वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे आज : सकारात्मक सोच से सुधरेगा मानसिक स्वास्थ्य
आज पूरे विश्व में मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जा रहा है।
आज पूरे विश्व में मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जा रहा है। यह दिन मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियों और उससे बचने के लिए जनता को समझाने के उद्देश्य से मनाया जाता है। गत वर्ष जब विश्व में कोरोना आया तो इस दिन का महत्व उतना अधिक नजर नहीं आ रहा था जितना कि कोरोना प्रकोप के बाद हो गया है। यदि सीधी सपट कही जाए तो कोरोना ने इस दिन का महत्व इतना अधिक कर दिया है जितना की कोरोना में उपचार का महत्व था।
इस बात पर बहस हो सकती है कि ऐसा क्यों? सीधी सी बात है कि कोरोना से पहले हर व्यक्ति अपने स्वास्थ्य के प्रति उतना जागरूक नहीं था जितना की कोरोना के बाद हुआ। कोरोना ने हमारी मेंटल स्ट्रेस पर सीधा असर डाला और इससे डिप्रेशन, डिमेंशिया, फोबिया तथा इंजायटी जैसी समस्याओं ने मानसिक बीमारियों की दर में एकदम उछाल ला दिया। वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे का महत्व गत वर्ष भी था,लेकिन तब कोरोना उतने भयावह रूप में सामने नहीं आया था जितने रूप में यह वर्ष 2021 में आया। इसके पीछे जो भी कारण थे वह अलग थे,लेकिन इस कोरोना ने हमें सोशल डिस्टेंसिंग और आइसोलेशन की दुनिया में ढकेल दिया। जब इंसान अकेला रह जाता है तो वह खुद को बीमार महसूस करता है और फिर आरंभ होता है बीमारियों का वह दौर जिसके लिए वह कभी तैयार नहीं होता। शायद इसी कारण से उसकी मेंटल हैल्थ पर बुरा प्रभाव होता है। यह कहा जा रहा है कि विश्व का हर दसवां व्यक्ति मानसिक समस्या से परेशान है,अगर यह सच है तो विश्व की दस प्रतिशत आबादी मानसिक बीमारियों का शिकार है जो हमारे भविष्य यानी इंसानी सभ्यता के लिए बड़ी चिंता का विषय है।
जरूरतों का दौर और स्वास्थ्य
यदि यह दौर कोरोना के विदा होने का है तो बेहतर स्वास्थ्य के साथ ही हमारी दूसरी जरूरतें भी दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं। गत दो वर्ष में हर कोई आर्थिक रूप से काफी कमजोर हुआ है। महंगाई की बात छोड़ भी दें तो कोरोना जैसी बीमारी जिसने कैंसर और दूसरी गंभीर बीमारियों के उपचार में होने वाले खर्चों को भी मात देकर हर किसी को गरीबी के उस मुहाने पर पहुंचाया है,जिस पर पहुंचकर मानव का मानसिक तनाव का शिकार होना लाजिमी है। उपचार में 50 लाख रूपए तक खर्च हुए लेकिन फिर भी तमाम कोरोना पेशेंट की जान नहीं बच सकी। उन परिवारों के लिए यह घटना एक ऐसी दुर्घटना ही थी जो किसी को भी किसी भी परिस्थिति में मानसिक बीमार करने में बड़ी कारक है। जब उपचार में बड़ी राशि खर्च हो जाने के बाद भी परिवारों को राहत नहीं मिली,परिवार के कई सदस्य अपनी जान गंवा बैठे तो न जाने कितने लोग डिप्रेशन, डिमेंशिया ,फोबिया तथा इंजायटी जैसी समस्याओं के शिकार हो गए। जब कोरोना जाने को है जैसा लग रहा है तब भी अभी तक ऐसे आंकड़े सामने नहीं आए हैं कि कितने लोगों को मानसिक बीमारियों ने जकड़ा है लेकिन यह तय है कि इस समस्या से उत्पन्न बीमारियों ने ग्लोबल रूप में भारी उछाल लिया है। पर अब इस जरूरतों के दौर में स्वास्थ्य समस्याओं से कुछ निजात मिलती सी नजर आ रही है।
