पेंटेड स्टॉर्क से आबाद हुआ शहर का राजपुरा

बर्ड वॉचर के लिए व्यू प्वॉइंट बना इलाका

पेंटेड स्टॉर्क से आबाद हुआ शहर का राजपुरा

पेंटेड स्टॉर्क पक्षी इन दिनों पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। यह प्रवासी पक्षी हैं, राजपुरा के तालाब किनारे पेड़ों पर 500 से ज्यादा पेटेंर्ड स्टॉक बर्ड की आबादी बसी है। पक्षी प्रेमी इन्हें देखने के लिए दूर-दूर से आ रहे हैं।

कोटा। पेंटेड स्टॉर्क पक्षी इन दिनों पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। हल्के सफेद रंग पर गुलाबी व नारंगी रंग उसे और भी अधिक आकर्षक बना देता है, ऐसा लगता है कि मानो किसी पेंटर ने अपने ब्रश से बड़े करीने से रंग भर दिए हो। लंबी और पतली टांग, नुकीली लंबी चोंच उसे दूसरे पक्षियों से अलग करती है। यह पक्षी मानव से भी ज्यादा समझदार होते हैं, क्योंकि यह अपने सुरक्षा के लिए अपने आस-पास की हरियाली बचा कर रखते हैं। पेंटड स्टॉर्क अपने घोसलें को बनाने के लिए बाहर के तिनके का इस्तेमाल करते हैं। वह जिस भी पेड़ की शाखा पर बैठते हैं, उसके तिनकों का इस्तेमाल घोसला बनाने के लिए नहीं करते हैं बल्कि अन्य शाखाओं से एक-एक तिनके बटोर कर अपना घोंसला बनाते हैं। यह प्रवासी पक्षी हैं, राजपुरा के तालाब किनारे पेड़ों पर 500 से ज्यादा पेटेंर्ड स्टॉक बर्ड की आबादी बसी है। पक्षी प्रेमी इन्हें देखने के लिए दूर-दूर से आ रहे हैं। 

पेड़ों पर अठखेलियां करती है आकर्षित
नेचर प्रमोटर एएच जैदी ने बताया कि शहर से 25 किमी दूर राजपुरा के तालाब किनारे पेड़ों पर पेटेंर्ड स्टॉर्क बर्ड यानी जांघिल पक्षी घोंसले बनाने में जुटे हुए हैं। दिनभर यह पक्षी पेड़ों पर अठखेलिया करते रहते हैं। पेंटेड स्टॉर्क को नेस्टिंग के लिए ऐसे तालाब चाहिए होते हैं जिनमें छिछले पानी में कांटेदार पेड़ हो और मछलियों अधिक हो। ये पक्षी 7 सालों से यहां आ रहे हैं लेकिन गत वर्ष 250 की संख्या में यहां आए थे लेकिन कुछ दिनों बाद ही वापस लौट गए थे, जिनके जाने का कारण पता नहीं चल सका। लेकिन इस वर्ष दोगुनी संख्या में वापस लौट आए हैं, यह वंश वृद्धि का संकेत है, जो पक्षी पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। जांघिल 5 से 10 के समूह में कॉलोनी बना कर रहते हैं और आपस में एक-दूसरे की मदद करते हैं।

घंटों एक ही मुद्रा में रहते हैं खड़े
वन्यजीव प्रेमी सुरेश नागर बताते हैं, पक्षियों का आना अच्छा संकेत है। पेंटेड स्टॉर्क का वैज्ञानिक नाम माइकटेरिया ल्यूकोसिफाला है, जो भारत के अलावा श्रीलंका, चीन तथा दक्षिणी पूर्वी एशिया के देशों में भी पाया जाता है। पेटेंड स्टॉर्क शांत स्वभाव और एक ही मुद्रा में घंटों तक खड़े रहने के लिए जाने जाते हैं। यह बर्ड दिखने में बेहद खूबसूरत हैं, एक साथ कई प्राकृतिक रंगों को खुद में संजोये हुए हैं। प्राकृतिक सौंदर्य के बीच इनकी मौजूदगी से तालाब एक बार फिर से मुस्कुराने लगा है। बड़ी तादाद में ये पक्षी प्रजनन के लिए तिनका-तिनका इक्कठा करके पेडों पर घोंसले बना रहे हैं, जल्द ही तालाब पर जांघिल पक्षियों के बच्चे नजर आने लगेंगे, फिर 6 महीने तक यह इलाका पक्षियों की चहचहाट से गुलजार रहेगा। 

