राष्ट्रीय प्रतियोगिता में ड्रॉ पूरा करने के लिए थामा स्क्वैश का रैकेट, लगातार 16 बार खिताब जीत बना दिया वर्ल्ड रिकॉर्ड

प्रिंसेज कैंडी के नाम से चर्चित अलवर राजघराने की भुवनेश्वरी कुमारी ने जीते कुल 59 खिताब

राष्ट्रीय प्रतियोगिता में ड्रॉ पूरा करने के लिए थामा स्क्वैश का रैकेट, लगातार 16 बार खिताब जीत बना दिया वर्ल्ड रिकॉर्ड

भुवनेश्वरी कुमारी की पहली पसन्द टेनिस रही। टेनिस में तीन साल राष्ट्रीय प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। तब राजस्थान के टोंक जिले के सनतिया हुसैन दुलारा कोच थे। दुलारा से ही टेनिस की कोचिंग ली।

जयपुर। खेलों में हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद हों या क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर जैसी विलक्षण प्रतिभाएं कम ही हुई हैं। लेकिन स्क्वैश के खेल में ऐसा ही नाम भुवनेश्वरी कुमारी का है, जिन्होंने राजस्थान ही नहीं देश और दुनिया में खूब नाम कमाया। प्रशंसकों के बीच प्रिंसेज कैंडी के नाम से चर्चित अलवर राजघराने की भुवनेश्वरी ने एक बार नहीं लगातार 16 बार स्क्वैश का राष्ट्रीय खिताब जीत अपना नाम गिनीज बुक आॅफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज कराया। वे 1977 से 1992 तक स्क्वैश की नेशनल चैंपियन रहीं। राजस्थान में तो भुवनेश्वरी का कोई मुकाबिल ही नहीं रहा। वे लगातार 41 बार स्टेट चैंपियन बनीं। अपने करियर के दौरान भुवनेश्वरी ने कुल 59 खिताब हासिल किए। इसमें 1988 और 1989 में उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर केन्या ओपन का खिताब भी अपने नाम किया।

16 साल की उम्र में ली पहली कोचिंग, सीधे नेशनल खेला
भुवनेश्वरी कुमारी की पहली पसन्द टेनिस रही। टेनिस में तीन साल राष्ट्रीय प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। तब राजस्थान के टोंक जिले के सनतिया हुसैन दुलारा कोच थे। दुलारा से ही टेनिस की कोचिंग ली। लेकिन दिल्ली में स्क्वैश के नेशनल में उतरने से पहले भुवनेश्वरी ने कुछ दिन स्क्वैश की भी कोचिंग ली। खेल उनके लिए पूरी तरह अनजान था। सोलह साल की उम्र में पहली बार स्क्वैश का रैकेट थामा। चंद दिनों की कोचिंग के बाद 1977 में दिल्ली में पहली बार सीधे नेशनल टूर्नामेंट खेला। बाद में जब दुलारा ने उन्हें टेनिस और स्क्वैश में से किसी खेल को चुनने के लिए कहा तो भुवनेश्वरी ने स्क्वैश को चुना।

रोचक रही स्क्वैश से जुड़ाव की कहानी
स्क्वैश के खेल में भुवनेश्वरी के जुड़ाव की कहानी भी बेहद रोचक रही है। 1977 में तब दिल्ली में नेशनल चैंपियनशिप खेली जानी थी। महिला एकल में सिर्फ सात खिलाड़ियों के कारण ड्रॉ पूरा नहीं हो रहा था। तब पिता अलवर के पूर्व महाराजा यशवंत सिंह के कहने पर भुवनेश्वरी ने ड्रॉ में अपना नाम लिखा दिया। भुवनेश्वरी को सिर्फ एक मैच खेलना था लेकिन उन्होंने जो शुरुआत की तो फाइनल में टॉप सीड को हरा खिताब जीतकर ही दम लिया। इसके बाद उन्होंने लगातार तीन साल खिताब जीता तो फिर इसी खेल को अपना लिया।

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