चार साल में 16 बाघ मरे, विभाग कहता लापता
इन्टरनेशनल टाइगर डे स्पेशल : बाघ बचाने पर करोड़ों रुपए खर्च हो रहे, फिर भी हालात अच्छे नहीं, विशेषज्ञों का मत मर चुके बाघ, अन्यथा वन विभाग साक्ष्य दे
अकेले मुकुन्दरा और रणथम्भौर टाइगर रिजर्व से पिछले चार बरस में ही 16 बाघ मारे जा चुके हैं। हालांकि वन विभाग इन्हें लापता बताकर अपना बचाव करता रहा है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह बाघ मारे जा चुके हैं।
कोटा। आज इन्टरनेशनल टाइगर डे है। लेकिन टाइगर को लेकर प्रदेश में अच्छे हालात नहीं हैं। अकेले मुकुन्दरा और रणथम्भौर टाइगर रिजर्व से पिछले चार बरस में ही 16 बाघ मारे जा चुके हैं। हालांकि वन विभाग इन्हें लापता बताकर अपना बचाव करता रहा है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह बाघ मारे जा चुके हैं। इनका पता लगाने तक की निर्धारित समय सीमा भी अब खत्म हो चुकी है। विशेषज्ञों का कहना है कि बाघ वास्तव में लापता हैं तो वन विभाग कोई साक्ष्य सामने लाए। वन विभाग अधिकारी वास्तव में कागजी खेल में वन्य प्रेमियों व अन्य एजेंसियों को उलझा कर रखना चाहता है। करोड़ों का ई-सर्विलांस एंड एंटी पोचिंग सिस्टम, ढेरों कैमरे टावर, कैमरा ट्रैप, रेडियो कॉलर व जीपीएस कनेक्टीविटी होने के बावजूद बाघों का गुम हो जाना शिकारियों के हत्थे चढ़ जाने की ओर इशारा कर रहा है। हैरानी की बात तो यह है कि नेशनल टाइगर रिजर्व कंजर्वेशन की बाघों का संरक्षण, मॉनिटरिंग और टैकिंग को लेकर सख्त गाइड लाइन है. जिसमें अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी के साथ फेस फॉर मॉनिटरिंग और ट्रांजिक्ट लाइन सर्वे से बाघ की एक-एक मूवमेंट पर नजर रखी जाती है। गाइड लाइन इतनी कारगर है कि जंगल में पत्ता भी गिर जाए तो कैमरे में टैप हो जाता है। इसके बावजूद दोनों टाइगर रिजर्व से बाघों का अचानक गायब हो जाना संभव नहीं है।
एमटी-1 के शिकार की आशंका प्रबल
वन्यजीव प्रेमियों के अनुसार, मुकुंदरा के अधिकारी कह चुके हैं कि जब टाइगर एमटी-1 लापता हुआ था तो प्रदेश के सभी रिजर्व में सघन मॉनिटरिंग की थी लेकिन बाघ के मूवमेंट के कोई एवीडेंस नहीं मिले। ऐसे में सवाल उठते हैं, यदि बाघ जीवित होता जो पगमार्क, मल, शिकार के अवशेष सहित अन्य सबूत मिलते। बाघ के शिकार होने की आशंका प्रबल है। राज्य में सबसे ज्यादा 13 टाइगर रणथम्भौर से लापता हैं। जब कि मुकुन्दरा से एक टाइगर व उसके दो शावक लापता हैं। इस तरह चार वर्ष में 16 बाघ गायब हो चुके हैं।
मुकुन्दरा में तीन करोड़ का सर्विलांस, 16 कैमरा टावर
