लोगों की आय सीमित
कार्मिकों के वेतन भत्तों में कटौती
नौकरी की मजबूरी के चलते कार्मिकों को भी सब कुछ सहन करना पड़ा। महंगाई की मार के साथ ही आम उपभोक्ताओं की मानसिकता में भी अब तेजी से बदलाव देखने को मिलने लगा है।
महंगाई के चलते लोगों की आय सीमित हो गई है। कोरोना का असर यह रहा है कि लोगों की नौकरी छुटी, तो नौकरी को बचाने के लिए कई समझौते करने पड़े। संस्थानों ने नियोक्ताओं ने कार्मिकों के वेतन भत्तों में कटौती की। नौकरी की मजबूरी के चलते कार्मिकों को भी सब कुछ सहन करना पड़ा। महंगाई की मार के साथ ही आम उपभोक्ताओं की मानसिकता में भी अब तेजी से बदलाव देखने को मिलने लगा है। बाजार के बदलते हालातों ने अब आम लोगों को ब्रांडेड के स्थान पर आम उत्पादों यानी कि लोकल उत्पादों की और प्रेरित किया है, तो अनावश्यक खर्चो में कटौती करने को भी मजबूर किया है। एक्सिस माई इंडिया द्वारा हाल ही कराए गए कंज्यूमर सेंटीमेंट इंडेक्स सर्वे की नवीनतम रिपोर्ट में यह तथ्य उभर कर आए हैं। सभी तरह की उपभोक्ता वस्तुओं के कीमतों की बढ़ोतरी का असर सीधे रूप से बाजार में दिखाई देने लगा है। अब कोई भी वस्तु खरीदने से पहले आम आदमी दस बार सोचने लगा है और ब्रांड के साथ ही उसकी कीमत भी देखने लगा है। हालात यहां तक आने लगे हैं कि लक्जरियस वस्तुओं की खरीद को तो आम नागरिक कुछ समय के लिए डेपर करने में ही भलाई समझने लगे हैं। बाजार जानकारों की माने तो देश में तेज गर्मी के बावजूद एसी सहित अन्य इलेक्ट्रृोनिक उत्पादों की खरीद में 25 प्रतिशत तक की कमी दर्ज की गई है। संपन्न लोग भी मोबाइल हैंडसेट बदलने को डेफर कर रहे हैं तो नामी गिरामी नाम के स्थान पर लोग स्थानीय उत्पादों को तरजीह देने लगे हैं।
यह सभी बाजार में बढ़ती कीमतों के कारण हो रहा है। दरअसल कोरोना दौर का असर अभी तक जारी हैं। पूरी तरह से मार्केट संभल भी नहीं पाया है तो सोवियत रुस यूक्रेन युद्ध ने कोढ़ में खाज का काम कर दिया है। पर्यावरण असंतुलन के चलते तेज गर्मी व प्राकृतिक आपदाओं से दुनिया के देश जूझ रहे है तोे आतंकवादी या हिंसक घटनाओं से कई देशों को दो चार होना पड़ रहा हैं। दुनिया के देशों में राजनीतिक अस्थितरता के कारण भी हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। दुनिया के देशों के सामने खाद्यान्न संकट मुंह बाये खड़ा है तो कच्चे तेल के बढ़ते भावोें के कारण महंगाई दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। लाख प्रयासों के बावजूद महंगाई कंट्रोल में आने का नाम ही नहीं ले रही है। रुस यूक्रेन युद्ध से अलग हटकर भी देखे तो इंग्लैण्ड, इजरायल और कुछ हद तक अमेरिका के राजनीतिक हालात अच्छे नहीं कहे जा सकते तो श्रीलंका के हालात सामने आ चुके हैं। पाकिस्तान के हालात किसी से छिपे नहीं हैं तो अफगानिस्तान के हालातों से भी सभी को जानकारी है। ऐसे में आर्थिक हालात पटरी पर आने की बात करना ही बेमानी होगा। यदि पेट्रोल-डीजल के भावों को लेकर ही विश्लेषण किया जाए तो हम पाएंगे कि इनके बढ़ते दाम का असर पूरे बाजार पर तत्काल पड़ता है। क्योंकि वस्तुओं का परिवहन महंगा हो जाता है तो मूल्य में बढ़ोतरी स्वाभाविक ही हो जाती है। यह कोई अकेला कारक नहीं है, पर इसका अपना और महत्वपूर्ण असर देखा जा सकता है। लोगों की आय सीमित हो गई है। कोरोना का असर यह रहा है कि लोगों की नौकरी छुटी तो नौकरी को बचाने के लिए कई समझौते करने पड़े। संस्थानों नियोक्ताओं ने कार्मिकों के वेतन भत्तों में तेजी से कटौती की।
नौकरी की मजबूरी के चलते कार्मिकों को भी सब कुछ सहन करना पड़ा। कोरोना के बाद भी कई क्षेत्र तो ऐसे हैं जिनके पटरी पर आने में लंबा समय लगना तय माना जा रहा है। पर्यटन उद्योग, होटल उद्योग अभी पूरी तरह से पटरी पर नहीं आ पाया है तो दूसरी और कृषि लागत में बढ़ोतरी और न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी से खाद्यान्न महंगें होते जा रहे हैं। चीन के कारण भी दुनिया के देशों की आर्थिक गतिविधियां प्रभावित हुई हैं। कोरोना के बाद से दुनिया के अधिकांश देशों की नजर में चीन विलेन के रुप में उभरा है वहीं चीन अभी भी कोरोना संकट से गुजर रहा है। लोग चीन से बेतहासा नाराज हैं। समय के साथ उसके मिजाज में बदलाव भी आता है। बाजार के हालिया हालातों से यह साफ हो जाता है। भारतीय बाजार की ही चर्चा करें तो भारतीय उपभोक्ता की मानसिकता को इसी से समझा जा सकता है कि 16 माह में स्मार्ट फोन बदलने वाले उपभोक्ता अब इसे आठ से बारह महीने व इससे भी अधिक के लिए डेफर करने लगे हैं तो बेतहासा गर्मी के बावजूद एसी मार्केट उतना नहीं उठ पाया जितनी संभावना मानी जा रही थी। सरकारों की लाख योजनाओं के बावजूद लोगों की स्वास्थ्य खर्च की चिंता अधिक बढ़ी है। कोरोना के बाद लोग स्वास्थ्य के प्रति अधिक सावचेत हुए हैं। इसके साथ ही मेडिकल इंश्योरेंस के प्रति लोगों का रुझान बढ़ा है, जिस तरह से लोगों ने पेट्रोल -डीजल के भावों से समझौता कर ही लिया है तो फिर उसकी खानापूर्ति अपने अन्य खर्चों यहां तक कि घरेलू दिन प्रतिदिन के खर्चों में भी कमी करके की जाने लगी है।
- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
(ये लेखक के अपने विचार है)
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