धनखड़ उपराष्ट्रपति

विपक्ष क्या स्वयं से ही हार गया

धनखड़ उपराष्ट्रपति

धनखड़ ने विपक्षी उम्मीदवार को 346 मतों से पराजित किया। वर्तमान उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू का कार्यकाल 10 अगस्त तक का है।

नए उपराष्ट्रपति के रूप में एनडीए उम्मीदवार जगदीप धनखड़ की जीत तो पहले ही तय मानी जा रही थी, लेकिन मतगणना के बाद वोटों का जो अंतर आया, उसने यह सवाल खड़ा कर दिया कि विपक्ष क्या स्वयं से ही हार गया। कुल 725 वोट पड़े थे। इनमें से धनखड़ को 528 वोट मिले और विपक्ष की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को 182 वोट और 15 वोट अवैध पाए गए। धनखड़ ने विपक्षी उम्मीदवार को 346 मतों से पराजित किया। वर्तमान उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू का कार्यकाल 10 अगस्त तक का है। उसके अगले दिन यानी 11 अगस्त को धनखड़ उपराष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे। वह देश के 14वें और राजस्थान से दूसरे उपराष्ट्रपति होंगे। राजस्थान से पहले उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत थे। पिछले महीने राष्ट्रपति चुनाव के बाद उपराष्ट्रपति चुनाव का बड़ा राजनीतिक संदेश यह है कि विपक्ष सत्तापक्ष को हराने के बजाए खुद से ही हारता दिखा। यह स्पष्ट होना बाकी है कि जिन 15 सदस्यों के वोट अवैध हुए वे कौन हैं। विपक्षी दलों के कई सदस्यों ने वोट भी नहीं दिए। संभवत: यह सदस्य तृणमूल कांग्र्रेस के हो सकते हैं, क्योंकि तृणमूल कांग्र्रेस ने मतदान में हिस्सा न लेने की पहले ही घोषणा कर रखी थी। 

टीएमसी के दो सदस्यों ने मतदान में हिस्सा लिया है। यह पूरा आंकड़ा इसलिए रोचक हो गया है क्योंकि इन्हीं कारणों से अल्वा को कम वोट मिले। राष्ट्रपति चुनाव में भी द्रौपदी मुर्मू को 17 सांसदों और 126 विधायकों ने क्रास वोटिंग की थी। 18 मई, 1951 को राजस्थान के झुंझुनूं जिले के छोटे से गांव किठाना के एक साधारण किसान परिवार में जन्मे धनखड़ अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद वकालत को व्यवसाय के रूप में चुना। 71 वर्षीय धनखड़ ने अपनी राजनीति की शुरूआत झुंझुनूं जिले की लोकसभा सीट जनता दल के टिकट पर जीतकर शुरु की थी। वे केन्द्र में वीपी सिंह व चन्द्रशेखर की सरकार में मंत्री पद पर भी रहे। 2003 में वे भाजपा में शामिल हुए। 30 जुलाई 2019 में वे पश्चिम बंगालय के राज्यपाल नियुक्त किए गए और वहां से ही सीधे उपराष्ट्रपति पद तक पहुंच गए।

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