मंकी पॉक्स पर कड़ी निगाह रखे है कोटा

विदेश से आने वाले लोगों पर रखा जा रहा ध्यान : संदिग्ध केस को हेल्थकेयर फैसिलिटी में करेंगे आइसोलेट

मंकी पॉक्स पर कड़ी निगाह रखे है कोटा

देश में मंकीपॉक्स अलर्ट के बाद से राज्य का चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग भी अलर्ट मोड पर है। कोटा में सभी हेल्थ सेंटरों को विदेश से आने वाले लोगों पर कड़ी नजर रखने निर्देश दिए हंै, जिनके शरीर पर दाने दिखते हैं।

कोटा। दुनिया के 70 से ज्यादा देशों में फैले मंकीपॉक्स वायरस ने भारत में दस्तक दे दी है। 14 जुलाई को केरल के कोल्लम जिले से देश का पहला मंकीपॉक्स केस सामने आया। अभी तक दो केस आ चुके हैं। एक मरीज हाल ही में यूएई से केरल लौटा था। वर्ल्ड हेल्थ आॅर्गेनाइजेशन के मुताबिक मंकी पॉक्स चेचक, खसरा, बैक्टीरियल स्किन इंफेक्शन, खुजली, और दवाओं से होने वाली एलर्जी  से अलग होती है। इसमें लिंफ नोड्स में सूजन होती है, जबकि चेचक में ऐसा नहीं होता है। इसका इनक्यूबेशन पीरियड (इंफेक्शन से सिम्प्टम्स तक का समय) आमतौर पर 7-14 दिनों का होता है, लेकिन यह 5-21 दिनों का भी हो सकता है।

मंकीपॉक्स को लेकर कोटा अलर्ट
देश में मंकीपॉक्स अलर्ट के बाद से राज्य का  चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग भी अलर्ट मोड पर है। कोटा में सभी हेल्थ सेंटरों को विदेश से आने वाले लोगों पर कड़ी नजर रखने निर्देश दिए हंै, जिनके शरीर पर दाने दिखते हैं। पिछले 21 दिनों में मंकीपॉक्स सस्पेक्टेड देशों की ट्रैवल हिस्ट्री, किसी मंकीपॉक्स सस्पेक्टेड से सीधा संपर्क रहा हो। ऐसे सभी संदिग्ध केस को हेल्थकेयर फैसिलिटी में आइसोलेट किया जाएगा, जब तक उसके दानों की पपड़ी नहीं उधड़ जाती। मंकीपॉक्स संदिग्ध मरीजों के फ्लूइड या खून का सैंपल एनआईवी पुणे में टेस्ट के लिए भेजा जाएगा। अगर कोई पॉजिटिव केस पाया जाता है, तो फौरन कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग शुरू की जाएगी। विदेश से आने वाले यात्रियों को ऐसे लोगों के संपर्क में आने से बचना चाहिए जो स्किन रोग से पीड़ित हों। यात्रियों को चूहे, गिलहरी, बंदर सहित जीवित अथवा मृत जंगली जानवरों के संपर्क में नहीं आना चाहिए। अफ्रीकी जंगली जीवों से बनाए गए उत्पादों जैसे- क्रीम, लोशन, पाउडर का इस्तेमाल करने से बचें। शिकार से प्राप्त मांस को न तो खाएं और न ही बनाएं।

इम्वाम्यून वैक्सीन मौजूद
कोविड टीकारण प्रभारी डॉ. अभिमन्यु शर्मा ने बताया कि अमेरिका की नेशनल हेल्थ एंजेसी सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन यानी सीडीसी  ने अपनी वेबसाइट पर बताया है कि मंकीपॉक्स के संक्रमण के लिए अभी कोई इलाज उपलब्ध नहीं है, लेकिन दवा के साथ इसे रोका जा सकता है। मार्केट में पहले से ऐसी दवाएं मौजूद हैं जो मंकीपॉक्स के इलाज में इस्तेमाल के लिए अप्रूव्ड हैं और बीमारी के खिलाफ प्रभावी रही हैं। जैसे- सिडोफोविर, एसटी-246 और वैक्सीनिया इम्युनोग्लोबुलिन का इस्तेमाल मंकीपॉक्स के संक्रमण में किया जाता है। मंकीपॉक्स की रोकथाम और उपचार के लिए जैनियोस टीएम वैक्सीन भी उपलब्ध है जिसे इम्वाम्यून या इम्वेनेक्स के नाम से भी जाना जाता है। इस वैक्सीन को डेनिश दवा कंपनी बवेरियन नॉर्डिक बनाती है। अफ्रीका में इसके इस्तेमाल के पिछले आंकड़े बताते हैं कि यह मंकीपॉक्स को रोकने में 85 प्रतिशत  प्रभावी है।