साढे तीन फीट की ऊंचाई, पंख सफेद, चोंच पीली
पेटेंड स्टॉर्क लगभग साढ़े तीन फीट ऊंचाई के होते हैं। इनके पर सफेद होते हैं, जिन पर ऊपर की तरफ काले रंग के निशान व पट्टियां पड़ी होती हैं और पूंछ के पास मुलायम हल्के गुलाबी रंग के पर होते है। चोंच पीली होती है। इनका मुख्य भोजन मछलियां, केकड़े, मेंडक, छोटे सांप, छिपकली व कीड़े होते हैं। 

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वर्ष 2001 में डाक टिकट भी जारी हुआ था
विशेषज्ञों के मुताबिक, देश में स्टर्ष्क परिवार में सबसे आम और आकर्शक प्रजाति के रूप् पहचान बनाने वाला पेंटेड स्टॉर्क या जांघिल देखने में सबसे सुन्दर पक्षी है। इसे पेंटेड स्टर्ष्क इसलिए कहा जाता है क्योंकि एक नजर में इसे देखने पर ऐसा लगता है जैसे इसे किसी ने अलग-अलग रंगों से रंग दिया हो। अक्टूबर 2015 में राज्य सरकार द्वारा इसे डूंगरपुर जिले की पहचान देते हुए जिले का आइकन बर्ड बनाया है। भारतीय डाक विभाग द्वारा भी वर्श 2001 में इस पक्षी पर चार रुपए का एक डाक टिकट भी जारी किया गया है।

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दुर्लभ प्रजाति में आते हैं पेंटेड स्टॉर्क
विशेषज्ञों ने बताया कि पेंटेड स्टॉर्क स्टॉर्क एक दुर्लभ प्रजाति है। इसे नियर थ्रेटेंड एक संरक्षण की स्थिति में लिया गया। हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि प्रजातियों को खतरा है, लेकिन थ्रेटैंड टैक्सा में आमतौर पर कमजोर प्रजातियां शामिल होती हैं, वहीं यह प्रजाति कमजोर स्थिति में मानी जाती है।

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4 साल में पहली बार ज्यादा संख्या में दिखे जांघिल
जैदी के मुताबिक, राजपुरा के तालाब में करीब 4 साल पहले पेंटेड स्टॉर्क की प्रजनन कॉलोनी बनी थी, इतनी बड़ी संख्या में यह पक्षी इस वर्ष ही यहां दिखाई दिए हैं। यह जोड़े में होते हैं, इनकी संख्या को देखते हुए इस बार 250 से ज्यादा घोंसले बनने का अनुमान हैं। यहां ब्रीडिंग पेंटेड स्टॉर्क की संख्या करीब 500 है। जांघिलों ने यहां पर देशी बबूल के 50 से ज्यादा पेड़ों पर घोंसले बनाए है। एक घोसलें में मादा पेंटेड स्टॉर्क तीन से चार अंडे देती है। उन्होंने कहा कि तालाब चार साल के बाद फिर से पेंटेड स्टॉर्क पक्षियों से आबाद होने लगा है। अभी तालाब के आधा दर्जन से ज्यादा पेडों पर इन जांघिल पक्षियों ने अपने जोडों के साथ डेरा डाल दिया है। 

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