कमजोर बुनियाद पर कैसे हो शिक्षा के मंदिर आबाद

प्राथमिक शिक्षा के बुरे हाल : कहीं खुले में तो कहीं जर्जर भवनों में चल रहे स्कूल, मॉनिटरिंग के नाम पर खानापूर्ति कर रहे अफसर

 कमजोर बुनियाद पर कैसे हो शिक्षा के मंदिर आबाद

बुनियादी शिक्षा बेहतर बनाने और नींव मजबूत करने के इरादे से सरकार, सरकारी स्कूलों को हर सुविधा मुहैया करवा रही है। प्राइवेट स्कूलों की तरह यहां भी शिक्षा का माहौल बने और डेकोरम डवलप हो, इस दिशा में नवाचार भी किए जा रहे। नवज्योति कुछ उच्च प्राथमिक स्कूलों में पहुंची तो हकीकत दावों के ठीक उलट थी।

कोटा। बुनियादी शिक्षा बेहतर बनाने और नींव मजबूत करने के इरादे से सरकार, सरकारी स्कूलों को हर सुविधा मुहैया करवा रही है। प्राइवेट स्कूलों की तरह यहां भी शिक्षा का माहौल बने और डेकोरम डवलप हो, इस दिशा में नवाचार भी किए जा रहे। किताबों से लेकर ड्रेस, भोजन, दूध, तक मुफ्त दिए जा रहे ताकि, आर्थिक समस्या शिक्षा में बाधा न बने।  सरकार की तमाम कोशिशें धरातल पर मूर्त रूप ले रही है, अधिकारियों द्वारा बेहतर प्रबंधन के दावे वर्तमान परिस्थितियों के अनुकूल है, टीचर ट्रैनिंग का अक्स क्वालिटी एजुकेशन के रूप में बच्चों में दिखा, भौतिक संसाधनों की उपलब्धता डिमांड के अनुरूप है। तमाम सवालों का जवाब तलाशने नवज्योति कुछ उच्च प्राथमिक स्कूलों में पहुंची तो हकीकत दावों के ठीक उलट थी। करोड़ों का बजट, योग्य शिक्षकों का अमला, अफसरों से कर्मचारियों तक मजबूत कम्यूनिकेशन, फिर क्यों क्वालिटी एजुकेशन से बच्चा महरूम, जेहन में उठते तमाम सवालों के जवाब शहर के वर्तमान व रिटायर्ड शिक्षकों से जानने का प्रयास किया। इस पर लगभग सभी ने स्वीकारा कि सरकारी स्कूलों के शिक्षा का स्तर गिरा है, कारण अलग-अलग हो सकते हैं।  यह स्कूल सीनियर सैकंडरी में क्रमोन्नत हो चुका है। सोमवार सुबह दस बजे करीब लंच हुआ। कक्षा 5 से 8वीं तक के बच्चे स्कूल परिसर से बाहर घूमते मिले, कई छोटे बच्चे साइकिल दौड़ा रहे थे तो कई गलियों में तफरी कर रहे थे। वहीं, बड़ी क्लास के कुछ विद्यार्थी ग्रुप में चौराहों पर बतियाते दिखे। जबकि, विद्यालय की चारदीवारी से बच्चों का बाहर जाना नियमों का उल्लंघन है। लेकिन, बाहर बच्चों की मौजूदगी प्राचार्य की लापरवाही का नतीजा है। लंच के बाद बच्चा वापस क्लास में आया या नहीं, इसकी भी मॉनिटरिंग नहीं की जाती।

कक्षा 5: गलत स्पेलिंग भी कर दी राइट
सुबह 10.30 बजे, कक्षा पांचवीं की क्लास में 17 बच्चे मौजूद थे। जबकि, क्लास में 30 बच्चों का नामांकन है। यहां बच्चों की कॉपियां देखी तो 8 जुलाई तक का ही हॉमवर्क जांचा गया। लेकिन, कॉपी में रिटर्न वर्क 25 जुलाई तक हो रहा था। वहीं, वर्कबुक जांची तो उसमें इंडिया की स्पेलिंग गलत लिखी हुई थी, जिसे शिक्षक ने राइट का निशान लगाकर जांच दिया। इसी तरह लॉयन की स्पेलिंग में ओ की जगह ए लिखा हुआ था, जिसे भी राइट कर दिया गया। इसके बारे में पूछा तो शिक्षक बगले झांकने लगे। इस तरह की छोटी-छोटी गलतियां, बुनियादी शिक्षा की नींव हिलाने को काफी है।