95 फीसदी मरीजों में चेहरे पर होते हैं दाने
मंकीपॉक्स में स्किन पर दाने आमतौर पर बुखार आने के दो दिनों के अंदर दिखाई देते हैं। 95 प्रतिशत मामलों में ज्यादातर दाने चेहरे पर निकलते हैं। 75 प्रतिशत केसेज में दाने हथेली और पैरों के तलवों में होते हैं। जबकि 70 प्रतिशत केसेज में ये ओरल म्यूकस झिल्ली को प्रभावित करता है। साथ ही ये आंखों और प्राइवेट पार्ट्स एरिया में भी देखने को मिलता है। मंकीपॉक्स होने के बाद स्किन फटने का स्टेज 2 से 4 सप्ताह के बीच रह सकता है। पहले ये दाने पानी और फिर मवाद से भर जाते हैं, और फिर इन पर पपड़ी पड़ जाती है। यह काफी पेनफुल स्टेज होता है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि मरीजों को आंखों में दर्द या धुंधला दिखाई दे, सांस लेने में तकलीफ हो और कम पेशाब हो तो अलर्ट हो जाना चाहिए। खुद को आइसोलेट कर लेना चाहिए।

अब तक दुनिया में 14 हजार मामले आ चुके सामने
क्या है मंकी पॉक्स का इलाज?
डॉ.ओपी मीणा ने बताया कि  मंकी पॉक्स के मरीजों को सिस्टेमैटिक ट्रीटमेंट दिया जाता है। अगर बुखार है तो पेरासिटामोल दिया जाता है।  अगर किसी को स्किन में प्रॉब्लम है तो स्किन का इलाज किया जाता है।  ज्यादातर मंकी पॉक्स के मामले 2 से 3 हफ्ते में ठीक हो जाते हैं।  जिन लोगों की इम्युनिटी कमजोर होती है उनको थोड़ी परेशानी होती है।

ऐसी होती है जांच
डॉ. अभिमन्यु शर्मा ने बताया कि इसका टेस्ट नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ वायरोलॉजी पुणे में होता है।  यह अलग वायरस है. दिल्ली में अब तक इसका एक भी केस नहीं है, इसलिए इसके बारे में जानकारी सीमित है।  अभी हम डब्ल्यूएचओं की गाइडलाइंस और भारत सरकार के निर्देशों को फॉलो कर रहे हैं।  बुश मीट और वाइल्ड एनिमल्स के जरिए यह फैलता है। मंकी पॉक्स में मरीज को स्किन पर निशान आता है, रैशेज होते हैं, बुखार, आंखों में लालपन और मसल्स पेन भी इसके लक्षण हैं।

पहली बार 1970 में हुआ मंकीपॉक्स आउटब्रेक
1970 में कॉन्गो में मंकीपॉक्स का पहला ह्यूमन केस सामने आया था। इसके बाद ये 11 अफ्रीकी देशों में रिपोर्ट किया गया है।  बेनिन, कैमरून, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक आॅफ कॉन्गो, गैबोन, लाइबेरिया, नाइजीरिया, रिपब्लिक आॅफ कॉन्गो, सिएरा लियोन और साउथ सूडान।अफ्रीका के बाहर मंकीपॉक्स का पहला आउटब्रेक 2003 में अमेरिका में हुआ था। ये पालतू कुत्तों के संपर्क में आने से फैला था। ये पालतू कुत्ते ऐसे चूहों के साथ रखे गए थे, जिन्हें घाना से इंपोर्ट किया गया था। तब अमेरिका में 70 मामलों की पुष्टि हुई थी। इसके अलावा इजरायल में 2018 में, ब्रिटेन में 2018, 2019, 2021 और 2022 में, सिंगापुर में 2019 में मंकीपॉक्स के मामले पाए गए। इन सभी केस की कोई न कोई ट्रैवल हिस्ट्री थी।

मंकीपॉक्स और चेचक एक ही वायरस फैमिली से
पहली बार मंकीपॉक्स 1958 में खोजा गया था। तब रिसर्च के लिए रखे दो बंदरों में चेचक जैसी बीमारी के लक्षण सामने आए थे। इंसानों में इसका पहला मामला 1970 में कॉन्गों में 9 साल के बच्चे में पाया गया। आम तौर पर ये बीमारी रोडेंट्स यानी चूहे गिलहरी और नर बंदरों से फैलती है। मंकीपॉक्स और चेचक एक ही वायरस फैमिली से हैं। डब्ल्यूएचओ  और दुनिया भर की नेशनल हेल्थ एजेंसियों के पास चेचक से लड़ने का दशकों का अनुभव है, जिसे 1980 में दुनिया से खत्म घोषित कर दिया गया था। उसका अनुभव मंकीपॉक्स के इलाज में काम आ सकता है। इतने सालों में यह बीमारी कभी भी बड़े पैमाने पर अफ्रीका के बाहर नहीं गई, लेकिन इस बार बिना अफ्रीका की ट्रैवल हिस्ट्री के विकसित देशों में मंकीपॉक्स के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। इसी नए पैटर्न की वजह से दुनिया घबराई हुई है।