चिकित्सा का नया अध्याय
भारत में चिकित्सा व्यवस्था की कितनी भी बेहतर व्यवस्थाएं हो जाएं, लेकिन इनमें झोल के कारण आम आदमी हमेशा से ही अपने को दबा-कुचला महसूस करता रहा है। शायद इसका कारण यह भी हो सकता है कि हमारी जो चिकित्सा प्रणाली है वह आम जन को समझ में कम ही आती है। हेल्थ सेलिब्रिटी मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए तो तमाम सुझाव देते हैं,लेकिन आज तक कोई ऐसी बेहतर प्रणाली सामने नहीं आई जिससे एक आम जीवन जीने वाला व्यक्ति किसी भी चिकित्सालय में जाकर संतुष्ट हो जाए कि उसका उपचार सही और कम से कम खर्च में हो जाएगा।
नेशनल हेल्थ मिशन
सितंबर के अंतिम सप्ताह में देश में नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन के तहत यूनिक डिजिटल हेल्थ कार्ड भी बनना आरंभ हुआ है। इस कार्ड की विशेषता है कि इसमें आपकी पूर्व और अभी की बीमारियों का पूरा डेटा होगा। इससे आप देशभर में कहीं भी जाएंगे तो आपको डाक्टर को हर बात बताने की जरूरत नहीं होगी। आपका कार्ड खोलते ही सबकुछ उसमें आ जाएगा। यदि यह योजना आधार कार्ड की तरह सफल हो जाती है तो तय है कि देश की चिकित्सा व्यवस्था में बहुत बड़ा परिवर्तन हो जाएगा। किसी भी मरीज के लिए यह कार्ड एक ऐसी सुविधा होगी जो उसे उन तमाम परेशानियों से राहत दिलाएगी जो वह उपचार के दौरान झेलता है। उदाहरण के लिए यदि कोई मरीज अकेला भी चिकित्सक के पास जाता है और उसका यूनिक कार्ड चिकित्सक खोल लेगा तो मरीज की सारी कहानी उसे पता चल जाएगी जिससे वह उपचार जल्दी और बेहतर कर पाएगा। किसी भी मरीज के लिए इससे अधिक मानसिक चिंता कम होने का सरल उपाय और क्या होगा। खैर जो भी हो जब हम आज वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे मना रहे हैं तो यह सभी के लिए अच्छी खबर हो सकती है कि भारत में अब जल्दी ही चिकित्सा जगत में व्यापक बदलाव आने वाला है,जिससे हर व्यक्ति लाभाविन्त होगा।
अब बदलेगा चिकित्सा जगत
पूरे प्रदेश में गत दो वर्षों में जिस तरह से चिकित्सा सेवाओं के लिए सरकारों ने अपने कदम बढ़ाए हैं ,उससे उम्मीद का दीया तेजी से रोशनी देता नजर आ रहा है। राजस्थान को ही लें तो यहां पर लगभग हर शहर में दूसरी लहर के बाद आक्सीजन के प्लांट लगाने का काम जारी है। माना जा रहा है अगर अब कोई लहर आती भी है तो कम से कम आक्सीजन की कमी तो नहीं होगी? इधर राजस्थान के 33 जिलों में से 30 में मेडिकल कॉलेज खुल जाने से मरीजों को राहत मिलती नजर आ रही है। हर कोई अब जयपुर या दूसरे महानगर की ओर दौड़ता नजर नहीं आएगा,यह माना जा सकता है। इससे सबसे बड़ी बात जो है वह यह है कि आम आदमी अब चिकित्सा जगत के उन शब्दों को आसानी से समझ सकेगा,दवाओं की दुनिया में अपने आप को ठहरा हुआ सा नहीं पाएगा। क्यों? क्योंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अब मेडिकल की पढ़ाई को हिंदी में कराने की भी घोषण कर दी है। जब बच्चे हिंदी में पढ़ेंगे तो दवा आदि भी हिंदी में ही लिखेंगे। इससे आम आदमी जो मेडिकली शब्दों को नहीं समझ पाता है वह भी उसके उपचार में कौन सी दवा दी जा रही है समझ पाएगा। यह हर किसी के लिए मानसिक राहत की बात होगी। जब मानसिक रूप से राहत मिलेगी तो मानसिक बीमारियोंं में भी कमी आएगी।
मनोज वार्ष्णेय
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