स्कूल से छुटटी होने के बाद घर लौट रहे कक्षा 6 व 8वीं के बच्चों की अंग्रेजी की कॉपी देखी तो उसमें 12 जुलाई तक का होमवर्क ही जांचा गया था, जबकि, कॉपी में 22 जुलाई तक का रिटर्न वर्क था। शिक्षक द्वारा 10 दिनों तक हॉमवर्क नहीं जांचना और प्राचार्य को इसकी खबर न होना। शिक्षा का स्तर में गिरावट के लिए पर्याप्त है। जबकि, नियमानुसार शिक्षक द्वारा जांचा गया होमवर्क की जांच प्राचार्य द्वारा करनी होती है।   

भौतिक संसाधनों का अभाव
यह स्कूल 1 से 8वीं तक संचालित हैं। यहां कुल 8 कक्ष हैं, जिसमें 7 क्लारूम व 1 पोषाहार के लिए रसोई है। एक रूम में दो क्लासें, बच्चों को बैठाने की पर्याप्त जगह नहीं है। बारिश में छतें टपक रही। जगह-जगह से पलास्टर उखड़ा, दीवारों में सीलिंग व जर्जर भवन में हर पल हादसे का खतरा है। यहां कुल 225 बच्चों का नामांकन है जो जुलाई की आखिरी तिथि तक 250 होने की उम्मीद है। इतने बच्चों को एक साथ पोषाहार खिलाने की जगह और खेल गतिविधियों के लिए मैदान नहीं है। वहीं, विभिन्न विषयों को प्रेक्टिकली पढ़ाने के लिए दिए जाने वाले एबीएल किट तक नहीं है। जगह की तंगी के कारण शोर-शराबे के बीच शिक्षक अपनी बात ठीक से बच्चों को समझा भी नहीं पाते।


यह हैं बड़े 10 कारण
1.     शिक्षक और छात्रों के बीच जुड़ाव में आई कमी
2.    शिक्षक समुदाय व अधिकारियों में दृढ़ इच्छाशक्ति का अभाव
3.     शिक्षकों के सम्मान में कमी
4.     शिक्षकोंकी सरकारी नौकरी लगते ही सोच भी हो जाती है सरकारी
5.     अभिभावकों का बढ़ता दखल
6.     शिक्षा संबंधी निर्णयों में राजनीति दखल
7.     जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा मॉनिटरिंग की कमी
8.     जर्जर भवन, शिक्षकों की कमी, कक्षा-कक्ष बेहाल
9.     खेल मैदान, लाइब्रेरी, कम्प्यूटर लैब, विज्ञान लैब जैसे आवश्यक संसाधनों का अभाव
10.    अनावश्यक कार्यों में शिक्षकों की ड्यूटी लगाना

इनका कहना है
क्वालिटी एजुकेशन देने के लिए सरकार शिक्षा क्षेत्र नए-नए नवाचार कर रही है। महात्मा गांधी इंग्लिश मीडियम स्कूल इसका श्रेष्ठ उदाहरण है। प्राथमिक शिक्षा की बात करें तो, जब तक सुदृढ़ मॉनिटरिंग व्यवस्था नहीं होगी तब तक शिक्षा की गुणवत्ता में कमी रहेगी। स्कूलों में भौतिक संसाधन, विद्यार्थियों की संख्या के हिसाब से पर्याप्त कक्षा-कक्ष, विद्यालय भवनों का मेंटिनेंस सहित अन्य जरूरतें समय पर पूरी कर दी जाए तो सरकारी स्कूल प्राइवेट स्कूलों से बेहतर एजुकेशन दे सकता है। क्योंकि, सरकारी शिक्षक क्वालीफाई होते हैं।
- लियाकत अली खान, रिटायर्ड शिक्षक