मुुकुंदरा टाइगर रिर्जव 760 वर्ग किमी में फैला हुआ है। इसमें 342.82 वर्ग किमी बफर जोन तथा 417.17 वर्ग किमी कोर एरिया है। पूरे रिजर्व को कवर करने के लिए 6 रेंजों में बांटा गया है। जिसमें दरा, जवाहर सागर, कोलीपुरा, रावंठा, बोराबांस व गागरोन रेंज शामिल है। टाइगर रिजर्व पर निगरानी के लिए 3 करोड़ की लागत से एक ई-सर्विलांस एंड एंटी पोचिंग सिस्टम और 16 कैमैरा टावर लगे हुए हैं। दरा रेंज में ही सर्विलांस लगा है, जिससे सभी रेंजों में लगे कैमरा टावर जुड़े हैं। इसकी मॉनीटरिंग डीओआईटी डिपार्टमेंट करता है। इसके लिए यहां सेंटलाइज कमाण्ड सेंटर बना हुआ है। जिससे 24 घंटे जंगल की एक-एक गतिविधियों पर नजर रखी जाती है। सभी कैमरे टावर नाइट विजन हैं। अत्याघुनिक तकनीक से लैेस होने बावजूद टाइगर व शावकों का लापता होना और खोज नहीं पाना, वन विभाग की कार्यशैली पर सवाल उठाता है।
रणथम्भौर से चार साल में 13 बाघ लापता
सरकारी े डाटा के अनुसार रणथम्भौर से वर्ष 2019 से जनवरी 2022 तक कुल 13 बाघ-बाघिन लापता है। जिसमें 2019 से 2 बाघ टी-20 व टी-23 के कोई सबूत नहीं मिले हैं। 2020 से 7 बाघ, टी-47, टी-42, टी-64, टी-73, टी-95, टी-97, टी-92 और वर्ष 2021 से अब तक 4 बाघ टी-72, टी-62, टी-126 व टी-100 का कोई सबूत नहीं मिले हैं।
एमटी-2 और एमटी-4 का एक-एक शावक लापता
मुकुंदरा में बाघ एमटी-1 को खो देने के बाद 3 अगस्त 2020 को बाघिन एमटी-2 का एक शावक लापता हो गया। इसके अगले ही महीने 22 मई को एमटी-4 का शावक भी गायब हो गया। जिनका दो साल से कोई पता नहीं चला। इन शावकों के जीवित होने की उम्मीद वन विभाग के अधिकारी भी छोड़ चुके है।
वन विभाग की कार्यशैली पर उठते सवाल
- सभी टाइगर रिजर्व में बेहतरीन टाइगर मॉनिटरिंग और ट्रेकिंग का हवाला दिया जाता है तो इतने बाघ गायब कैसे हो गए?
- करोड़ों का एंटी पोचिंग और सर्विलांस सिस्टम फेल हो गया?
- कैमरा ट्रैप व टावर कैमरा मॉनिटरिंग भी कारगर सिद्ध नहीं हो रही?
- फेस फॉर मॉनिटरिंग और ट्रांजिक्ट लाइन सर्वे भी काम का नहीं रहा?
- टाइगर प्रोटेक्टक्शन फोर्स के गठन में कोई कमी रह गई?
- अधिकारियों का पूरा फोकस टूरिज्म पर है, टाइगर की सुरक्षा पर नहीं?
- लापता बता कर जिंदा बाघों की श्रेणी में रख इतिश्री की और ढूंढने के प्रयासों को ताक पर रख दिया?
- टाइगर्स की मौत और लापता होने की रिपोर्ट सार्वजनिक क्यों नहीं की जाती?
- स्टेट वाइल्ड लाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो का गठन क्यों नहीं किया जाता?
- एडवाइजरी कमेटी में वन्यजीव मामलों के जानकार एवं अनुभवी लोगों को जगह नहीं दी जाती?
- वन अधिकारी किसी राजनीतिक, तथाकथित होटल या माइनिंग लॉबी के दबाव में काम कर रहे हैं?
