घुमंतू जनजातियों ने मनाया अपना 71वां आजादी दिवस

कलंदर बस्ती बहीर में घुमंतू विमुक्ति दिवस समारोह का आयोजन

घुमंतू जनजातियों ने मनाया अपना 71वां आजादी दिवस

सहायक निदेशक बाल अधिकारिता नवल खान ने घुमंतु व अर्धघुमंतु जनजातियों के लियें चल रही विभागीय योजनाओं के बारे में विस्तार से जानकारी दी।

टोंक। विमुक्ति दिवस के अवसर पर घुमंतू सांझा मंच टोंक व एक्शन एड एसोशिऐशन द्वारा कलंदर बस्ती बहीर में बुधवार को घुमन्तु विमुक्ति दिवस समारोह का आयोजन कर विमुक्त घुमंतू जनजातियों ने अपना 71वां आजादी दिवस मनाया। इस आजादी उत्सव समारोह में आस-पास की विमुक्त घुमंतू जनजातियों के लोगों सहित बड़ी संख्या में ब चेऔर महिलाएं भी शामिल रहीं। जयपुर से विमुक्ति दिवस समारोह में शामिल होने आई व लंबे समय से विमुक्त, घुमंतू और अर्ध-घुमंतू जनजातियों के बीच काम कर रही एक्शन एड एसोसिऐशन स्टेट मैनेजर सीओन कांगोरी ने विमुक्त, घुमंतू और अर्ध-घुमंतू जनजातियों का इतिहास बताते हुए कहा, देश में अलग-अलग समय पर अलग-अलग आक्रमणकारियों का शासन रहा लेकिन इन जनजातियों ने कभी किसी के सामने समर्पण नहीं किया। 1871 में अग्रेजों ने घुमंतू जनजातियों पर क्रिमिनल ट्राइब एक्ट लगाकर कमजोर करने का काम किया उसके बाद भी ये जनजतियां अपनी कला और संस्कृति से जुड़े रहे। ये जनजातियां आज भी अपने पहनावे अपनी भाषा को जीवित रखे हुए हैं। किसी भी समाज के बदलाव और उन्नति के लियें संघर्ष और निर्माण महत्वपूर्ण है और इसके लियें अपने इतिहास को जानना आवश्यक है आज का दिन इसी इतिहास को जानने का दिन है कि हमारे साथ कैसा भेदभाव हुआ है आज हम इस स्थिति में क्यों हैं इन बातों पर समय समय पर विश्लेशण होना चाहिए। घुमंतु समाज को तरक्कÞी के लियें न केवल शिक्षित होना होगा बल्कि संगठित होकर सरकार से अपने अधिकारों की मांग करनी होगी। इस अवसर पर सहायक निदेशक बाल अधिकारिता नवल खान ने घुमंतु व अर्धघुमंतु जनजातियों के लियें चल रही विभागीय योजनाओं के बारे में विस्तार से जानकारी दी। एक्शनएड जÞोनल कोर्डिनेटर जÞहीर आलम ने विमुक्ति दिवस पर जानकारी देते हुए बताया कि 1947 को भारत तो आजाद हो गया, लेकिन इसकी 190 जनजातियों के करोड़ों नागरिकों को पांच साल बाद 31 अगस्त, 1952 को असली आजादी मिली। इसे ये लोग इस तारीख को विमुक्ति दिवस के तौर पर भी मनाते हैं। अंग्रेजों ने इन करोड़ों लोगों को एक खास अधिनियम के तहत 180 साल तक उनके घरों में ही कैद कर दिया था। अब ये आजादी से घूम सकते हैं। लेकिन अब भी अंग्रेजों द्वारा इन पर लगाया गया दाग, समाज में इन्हें वो स्थान और सम्मान नहीं देता जो इनका हक है और आजाद भारत का नागरिक होने के नाते मिलना चाहिए। ये घुमंतु जनजातियां थीं, जो एक शहर से दूसरे शहर में ठिकाना बदलती रहती थीं। ऐसी जनजातियों को नियंत्रित करने के लिए अंग्रेजों ने उन्हें सूचीबद्ध कर 1871 में उन पर आपराधिक जनजाति अधिनियम लागू कर दिया। इस अधिनियम के तहत इन जनजातियों के सभी सदस्यों को अपराधी घोषित कर दिया गया। ‘आपराधिक जनजाति अधिनियम’ में शामिल जनजातियों के यहां ब चा पैदा होते ही उस पर अपराधी का ठप्पा लग जाता था। करीब 180 सालों तक देश ने इन जनजातियों को कानूनी तौर पर जन्मजात अपराधी माना। इसके चलते धीरे-धीरे हमारे भारतीय समाज ने भी इन जनजातियों को अपराधी मान लिया। इसका नतीजा यह हुआ कि इन जनजातियों के लोगों को हर जगह अपराधियों के तौर पर देखा जाने लगा। साथ ही पुलिस को उनका शोषण करने करने के लिए अपार शक्तियां दे दी गर्इं। देशभर में लगभग 50 ऐसी बस्तियां भी बनाई गर्इं जिनमें इन जनजातियों को जेल की तरह कैद कर दिया गया। इन बस्तियों की चारदीवारी के बाहर हर वक्त पुलिस का पहरा लगता था। बस्ती के बालकों से लेकर हर सदस्य को बाहर आते-जाते वक्त पुलिस को अनिवार्य रूप से सूचना देनी होती थी या उपस्थिति दर्ज करानी पड़ती थी। समारोह में पारम्पारिक सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया गया जिसमें 70 वर्षीय जÞुबेदा ने जुए के दुष्परिणमो को लोक गीत के माध्यम से मार्मिक रूप से समझाया जबकि जमील और फिरोज ने भालू का, हबीब मियां ने बकरे का और रफÞीकÞ ने जादू का खेल (हाथ की सफाई) दिखाकर आजÞादी दिवस मनाया और सब का मनोरंजन किया। समारोह के अंत में कलंदर बस्ती में रहने वाली रिजवाना, फिरदोस, कौसर, अनम को स्टेट ओपन से 10वीं और 12वीं परीक्षा में प्रथम श्रेडी से उत्तीर्ण होने पर बेटी जिंदाबाद ट्रॉफी देकर सम्मानित किया गया और बस्ती के सभी बच्चों को पढाई हेतु स्टेशनरी वितरित की गई। समारोह में अशरफ कलंदर, मौलवी वसीम, पंडित पवन सागर, मौलवी हनीफ, मुहिन आदि ने भी अपने विचार रखे। इस अवसर पर ईद मोहम्मद, आमिर फारूक, मोहम्मद शाहिद, मोहम्मद जÞहूर खांन आदि उपस्थित रहे। अंत में अलीना, माही और सादिया द्वारा राष्ट्रगान गाकर समारोह का समापन किया गया और उपस्थित लोगों को मिठाई वितरित की गई।

Tags: tribal

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