हाड़ौती के 10 कॉलेज में हालात भयावह: मैं ही प्रिंसिपल, मैं ही चपरासी

क्वालिटी एजुकेशन मिलना तो दूर, हालात इतने खराब की सोच नहीं सकते : प्रवेश प्रक्रिया से लेकर एग्जाम करवाना तक एक ही प्रोफेसर के जिम्मे

हाड़ौती के 10 कॉलेज में हालात भयावह: मैं ही प्रिंसिपल, मैं ही चपरासी

हाड़ौती के बारां, बूंदी, कोटा और झालावाड़ में कई ऐसे राजकीय महाविद्यालय हैं, जहां प्रिंसिपल से लेकर चपरासी तक का सारा काम एक ही शिक्षक के कंधों पर है। संभाग के करीब 10 कॉलेजों में इक्का- दुक्के प्रोफेसर ही लगे हैं। सबसे खराब स्थिति उन महाविद्यालयों की है, जहां एक ही शिक्षक मौजूद हैं।

कोटा। प्रदेशभर में सरकार नए-नए कॉलेज खोल क्वालिटी एजुकेशन देने का दावा कर रही है लेकिन जमीनी हकीकत इसके ठीक उलट है। छात्रों को एडमिशन तो दे दिए लेकिन पढ़ाने को शिक्षक ही नहीं लगाए। बिना गुरु ज्ञान मिलना तो दूर उच्च शिक्षा के स्तर में सुधार की कल्पना भी नहीं की जा सकती। दरअसल, हाड़ौती के बारां, बूंदी, कोटा और झालावाड़ में कई ऐसे राजकीय महाविद्यालय हैं, जहां प्रिंसिपल से लेकर चपरासी तक का सारा काम एक ही शिक्षक के कंधों पर है। संभाग के करीब 10 कॉलेजों में इक्का- दुक्के प्रोफेसर ही लगे हैं। सबसे खराब स्थिति उन महाविद्यालयों की है, जहां एक ही शिक्षक मौजूद हैं। ऐसे में वे शिक्षक बीमार पढ़ जाए तो कॉलेज का ताला खुलना तक मुश्किल हो जाता है। हालांकि तमाम मुश्किलों के बावजूद शिक्षक विद्या धर्म का पालन कर अपना दायित्व निभा रहे हैं। इटावा महाविद्यालय एक शिक्षक के भरोसे 600 विद्यार्थी जिले के इटावा में सरकार ने आर्ट्स कॉलेज तो खोल दिया लेकिन बच्चों को पढ़ाने के लिए स्थाई प्रोफेसरों की नियुक्ति नहीं की। यहां कार्यवाहक प्राचार्य नरेंद्र कुमार मीणा ही एकमात्र फैकल्टी हैं। जिन्हें बच्चों को पढ़ाने से लेकर प्रशासनिक कार्य भी इन्हीं को करना पड़ता है।

