प्रमुख चौराहों पर रहता है अंधेरा नहीं जलती हाई मास्क लाइटें

मेंटेनेंस के नाम पर 70 से 80 हजार लगभग प्रति माह का हो रहा खर्चा

प्रमुख चौराहों पर रहता है अंधेरा नहीं जलती हाई मास्क लाइटें

अब तक इन्हें बदलने वाला कोई भी नहीं आया ह, जिसका खामियाजा वहां से गुजरने वाले राहगीरों को उठाना पड़ता है। जानकारी के मुताबिक सरमथुरा रोड माइंस कांटे तिराहे की लाइट तो बरसों से बंद है, इसके अलावा प्रमुख चौराहों के साथ-साथ गलियां मोहल्लों में लगाई गई स्ट्रीट लाइट पूरी तरह से ठप हैं।

 बाड़ी। नगर पालिका के द्वारा प्रमुख चौराहों पर हाई मास्ट लाइट तो बहुत पहले ही लगाई  गई थी, लेकिन उन से उजाले की दरकार अब तक बनी हुई है, स्थानीय लोगों ने कई बार शिकायत करने के बावजूद भी उक्त लाइटों को नहीं जलाया जा रहा है, इसका सबसे बड़ा कारण नगर पालिका के द्वारा खराब लाइटों को ना बदलना और ना ही मरम्मत करना है, इसमे कई लाइट शुरू से ही नहीं जल रही है।
 अधिकांश खराब: नगरपालिका के रख रखाव के तहत आने वाली कई स्ट्रीट लाइट और हाई मास्ट लाइट लंबे समय से खराब पड़ी हुई हैं, जिन्हें लेकर अनेक बार शिकायतें भी हो चुकी हैं लेकिन अब तक इन्हें बदलने वाला कोई भी नहीं आया ह,  जिसका खामियाजा वहां से गुजरने वाले राहगीरों को उठाना पड़ता है। जानकारी के मुताबिक सरमथुरा रोड माइंस कांटे तिराहे की लाइट तो बरसों से बंद है, इसके अलावा प्रमुख चौराहों के साथ-साथ गलियां मोहल्लों में लगाई गई स्ट्रीट लाइट पूरी तरह से ठप हैं। नगरपालिका के अधीन लगाई गई लाइटों के मेंटेनेंस की बात करें तो अप्रैल माह के तहत 35 हजार 771 विद्युत हेल्पर तो, वहीं विद्युत लाइट मिस्त्री को 44 हजार 669 रुपए का भुगतान तो अप्रैल माह में ही किया गया है। जबकि इतना भुगतान होने के बावजूद भी नगर निवासी अब भी अंधेरे में रहने को मजबूर हैं। इस संबंध में मुकेश शर्मा फौजी, स्थानीय निवासी का कहना है कि नगरपालिका में कोई भी काम बिना देन लेन के नहीं हो पा रहा यही कारण है कि आम नागरिकों का विश्वास और नगर पालिका प्रशासन से हटता जा रहा है। नरेंद्र शास्त्री, आचार्य ने बताया कि स्ट्रीट लाइट का बंद होना आम नागरिकों के लिए बेहद परेशानी का सबब है, अंधेरे में अनहोनी या अपराध होने का अंदेशा बना रहता है, इस संबंध में नगर पालिका को संज्ञान लेना चाहिए। राजकुमार भारद्वाज पार्षद का कहना है कि  भ्रष्टाचार की बू नगर पालिका में उच्चतम स्तर से लेकर न्यूनतम स्तर तक आती है, इस तरह के भुगतान तो मामूली बात है यदि निष्पक्ष जांच हो तो नगरपालिका आमूलचूल भ्रष्टाचार में लिप्त पाई जाएगी।

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