कारोबारियों के हित में एक सही फैसला

आरबीआई ने अन्तरराष्ट्रीय कारोबारी सौदों को भारतीय रुपए में निपटाने की दी अनुमति

कारोबारियों के हित में एक सही फैसला

कारोबारी साझेदारों के साथ विनिमय दर बाजार द्वारा निर्धारित की जाएगी।

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने अन्तरराष्ट्रीय कारोबारी सौदों को भारतीय रुपए में निपटाने की अनुमति देकर कारोबारियों के हित में एक सही फैसला किया है। इससे आयातकों और निर्यातकों को अपने भुगतान निपटाने का एक अतिरिक्त विकल्प मिल जाएगा। आरबीआई ने यह घोषणा की है कि नए प्रारूप के तहत होने वाले सभी आयात-निर्यात रुपए में निपटाए जा सकेंगे। कारोबारी साझेदारों के साथ विनिमय दर बाजार द्वारा निर्धारित की जाएगी। इसी तरह आरबीआई की तरफ से भारतीय बैंकों को यह अनुमति दी गई है कि वे कारोबारी साझेदारी देशों में विशेष वोस्ट्रो खाते खोल सकेंगे। ये ऐसे खाते होते हैं, जो एक बैंक किसी दूसरे बैंक के लिए खोलता है। इससे भारतीय आयातक रुपए में भुगतान कर सकेंगे। इस भुगतान को कारोबारी साझेदार देश के एक विशेष खाते में जमा किया जाएगा। इसी प्रकार निर्यातक भी विदेशों से रुपए में भुगतान ले सकेंगे। आरबीआई का कहना है कि यह नई व्यवस्था भारत से अन्तरराष्ट्रीय कारोबार और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए की गई है। यह व्यवस्था एक तरह से समय की मांग के अनुरूप ही है। देखा जा रहा है कि रुपए तथा कुछ अन्य मुद्राओं पर भारी दबाव है और आरबीआई अपने मुद्रा भण्डार का प्रयोग इस गिरावट को कम करने के लिए कर रहा है। वित्त वर्ष में चालू खाते का नुकसान सकल घरेलू उत्पाद से तीन प्रतिशत से ऊपर रहने की उम्मीद है और पूंजी खाते से भी धन का बहिर्गमन हो रहा है।

ऐसा इसलिए कि वैश्विक वित्तीय तंत्र में जोखिम से बचने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने वर्ष के आरंभ से अब तक करीब तीस अरब डॉलर मूल्य की भारतीय परिसम्पत्तियों की बिक्री की है। सैद्धांतिक रूप से देखा जाए, तो अगर भारत के कारोबार का अहम हिस्सा रुपए में निपटाया जाता है, तो चालू खाते के नुकसान की भरपाई आसान हो जाएगा। इससे विनिमय दर को स्थिरता मिलेगी। वर्तमान में भारत चालू खाते के नुकसान से जूझ रहा है। इसलिए संभव है कि कारोबारी साझेदारों के पास अधिशेष भारतीय मुद्रा रह जाए। इसका इस्तेमाल भारतीय परिसम्पत्तियों में निवेश के लिए किया जा सकता है। हालांकि निकट भविष्य में ऐसा होता संभव नहीं लगता है, क्योंकि अधिकांश वैश्विक व्यापार अमेरिकी डॉलर में निपटाया जाता है। आने वाले दिनों में यह व्यवस्था बदलती दिखाई नहीं देती है। मौजूदा हालात में ज्यादातर साझेदार रुपए में भुगतान को तैयार नहीं होंगे, लेकिन इस व्यवस्था का लाभ रूस और श्रीलंका से निपटने में उपयोगी साबित हो सकती है।

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