राजपूताना के पुरुषों और महिलाओं की वीरता के बावजूद हमें विदेशियों का दास बनना पड़ा, हम अब वे भूलें न करें : सरदार वल्लभ भाई पटेल

राजपूताना के पुरुषों और महिलाओं की वीरता के बावजूद हमें विदेशियों का दास बनना पड़ा, हम अब वे भूलें न करें : सरदार वल्लभ भाई पटेल

हर राज्य में, लोग जिम्मेदार सरकार की मांग करते हैं। शासकों को इस बात की जानकारी है और वे जानते हैं कि उन्हें समय के साथ चलना है। हमें स्पष्ट जानकारी हो कि हमारा कर्तव्य क्या है।

सरदार वल्लभ भाई पटेल 17 दिसम्बर, 1947 को जयपुर में थे। यहां उन्होंने जो भाषण दिया, वह देश के इतिहास में दर्ज है। यह भाषण रोशनी देता है। पटेल के मन में गांधीवादी विचारधारा, मूल्यों और राज्य की रचना के यथार्थ के बीच जो संघर्ष था, उसे यह भाषण स्पष्ट रूप से सामने लाता है। वे संकीर्ण विचारधारा को साफ तौर पर अस्वीकार करते हैं, लेकिन सशक्त सेना और उद्योग पर आधारित राज्य को स्वीकार करते हैं। पढ़िए उनका यह ऐतिहासिक भाषण, जो अब तक राजस्थान में कभी याद नहीं किया गया:

राजपूताना के शौर्यशाली नागरिकों, भारत में 500 से अधिक राज्य हैं-विश्व में कुल स्वतंत्र राज्यों की संख्या से भी अधिक। भूतपूर्व शासकों ने उन्हें अचार की तरह सम्भाल रखा था, लेकिन प्रभुसत्ता के समाप्त होने पर विदेशी शासन समाप्त हो गया है और भारत स्वतंत्र है। लेकिन अभी तक वास्तविक स्वतंत्रता ने सांस नहीं ली है। यहां तक कि अभी भी बहुत से लोग नहीं जानते कि हमने स्वराज प्राप्त कर लिया है। हालांकि वे यह जानते हैं कि विदेशी शासन का अंत हो गया है, लेकिन वे नहीं जानते कि हमने इससे कुछ पाया है अथवा नहीं। हमें उन्हें यह महसूस कराना चाहिए कि विदेशी शासन और स्वराज के बीच क्या अंतर है।

यह सच है कि हमें ऐसा करने का समय नहीं मिला है। हमारे दुर्भाग्य के कारण, हमारे यहां साम्प्रदायिक मुसीबतें रही हैं। लीग ने नफरत का जो जहर फैलाया था, हम उससे जकड़े हुए थे। हमने इस आशा से देश का विभाजन भी स्वीकार कर लिया कि इससे शांति बहाल हो जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं होना था। यदि हम इस विभीषिका से आहत न हुए होते तो आज हम इससे कहीं बेहतर होते।
हर राज्य में, लोग जिम्मेदार सरकार की मांग करते हैं। शासकों को इस बात की जानकारी है और वे जानते हैं कि उन्हें समय के साथ चलना है। हमें स्पष्ट जानकारी हो कि हमारा कर्तव्य क्या है। यह हमारा अधिकार है कि हम उनसे शासन को अपने हाथ में ले लें, लेकिन यदि हम इसमें सुधार नहीं कर सकते और बेहतर प्रशासन मुहैया नहीं करा सकते तो इसका क्या लाभ है?
आज की दुनिया पहले से भिन्न है। हम किसी संकुचित विचारधारा के बारे में नहीं सोच सकते। सरकार लोगों की होनी चाहिए-वे चाहे धनवान हों या गरीब, हिंदू, मुसलमान, पारसी अथवा ईसाई। हमें कार्यों को ऐसे निपटाना है कि हर व्यक्ति यह समझे कि यह उसकी अपनी सरकार है। आपको निश्चित होना चाहिए कि आप अपनी शक्ति को कैसे और किस प्रयोजन से इस्तेमाल करते हैं। हमारे लिए यह जरूरी है कि हम शक्ति का प्रयोग दलितों के कल्याण के लिए करें। लोग हैदराबाद में स्व-शासन अथवा स्वायत्तता की मांग करते हैं। उन्हें यह अधिकार है। हैदराबाद अलग-थलग कैसे हो सकता है। कुछ लोग कहते हैं, उनका सम्बन्ध पाकिस्तान से है। ऐसा है तो उन्हें परिणाम भुगतने होंगे।

इस संसार में, लोगों की इच्छा की उपेक्षा अपने को जोखिम में डालकर ही की जा सकती है। जब इतनी बड़ी शक्ति को लोकमत के दबाव के कारण भारत को छोड़ना पड़ा तो निजाम इसके विपरीत आशा कैसे कर सकते हैं। भारत को सैन्य दृष्टि से मजबूत बनाने के लिए बहुत कुछ किया जाना है। एक काफी बड़े औद्योगिक प्रयास के जरिए सेना को बल प्रदान किया जाना चाहिए। एक सशक्त सेना के लिए रसद और खाद्य के रूप में मजबूत समर्थन की आवश्यकता होती है। इसलिए हमें अपने संसाधनों को जुटाना है, और उसके लिए हमें अपने झगड़ों को भूल जाना चाहिए। हम बूढ़े लोगों ने अपना मिशन पूरा कर लिया है।

भारत ने अपनी स्वतंत्रता प्राप्त कर ली है। अब जिम्मेदारी मजबूत युवा कंधों पर आएगी और उन्हें इसे उठाने के लिए तैयार होना चाहिए। यदि वे अपनी शक्ति छोटी-मोटी बातों पर व्यर्थ गंवा देंगे, तो ऐसा करने में समर्थ नहीं होंगे। हम सभी जानते हैं कि एक महान राष्ट्र के रूप में जीवित रहने के लिए भारत को और अधिक उत्पादन करना होगा। लेकिन इसके स्थान पर आन्दोलनकारी मजदूरों को हड़ताल करने के लिए मजबूर कर रहे हैं। निस्संदेह हम एक घंटा भी व्यर्थ गंवाना सहन नहीं कर सकते। यदि हमें एक राष्ट्र के रूप में जीवित रहना है तो हमारे लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि हम और अधिक उत्पादन करें। यदि हम ऐसा नहीं करेंगे तो हम नष्ट हो जाएंगे।
मैं जमींदारों से अपील करता हूं कि वे अन्य लोगों की कमाई पर जिंदा न रहें, जो भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए अपना खून और पसीना बहाते हैं। राजपूतों को, जिनका कर्तव्य दूसरों की रक्षा करना है, यह शोभा नहीं देता कि वे दूसरों की कीमत पर जिंदा रहें। आपको बलिदान देना चाहिए, ताकि अन्य लोग जीवित रहें। यह फूट के कारण था कि भारत अपनी स्वतंत्रता गंवा बैठा। सैकड़ों वर्ष पहले, राजपूताना के पुरुषों और महिलाओं के शौर्य और वीरता के बावजूद भारत को विदेशियों का दास बनना पड़ा। हमें वह भूल फिर नहीं करनी चाहिए।

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