकास न्यास में अध्यक्ष की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा की जाती है। दो बार अध्यक्ष रहते हुए शहर में विकास के काफी काम करवाए। जनता का प्रतिनिधि न्यास में होने से उनकी सुनवाई व काम को समय पर करवाने का प्रयास किया जाता है। जबकि जिला कलक्टर के पास न्यास अध्यक्ष का चार्ज होने से वह जिले के अन्य कामों के साथ न्यास के कामों पर उतना ध्यान नहीं दे पाते। न्यास में अध्यक्ष की नियुक्ति होनी चाहिए। लेकिन यह अधिकार राज्य सरकार का है।
- रविन्द्र त्यागी, पूर्व अध्यक्ष नगर विकास न्यास

Post Comment

Comment List

Latest News

कश्मीर से लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने का पार्टी का था फैसला : आजाद कश्मीर से लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने का पार्टी का था फैसला : आजाद
संसद का चुनाव नहीं लड़ने का फैसला पार्टी ने लिया है। उन्होंने कहा कि वह चुनाव नहीं लड़ने के लिए...
इस बार मोदी की बेव नहीं, विकास के मुद्दों पर राजनीति नहीं केवल चुनाव हो : पायलट
राजस्थान में सभी 25 लोकसभा सीट जीतेगी भाजपा : पूनिया
पाकिस्तान में आत्मघाती हमला, बचे 5 जापानी नागरिक
निर्वाचन विभाग की नहीं मिली वोटर पर्ची, बूथ पर मतदान कर्मियों से उलझे लोग
बंगाल में चुनाव के दौरान हिंसा, भाजपा-तृणमूल कार्यकर्ताओं के बीच पथराव 
अर्विक बैराठी ने लोगों को वोटिंग के लिए किया प्रोत्साहित