कितनी खतरनाक है ये बीमारी?
कोरोना के मुकाबले मंकी पॉक्स के मामले में मृत्यु दर काफी कम है। अभी तक भारत में मंकी पॉक्स से एक भी मौत नहीं हुई है। 2 मामले जरूर सामने आए हैं। ये वैसे लोग थे जो विदेश से आए हंै और मंकी पॉक्स से संक्रमित लोगों के संपर्क में आए थे। इस बीमारी में इंसान से इंसान में संक्रमण हो सकता है। इससे बचाव सबसे जरूरी है। मास्क का प्रयोग करना सबसे जरूरी है। सामान्य मास्क का भी प्रयोग किया जा सकता है। इसके साथ साथ सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखना भी जरूरी है। यदि किसी व्यक्ति में मंकी पॉक्स के लक्षण सामने आते हैंंंंंंंंंं तो उसे तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। इसके टेस्ट के लिए स्किन से स्लेट लिया जाता है। इसका टेस्ट स्किन से होता है। इसके जांच से हमे पता चलता है की इंसान में मंकी पॉक्स का वायरस है या कोई दूसरा वायरस।

मंकीपॉक्स के 14 हजार मामलों की पुष्टि
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने दुनिया भर में मंकीपॉक्स के 14 हजार मामलों की पुष्टि की है। अफ्रीका में पांच लोगों की मौत हुई हैं। इसकी जानकारी डब्ल्यूएचओ के महासचिव टेड्रोस अधनोम घेब्रेसियस ने दी थी।  दिल्ली सरकार  ने भी इसको लेकर तैयारियां शुरू कर दी है।  दिल्ली सरकार ने लोक नायक जय प्रकाश  अस्पताल को इसके लिए नोडल अस्पताल बनाया है और इस अस्पताल में 6 बेड का एक स्पेशल वार्ड भी तैयार किया  है।   गुरुवार को, डब्ल्यूएचओ ने  समिति की दूसरी बैठक ली। 15 जुलाई को डब्ल्यूएचओ ने दुनियाभर में मंकीपॉक्स संक्रमण के 11634 मामलों की पुष्टि की थी। 21 जुलाई को यह आंकड़ा 14 हजार तक पहुंच गया है। इस तरह पांच  दिनों में संक्रमण के तकरीबन साढ़े तीन हजार मामले सामने आए हैं। असल में अभी तक अमेरिका, कनाड़ा में मंकीपॉक्स संक्रमण के सबसे अधिक मामले सामने आ चुके हैं। वहीं दुनिया के 75 से अधिक देशों में अभी तक मंकीपॉक्स संक्रमण रिपोर्ट हो चुका है।

कोरोना और इसमें क्या समानता है
डॉ. जगदीश सोनी ने बताया कि यह कोरोना  से बिल्कुल अलग है।  यह एक डीएनए वायरस है, इसमें ह्यूमन टू ह्यूमन ट्रांसमिशन  भी होता है। यदि कोई पेशेंट के क्लोज कॉन्टेक्ट में हो, क्लॉथ शेयर करते हैं, तो उसमें भी ट्रांसमिशन हो सकता है। मदर टू चाइल्ड ट्रांसमिशन के भी केस आ सकते हैं। मंकीपॉक्स का इस बार का प्रसार बहुत असामान्य है। क्योंकि ये नॉर्थ अमेरिका और यूरोपियन देशों में तेजी से फैल रहा है, जहां आमतौर पर ये वायरस नहीं पाया जाता है। यूरोप मंकीपॉक्स के प्रसार का प्रमुख केंद्र बनकर उभरा है। इस साल अब तक मंकीपॉक्स के कंफर्ड केसेज में से 80% से ज्यादा केस यूरोपीय देशों से आए हैं। अमेरिका के 37 राज्यों में अब तक मंकीपॉक्स के 750 से ज्यादा कैसेज सामने आए हैं।

महामारी में बदलने की संभावना कम, सावधानी जरूरी
यूरोप में डब्ल्यूएचओ की पैथागन थ्रेट टीम के प्रमुख रिचर्ड पेबॉडी के मुताबिक मंकीपॉक्स आसानी से नहीं फैलता और इससे फिलहाल कोई जानलेवा गंभीर बीमारी नहीं हो रही। इसके आउटब्रेक को लेकर कोविड-19 जैसे बड़े वैक्सीनेशन की जरूरत नहीं है। लोग संक्रमण से बचाव के लिए  हाइजीन का ध्यान रखें और नियमित तौर पर हाथ धोते रहें। इसके देशभर में फैलने का रिस्क बहुत कम है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस बात के कोई संकेत नहीं मिले हैं कि मंकीपॉक्स का वायरस म्यूटेट होकर और ज्यादा खतरनाक वैरिएंट विकसित कर रहा है। यह कोविड नहीं है। यह हवा में नहीं फैलता और हमारे पास इसे रोकने के लिए वैक्सीन मौजूद है।
- डॉ. अभिमन्यु शर्मा,  कोविड टीकाकरण प्रभारी कोटा

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