वर्तमान आंकड़ों पर एक नजर
मुकुन्दरा हिल्स टाइगर रिजर्व
बाघ - 00
बाघिन - 01
शावक - 00
कुल - 01
रणथंभौर टाइगर रिजर्व
बाघ - 25
बाघिन - 31
शावक - 22
कुल - 78
एक्सपर्ट - व्यू
जिंदा होता तो मिलता सबूत
बाघ एमटी-1 को लापता हुए 2 साल हो गए। उसके जीवित होने की संभावना शुन्य है। बाघ या तो शिकार हो गया या मारा गया। एमटी-1 के लापता होने से पहले रेडियोकॉलर की बैट्री खराब थी, यह बात तत्कालीन डीएफओ ने स्वीकारी थी। इसके बावजूद समय रहते अधिकारियों ने बैट्री नहीं बदली।। करोड़ों का सर्विलांस सिस्टम होने के बावजूद उसे ढूंढ न नहीं पाना। जिम्मेदारों की लापरवाही दर्शाती है। वन विभाग को सच स्वीकार कर लेना चाहिए।
- तपेश्वर सिंह भाटी, वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट
टाइगर की गतिविधियां सर्विलांस, टावर व ट्रैप कैमरों में कैद न होना, समझ से परे हैं। उस वक्त दरा रेंज की 8 फीट ऊंची दीवार जगह-जगह से टूटी थी, जिसे नजरअंदाज करना विभाग की बड़ी लापरवाही थी। टाइगर के बाहर निकलने के दौरान अप्रत्यक्ष प्रमाण मिलते, जैसे पगमार्क, किल के अवशेष, स्केट, यूरीन सहित कोई तो सबूत मिलता। विभाग को कोई एवीडेंस न मिलना शिकार होने की ओर इशारा है।
- कृष्णेंद्र सिंह नामा, वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट एवं रिसर्च सुपरवाइजर
टाइगर रिजर्व में लापता बाघों को ढूंढना भूसे के ढेर में सूई ढूंढने की तरह है। टेक्नोलॉजी है लेकिन जंगल में कई मूवमेंट ऐसे आते हैं, जहां टाइगर कभी घने पेड़े के नीचे तो कहीं झाड़ियों में चले जाने की वजह से कैमरे की नजर में नहीं आ पाता। हर चीज हर जगह संभव नहीं है। लापता बाघ की तलाश जारी है।
- एसपी सिंह, सीसीएफ मुकुंदरा टाइगर रिजर्व
टागइर जीवित नहीं है, उसका तो शिकार हो चुका है, वन विभाग वन्यजीव प्रेमियों व जनता को गुमराह कर रहा है। यदि, एमटी-1 जिंदा है तो उसके सबूत पेश करें। विभाग खुद का बचाव कर रहा है। सरकार के करोड़ों रुपए खर्च कर भी बाघों को नहीं बसा सके।
- बाबूलाल जाजू, पर्यावरण विद तथा पीपुल्स फॉर एनीमल के प्रदेशाध्यक्ष
लंबे समय तक बाघ का पता नहीं लगना, मुकुंदरा अधिकारियों की लापरवाही है। बाघ जीवित होता तो कोई सबूत जरूर मिलता। मध्यप्रदेश तक ढेरों कैमरा ट्रैप लगे हैं। ऐसे में वह कहीं न कहीं तो ट्रैप होता या पगमार्क मिलते। असल में विभाग ने सही से बाघ की तलाश की ही नहीं है।
- एएच जैदी, नेचर प्रमोटर
ऐसी कोई टेक्नोलॉजी नहीं है जो लापता बाघों को ढूंढ निकाले। ई-सर्विलांस, कैमरा टावर, कैमरा टैप, रेडियोकॉलर व जीपीएस हेल्पिंग गेजेटस हैं। इनकी मदद से बाघों की मौजूदगी का पता लगता है लेकिन जंगल के भौगोलिक वातावरण के कारण इनके परिणाम प्रभावित होते रहते हैं। बाघ जंगल में मूवमेंट करता है तो वह भी घने पेड़ों के नीचे तो कभी झाड़ियों व गुफा होने के कारण सर्विलांस से जुड़े कैमरा टावर की निगरानी में नहीं आ पाता। जिससे उसके मूवमेंट का पता नहीं चल पाता। वहीं, जीपीएस की भी यही कहानी है। जब तक बाघ से जुड़ा जीपीएस सेटेलाइट के दायरे में नहीं आता तब तक उसकी लोकेशन का पता नहीं चल पाता।
- बीजो जॉय, डीएफओ टाइगर मुकुंदरा हिल्स रिजर्व
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