आजादी का आंदोलन तेज करने जब पंडित नेहरू जोधपुर में महाराजा से मिले

सोजत से जोधपुर के बीच पंडित नेहरू और उनकी बेटी इंदिरा का राजघरानों ने किया था अपूर्व स्वागत

आजादी का आंदोलन तेज करने जब पंडित नेहरू जोधपुर में महाराजा से मिले

पंडित नेहरू को भारत छोड़ो आंदोलन के बाद भी जेल भेजा गया और एक जून 1945 को छोड़ा गया तो मारवाड़ लोक परिषद ने उन्हें जोधपुर बुलाकर सम्मानित करने का फैसला लिया।

आम तौर पर इतिहास में पंडित जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी को राजघरानों का बहुत विरोधी बताया जाता है, लेकिन राजस्थान के आजादी के इतिहास के कुछ पन्ने इस तथ्य को झुठलाते हैं। पंडित नेहरू को भारत छोड़ो आंदोलन के बाद भी जेल भेजा गया और एक जून 1945 को छोड़ा गया तो मारवाड़ लोक परिषद ने उन्हें जोधपुर बुलाकर सम्मानित करने का फैसला लिया। वे अक्टूबर में आए, लेकिन मारवाड़ में नेहरू का स्वागत करने को लोक परिषद से अधिक रजवाड़े उतावले थे। 
पंडित नेहरू अक्टूबर में जोधपुर जाने के लिए सोजत रेलवे स्टेशन पहुंचे तो महाराजा उम्मेदसिंह के निकट संबंधी कर्नल मोहनसिंह भाटी ने महाराजा की ओर से नेहरू का स्वागत किया। महाराजा खुद नेहरू से मिलने उनके निवास स्थान पर गए। उन्होंने संध्या में नेहरू और उनके साथ गई 28 वर्षीय युवा इंदिरा के सम्मान में भोज दिया। यही नहीं, उन्होंने आजादी के आंदोलन में कांग्रेस के सहयोग के लिए 25,000 रुपए की थैली भी भेंट की।

पंडित नेहरू और महाराजा की इस मुलाकात का असर यह पड़ा कि जोधपुर रियासत के अंग्रेज प्रधानमंत्री सर डोनाल्ड को हटा दिया गया और उनकी जगह इलाहाबाद डिविजन के कमिश्नर सीएस वेंकटाचारी को नियुक्त किया गया। इससे लोकपरिषद और महाराजा के बीच रिश्ते कुछ ठीक हुए। महाराजा उम्मेदसिंह की मृत्यु जून 1947 में माउंट आबू में न हुई होती तो जोधपुर संभवत: राजस्थान की केंद्रीय शक्ति होता। लेकिन उनके जाने के बाद हालात बदलते चले गए।

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