एक संविदा पर तो विद्या संबल योजना के तहत 4 अस्थाई शिक्षक लगाकर काम चलाऊ व्यवस्था की है। साधन-संसाधनों का भी टोटा है। प्राचार्य मीणा का कहना है, विषयवार कई शिक्षकों की कमी है। जिससे पढ़ाई प्रभावित हो रही है। सरकार को कोटा से पांच प्रोफेसर तो ट्रांसफर कर यहां लगाना चाहिए। वर्तमान में यहां 600 बच्चे पढ़ रहे हैं। मांगरोल कॉलेज : ताला भी प्रिसिंपल ही खोलती हैं वही लगाती हैं कॉलेज शिक्षा सहायक निदेशक डॉ. रघुराज सिंह परिहार के मुताबिक, मांगरोल में 2016 में सरकार ने कॉलेज खोला था। यहां 20 जनों का स्टाफ स्वीकृत है, जिनमें प्रिंसिपल, 7 असिस्टेंट प्रोफेसर के अलावा नॉन टीचिंग स्टाफ शामिल है। यहां एकमात्र असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. रिचा मीणा ही कार्यरत हैं। उन्हें कार्यवाहक प्रिसिपल बनाया हुआ है। कॉलेज में करीब 600 विद्यार्थी हैं, प्रोफेसरों के अभाव में विद्यार्थियों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। कॉलेज का ताला भी प्रिसिंपल्\महाविद्यालय जर्जर भवन में संचालित हो रहा है। बच्चों की सुरक्षा को भी खतरा है। छबड़ा कॉलेज : प्रशासनिक कार्य व पढ़ाई एक साथ छबड़ा कॉलेज की स्थिति बहुुत खराब है। प्रिंसिपल करुणा जोशी ने बताया कि वर्ष 2016 में कॉलेज खुला था लेकिन, प्रोफेसर नहीं लगाए। यहां प्रशासनिक कार्यों के लिए कौशल किशोर को लगा रखा है लेकिन उन्हें छिपाबड़ौद नोडल आॅफिसर बना रखा है। जिससे कॉलेज का प्रशासनिक कार्य भी मुझे ही करना पड़ता है। साथ ही बच्चों को पढ़ाती भी हूं। इन दिनों यहां प्रवेशित विद्यार्थियों को एडमिशन दे रहे हैं। साथ ही दस्तावेज भी जांच रहे हैं। वर्तमान में महाविद्यालय में करीब 600 विद्यार्थी हैं। प्रोफेसरों के बिना इनकी पढ़ाई कैसी होगी, इसका अंदाजा खुद लगा सकते हैं। केलवाड़ा कॉलेज : एक साल से एक ही प्रोफेसर बारां जिले के केलवाड़ा में 2008 में कॉलेज खुला था। अगस्त 2021 तक यहां 6 फैकल्टी थी, लेकिन इसके बाद यहां से लगातार ट्रांसफर होते रहे वर्तमान में एक ही फैकल्टी मांगीलाल महावर के रूप में मौजूद है। इनके अलावा कॉलेज में कोई अन्य स्टाफ नहीं है। ऐसे में चपरासी से लेकर प्रिंसिपल तक का सारा काम इन्हीं को करना पड़ता है। वहीं, कॉलेज में 900 बच्चों का नामांकन है। लेकिन, फैकल्टी के अभाव में उनकी कक्षाएं नहीं लग पाती। परीक्षा से एडमिशन तक की निभा रहे जिम्मेदारी केलवाड़ा प्रिसिंपल महावर का कहना है, केलवाड़ा महाविद्यालय परीक्षा केंद्र भी है। यहां वर्तमान में 2700 विद्यार्थियों की तीन शिफ्ट में परीक्षाएं चल रही है। हालात यह हैं, एग्जाम से लेकर प्रथम वर्ष के बच्चों को एडमिशन देने तक का सारा काम उन्हें ही करना पड़ रहा है। दस्तावेज भी जांच रहे हैं। परीक्षा संचालन के लिए 35 लोगों को वीक्षक के रूप में लगा रखा है। उन्होंने बताया कि 25 जून को उन्हें तेज बुखार था लेकिन परीक्षाएं चल रही थी, ऐसे में दवाइंया लेकर कॉलेज आ गए। हालांकि 30 जून को प्रतिनियुक्ति पर दो फैकल्टी परीक्षा करवाने के लिए लगाई है, ये परीक्षा के बाद वापस चले जाएंगे। कनवास कॉलेज : 8 में से 2 ही कक्षाएं चलती हैं कनवास आर्ट्स कॉलेज 2018 में खुला था। यहां मात्र दो ही शिक्षक कार्यरत हैं। इनमें एक संविदा पर हैं। जबकि, वर्तमान में 600 विद्यार्थी महाविद्यालय में पढ़ रहे हैं। प्रिंसिपल ललित किशोर नामा ने बताया कि वे प्रशासनिक कार्य करने के साथ संस्कृत भी पढ़ा रहे