देश में आखिर अनुसंधान को बल कैसे मिलेगा?
आजादी के अमृतकाल के लिए एक और अनिवार्यता है और वो है जय अनुसंधान।
यदि दुनिया में इक्का-दुक्का सरकारों को छोड़ दें तो दुनिया की ज्यादातर सरकारें अनुसंधान में लगने वाले पैसे को बर्बादी मानती हैं। यह निवेश दिखता नहीं है और इसका लाभ मिलेगा ही इसकी गारंटी नहीं होती है।
15 अगस्त यानी 76वें स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से देश को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने देश में इनोवेशन को बढ़ावा देने के लिए जय अनुसंधान का नया नारा दिया। मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नारे ‘जय जवान, जय किसान’ को याद करते हुए कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसमें जय विज्ञान का नारा जोड़ा था। प्रधानमंत्री ने कहा कि आजादी के अमृतकाल के लिए एक और अनिवार्यता है और वो है जय अनुसंधान। यानी जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान, जय अनुसंधान। मोदी ने कहा कि हमारा प्रयास है कि देश के युवाओं को अंतरिक्ष से लेकर समुद्र की गहराई तक सभी क्षेत्रों में अनुसंधान के लिए हरसंभव सहायता मिले। इसलिए हम अपने अंतरिक्ष मिशन और गहरे महासागर मिशन का विस्तार कर रहे हैं। इतना तय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान के नारे में जय अनुसंधान को जोड़कर यह संदेश दिया है कि शोध एवं अनुसंधान उज्जवल भविष्य के आधार हैं। लेकिन चिंताजनक बात यह है कि अनुसंधान एक दीर्घ प्रक्रिया है और उसके लिए बड़े पैमाने पर संसाधनों की आवश्यकता होती है। लेकिन पिछले लगभग दो दशकों से इस मद में बजट आवंटन सकल घरेलू उत्पाद के एक प्रतिशत से भी कम रहा है। ऐसे में यह दर्शाता है कि हम अनुसंधान के क्षेत्र के प्रति बिल्कुल भी संवेदनशील नहीं है। आज जीवन के हर क्षेत्र में तकनीक का उपयोग बहुत तेजी से बढ़ रहा है। विज्ञान की प्रस्थापनाओं एवं अवधारणाओं को व्यावहारिक बनाने पर दुनियाभर में जोर दिया जा रहा है। ऐसे में आवश्यकता इस बात की है कि हमारे देश में भी अनुसंधान की दिशा में तत्काल कदम बढ़ाए जाने चाहिए। यदि दुनिया में इक्का-दुक्का सरकारों को छोड़ दें तो दुनिया की ज्यादातर सरकारें अनुसंधान में लगने वाले पैसे को बर्बादी मानती हैं। यह निवेश दिखता नहीं है और इसका लाभ मिलेगा ही इसकी गारंटी नहीं होती है। इसलिए लोकप्रियता के लिए अपने सारे काम करने वाली सरकारें शोध व विकास के काम में निवेश नहीं करती हैं। दूसरी ओर दुनिया के सबसे शक्तिशाली मुल्क अमेरिका की ताकत ही अनुसंधान में निवेश है। जापान और चीन सहित दुनिया की शीर्ष 20 कंपनियां अनुसंधान में जितना निवेश करती हैं उतना अकेले अमेरिका करता है। इसके उलट भारत में अनुसंधान पर निवेश में कमी आ रही है। भारत में पहले से ही इसमें निवेश कम है। जीडीपी के मुकाबले सिर्फ 0.66 फीसदी रकम इस क्षेत्र में निवेश की जाती है। इसमें भी साढ़े 61 फीसदी के करीब डीआरडीओ, इसरो और एटॉमिक एनर्जी को चला जाता है। सिर्फ 38 फीसदी जनरल रिसर्च के लिए जाता है, जिसमें आईसीएआर, सीएसआईआर, आईसीएमआर, डीएसटी, डीबीटी आदि सब शामिल हैं। विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंदर रिसर्च के तीन विभाग आते हैं-डिपार्टमेंट आॅफ बायोटेक्नोलॉजी यानी डीबीटी, डिपार्टमेंट आॅफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च यानी डीएसआईआर और डिपार्टमेंट आॅफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी यानी डीएसटी, इस साल के बजट में इन तीनों के खर्च में कटौती की गई है। पिछले वित्त वर्ष यानी 2021-22 में इनका बजट 14,793 करोड़ रुपए था, जिसे वित्त वर्ष 2022-23 में घटाकर 14,217 करोड़ कर दिया गया था। यानी 576 करोड़ की कटौती हुई है। जो वाकई बेहद चिंताजनक स्थिति है। शिक्षा, स्वास्थ्य, वस्तु उत्पादन, सेवाओं की उपलब्धता आदि में नवाचार से हम प्रगति के पथ पर अधिक गति से अग्रसर हो सकते हैं। लिहाजा अनुसंधान की राशि में बढ़ोतरी बेहद जरूरी है। अनुसंधान जैसे बेहद महत्वपूर्ण क्षेत्र में समुचित सुविधाओं और प्रोत्साहन के अभाव के कारण प्रतिभाएं या तो देश से बाहर चली जाती हैं या पेशेवर जीवन में चली जाती हैं। ऐसे में बहुत से छात्र और युवा वैज्ञानिक अनुसंधान के क्षेत्र में जाने से कतराते हैं। भारत को अगर तकनीक का वैश्विक केंद्र बनाना है, तो शोध एवं अनुसंधान के लिए एक ठोस कार्य योजना बनाई जानी चाहिए। इसमें प्राथमिकता पहले से लंबित योजनाओं को दी जानी चाहिए। हमें यह भी समझना बेहद जरूरी है कि अनुसंधान से जनित सेवाओं और वस्तुओं के निर्यात से अर्थव्यवस्था को बहुत लाभ हो सकता है। इसके उदाहरण हम अपने अंतरिक्ष अनुसंधान, दवा उद्योग तथा कृषि उत्पादन में देख सकते हैं। दरअसल, भविष्य में स्टार्टअप सेक्टर का योगदान अहम होगा और इस दिशा में भारत का विकास उत्साहजनक है। तकनीकी अनुसंधान को बढ़ाकर हम इसे और गति दे सकते हैं। अनुसंधान और नवाचार में रुचि बढ़ाने के लिए हमें इसे एक संस्कृति बनाना होगा तथा बच्चों को प्राथमिक विद्यालयों से ही विज्ञान एवं तकनीक की ओर उन्मुख करने पर ध्यान देना चाहिए। आज हमें नए संकल्प के साथ नई दिशा की ओर मिलकर कदम बढ़ाने की जरूरत है। -अली खान (ये लेखक के अपने विचार हैं)
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