आज से 20-25 साल पहले जो पढ़ाई होती थी, उसमें किताबों का कम उपयोग होता था। शिक्षक बच्चों को किताबी शिक्षा के साथ व्यवहारिक शिक्षा भी देते थे। साथ ही शिक्षक जिस स्कूल में पदस्थ होता था, वह वहीं रहता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। सैकड़ों शिक्षक अप-डाउन करते हैं। अब शिक्षक केवल किताबों तक ही सीमित रह गए। वहीं, जितनी जिम्मेदारी शिक्षकों की है, उतनी ही अभिभावकों की भी है। दोनों अपना काम ठीक से करें तो शिक्षा का स्तर में सुधार हो सकेगा।
- अजीम पठान, रिटायर्ड शिक्षक

शिक्षक कमजोर बच्चों पर विशेष फोकस रखे, साप्ताहिक टेस्ट लेकर शिक्षा का स्तर जांचे, यदि बच्चा किसी विषय में कमजोर है तो उसे एक्ट्रा क्लास देकर स्तर सुधारने का प्रयास हो और प्रधानाचार्य इसकी मॉनिटरिंग करें। वहीं, जिम्मेदार अधिकारी स्कूलों के निरीक्षण के दौरान बच्चों के फोर्टफोलियों को विशेष रूप से परखे। स्कूल का रिजल्ट कम होते ही प्रधानाचार्य व संबंधित शिक्षक को चार्जशीट देकर सख्त कार्रवाई करें। इससे शिक्षकों में विद्यार्थियों के प्रति जवाबदारी बढ़ेगी।
- गंगाधर मीणा, रिटायर्ड जिला शिक्षाधिकारी 

दरअसल शिक्षा के क्षेत्र में गुरू शिष्य परंपरा बिलकुल खत्म हो गई है। यह इसी का परिणाम है। अब गुरुजी मास्टर और शिष्य छात्र बन गया है। छात्र को मास्टर जी से कोई मतलब नहीं है। इसी तरह मास्टर जी को भी छात्र से मतलब नहीं है। दोनों के बीच भावनात्मक लगाव नहीं रहा है। इसी लिए संसाधनों व सरकारी प्रयास के बावजूद बच्चों को किताबी ज्ञान मिल रहा है। शिक्षा और दीक्षा नहीं।
- बनवारी लाल सुमन शिक्षाविद

सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर बिलकुल भी नहीं गिर रहा बल्कि बढ़ ही रहा है। विद्यार्थियों को क्वालिटी कंटेंट मिले इसके लिए सरकार ने शिक्षा की ओर बढ़ते कदम प्रोग्राम चल रहा है। बच्चों को वर्कबुक के माध्यम से पढ़ाया जा रहा है। स्कूलों में 13 प्रतिशत नामांकन बढ़ा है। बच्चों का स्कूल से बंक मारना या बाहर घूमने से रोकने की जिम्मेदारी शिक्षक व प्राचार्य की है। कंट्रोलिंग आॅफिसर (यूसीओ) व जिला शिक्षाधिकारी के समकक्ष सीबीओ आॅफिसर द्वारा संबंधित शाला प्रधान के खिलाफ कार्रवाई की जाती है। अधिकतर स्कूलों में एबीएल किट दिए हैं, जहां नहीं है वहां उपलब्ध करवा देंगे। जिन स्कूलों में बच्चों की संख्या ज्यादा हैं, वहां दो शिफ्टों में स्कूल संचालित किए जाने का प्रावधान है।
- केके शर्मा, जिला शिक्षाधिकारी उच्च प्राथमिक विद्यालय

Post Comment

Comment List

Latest News

कश्मीर से लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने का पार्टी का था फैसला : आजाद कश्मीर से लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने का पार्टी का था फैसला : आजाद
संसद का चुनाव नहीं लड़ने का फैसला पार्टी ने लिया है। उन्होंने कहा कि वह चुनाव नहीं लड़ने के लिए...
इस बार मोदी की बेव नहीं, विकास के मुद्दों पर राजनीति नहीं केवल चुनाव हो : पायलट
राजस्थान में सभी 25 लोकसभा सीट जीतेगी भाजपा : पूनिया
पाकिस्तान में आत्मघाती हमला, बचे 5 जापानी नागरिक
निर्वाचन विभाग की नहीं मिली वोटर पर्ची, बूथ पर मतदान कर्मियों से उलझे लोग
बंगाल में चुनाव के दौरान हिंसा, भाजपा-तृणमूल कार्यकर्ताओं के बीच पथराव 
अर्विक बैराठी ने लोगों को वोटिंग के लिए किया प्रोत्साहित