हैं। वहीं, संविदा पर एक हिन्दी व्याख्याता को लगा रखा है। उच्चाधिकारियों को पत्र के माध्यम से यहां शिक्षक लगाने की मांग कर चुके हैं लेकिन समाधान नहीं हुआ। यहां बच्चों को केवल संस्कृत व हिन्दी की पढ़ाई ही करवा पाते हैं, अन्य विषय के विद्यार्थियों की कक्षाएं संचालित नहीं करवा पा रहे। बच्चे आते हैं तो खाली कक्षाओं में बैठे रहते हैं या फिर आते नहीं है। पढ़ाई करवाना तो दूर सेलेबस पूरा करवाना ही चुनौती है। हिंडोली : डेढ़ साल से एक ही प्रोफेसर चला रहे कॉलेज हिंडोली में वर्ष 2020 में आर्ट्स कॉलेज खुला था। यहां बूंदी कॉलेज से प्रोफेसर रमेशचंद मीणा को डेपुटेशन पर हिंडोली भेज दिया था, इसके बाद से वे ही प्रिंसिपल और फैकल्टी हैं। प्राचार्य मीणा ने बताया कि नवम्बर 2021 में कोटा से एक शिक्षक को ट्रांसफर कर यहां लगाया था लेकिन वे स्टे ले आए। वहीं, बूंदी से मई 2022 में एक फैकल्टी को तबादले पर यहां लगाया लेकिन वे भी कोर्ट से स्टे लेने से उन्होंने भी कॉलेज ज्वाइन नहीं किया। वर्तमान में यहां बूंदी कॉलेज से एक लैब असिस्टेंट व एक चपरासी लगाया हुआ है। उन्होंने कहा कि मुझे 1 महीने के लिए यहां भेजा गया था। बाद में लगातार आदेश जारी कर डेपुटेशन को बढ़ाते रहे। अब तो इसका आदेश देना ही भूल गए है। एक माह के चक्कर में डेढ़ साल से यहीं पर हूं। सरकार स्टाफ भी नहीं बढ़ा रही। शाहबाद : दो प्रोफेसर के भरोसे 600 विद्यार्थी शाहबाद में दो फैकल्टी है, यह कॉलेज बारां शहर से करीब 80 किमी दूर हैं, साथ ही सहरिया बाहुल्य क्षेत्र में है। यहां प्रिंसिपल को मिलाकर कुल 8 पद स्वीकृत हैं। प्रोफेसर डॉ. संजय लक्की को कार्यवाहक प्राचार्य बना रखा है। यह कॉलेज एमपी बॉर्डर पर होने व आने जाने के साधन नहीं होने के कारण यहां कोई शिक्षक आना ही नहीं चाहता। झालावाड़: कहीं एक तो कहीं दो फैकल्टी झालावाड़ जिले में भी इसी तरह के हालात हैं। पिडावा कॉलेज में एक फैकल्टी तैनात है, यहां पर करीब 480 विद्यार्थी हैं। इसी तरह से चौमहला व खानपुर में दो-दो फैकल्टी हैं। स्कॉलरशिप से लेकर एडमिशन तक सब पेंडिंग कॉलेजों में स्टाफ नहीं होने से बच्चों को पढ़ाई के अलावा अन्य कई कार्याे में परेशान होना पड़ता है। इक्के दुक्के स्टाफ पर ही पूरी जिम्मेदारी होने के चलते स्टूडेंट्स के भी कई काम पेंडिंग रह जाते। इनमें बच्चों की स्कॉलरशिप, आॅनलाइन पोर्टल, फीस डिपॉजिट, एग्जाम और एडमिशन से लेकर कई तरह के कार्य शामिल है। कॉलेजों में कोई एक्टिविटी करवाने के बारे में तो यह फैकल्टी सोच भी नहीं सकती। कॉलेज में क्लासेज नहीं लगने के चलते बच्चे भी केवल एडमिशन ही लेकर खानापूर्ति कर रहे हैं। हाड़ौती के कई कॉलेजों से फैकल्टी बढ़ाने को लेकर लगातार पत्र मिलते हैं, जिन्हें आयुक्तालय शिक्षा सचिव और शिक्षा मंत्री को भेज फैकल्टी व स्टाफ लगाने का आग्रह करते हैं, लेकिन अभी ऐसा संभव नहीं हो पाया है। कॉलेजों में फीस जमा करने से लेकर कई काम अटक जाते हैं। अव्यवस्थाओं से नाराज विद्यार्थी हमसे आकर शिकायत करते हैं, जिसका भी समाधान बड़ी मुश्किल से निकाला जाता है। प्रोफेसरों के अभाव में बच्चों को क्वालिटी एजुकेशन मिलना तो दूर उनका पाठ्यक्रम पूरा करवाना ही चुनौती बनी रहती है। निश्चित रूप से विद्यार्थियों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। - रघुराज सिंह परिहार, सहायक निदेशक कॉलेज शिक्षा आयुक्तालय

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