सतरंगी सियासत
कर्नाटक में बीएस येद्दियुरप्पा भाजपा के सबसे बड़े और कद्दावर नेता
वह राज्य के चार बार सीएम और चार बार ही नेता विपक्ष रहे।
येद्दियुरप्पा बड़े नेता
कर्नाटक में बीएस येद्दियुरप्पा भाजपा के सबसे बड़े और कद्दावर नेता। उनकी अपनी लिंगायत समुदाय और जमीन पर भी जबरदस्त पकड़। इसमें किसी को शक नहीं होना चाहिए। वह राज्य के चार बार सीएम और चार बार ही नेता विपक्ष रहे। भाजपा प्रदेश भी रहे। राजनीति का लंबा अनुभव। लेकिन भाजपा का यह आरोप। कांग्रेस का पूरा जोर इस नेरैटिव को गढ़ने में, कि यह कर्नाटक की वर्तमान सरकार भ्रष्ट और सीएम कमजोर। इसीलिए चुनाव पूर्व मुख्यमंत्री बदला जाएगा। यह प्रचार किया जा रहा। इसी बीच, येद्दियुरप्पा को भाजपा संसदीय बोर्ड और केन्द्रीय चुनाव समिति में लाया गया। वह 80 साल के होने जा रहे। उसके बावजूद केन्द्रीय स्तर की महत्वपूर्ण कमेटियों येद्दि को स्थान मिलना, क्या संकेत? हां, चुनाव तो उनके बेटे लड़ेंगे ही। असल में, भाजपा नेतृत्व येद्दि को ऐन चुनावी मौके पर नाराज करने का जोखिम नहीं ले सकता। क्योंकि पहले वह भाजपा की नैय्या डुबो चुके। लेकिन जो येद्दि को मिला। वह अन्य नेताओं को नहीं मिलेगा!
छुपा रूस्तम कौन?
राजस्थान भाजपा में आजकल महत्वपूर्ण बदलाव की चर्चा। लेकिन यह तय नहीं कि संभावित बदलाव कब और कैसा होगा? ऐसे में क्या फिर कोई नेता छुपा रूस्तम साबित होगा। वैसे भी पार्टी नेतृत्व प्रदेश भाजपा में कई नेताओं के कद बढ़ा चुका। सबसे ताजा यूपी के संगठन मंत्री रहे सुनील बंसल को महासचिव बनाकर दिल्ली लाना। ऐसे में माना जा रहा। चुनाव पूर्व अभी कुछ और नेताओं को बड़ी जिम्मेदारी देने की संभावना। हालांकि किसी बदलाव की संभावना गुजरात के विधानसभा चनाव के बाद। वैसे भाजपा के लिए उसके बाद कर्नाटक में भी चुनाव। लेकिन वहां के समीकरण दुरूस्त करने की कवायद पहले से जारी। जबकि राजस्थान में अगले साल विधानसभा चुनाव। राजस्थान भाजपा में कई खेमे और सीएम पद के दावेदार बन चुके। ऐसी चचार्एं। लेकिन भाजपा का इससे इनकार। हां, लेकिन ऐसा लग रहा। तीर कहीं से कहीं छोड़े जा रहे। संभावित बदलाव की चर्चा भी एक गुट से दूसरे गुट के लिए! लेकिन सच तो केन्द्रीय नेतृत्व ही जानता।
आहट तो नहीं!
कांग्रेस में बगावत की आहट तो नहीं? मनीष तिवारी की बातों से तो यही लग रहा। उधर, पृथ्वीरा चव्हाण भी कह गए। कठपुतली कांग्रेस अध्यक्ष बना तो पार्टी बिखर जाएगी। पूर्व राज्यसभा सांसद एमए खान ने भी तीखे तेवर। आनंद शर्मा ने सीडब्ल्यूसी की बैठक में ही सवाल उठाकर अगले कदम का संकेत दे दिया। अब इसका असर कितना होगा? लेकिन गुलाम नबी आजाद साहब ने पांच पन्नों का सोनिया गांधी के नाम खत लिखकर अंदरखाने की बातों को सार्वजनिक कर दिया। जिससे कांग्रेस काफी असहज। क्योंकि पार्टी प्रवक्ताओं के बोल सब कुछ जाहिर कर रहे। चारों तरफ से आजाद के पत्र का प्रतिवाद हुआ। लेकिन उन बातों का क्या? जो राहुल गांधी के लिए कही गईं। बीते दो दशकों में गांधी परिवार पर ऐसा हमला किसी कांग्रेसी ने नहीं किया। जबकि संगठन चुनाव सिर पर। वहीं, भारत जोड़ो यात्रा भी शरू होने वाली। वहीं, गुजरात, हिमाचल प्रदेश के चुनाव भी। जबकि कांग्रेस अगले आम चुनाव की तैयारियों का दंभ भर रही!
बदलाव होगा?
क्या नरेन्द्र मोदी कैबिनेट का पुनर्गठन जल्द? फिलहाल यह अनुमान भर। क्योंकि 2024 के आम चुनाव से पहले सरकार में एक बार तो फेरबदल संभव। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव हो चुके। वहां से एक दर्जन से ज्यादा मंत्री। सो, कुछ कम करने की संभावना। वहीं, मोदी कैबिनेट में कर्नाटक, तेलंगाना, तमिलनाडु एवं केरल से भी प्रतिनिधित्व बढ़ाए जाने के कयास। हां, अब एनडीए बस नाम भर का रह गया। एक दो को छोड़कर लगभग सारे मंत्री भाजपा के। इसीलिए इनमें और बढ़ोतरी की संभावना। असल में, यह बदलाव आम चुनाव की तैयारी का अंतिम चरण होगा। वैसे महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान एवं मध्यप्रदेश से भी कैबिनेट में हिस्सेदारी बढ़ने की संभावना। पीएम मोदी अब सियासी, जातिय और क्षेत्रीय समीकरण दुरूस्त करने का प्रयास करेंगे। क्योंकि मसला अगले आम चुनाव का। जिसमें किसी भी प्रकार के जोखिम का सवाल ही नहीं। वैसे भी मोदी-शाह के कार्यकाल में भाजपा हमेशा चुनावी मोड़ में रहती। फिर हर समय किसी न किसी राज्य में चुनावी तैयारी रहती।
सस्पेंस बरकार!
कुछ भी हो। कांग्रेस के संगठन चुनाव में सस्पेंस बरकरार। अभी तस्वर पूरी तरह से साफ नहीं। राजनीतिक जानकारों के लिए देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस में चुनाव अपने आप में कौहतुल और जिज्ञासा का विषय। हो भी क्यों न? आखिर गांधी नेहरू के जमाने की पार्टी। जो आज भी देश की राजनीति में उतनी ही प्रासंगिक। फिर देश को आगे ले जाने में कांग्रेस के योगदान को कौन नकारेगा? चर्चा यह भी कि कई नेता चुनाव लड़ने का मन बना रहे। इसीलिए वोटर लिस्ट सार्वजनिक करने की मांग कर रहे। बात चाहे शशि थरूर की हो या मनीष तिवारी की। इस बीच, कुछ लोगों के कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाने की भी आहट। यदि ऐसा हुआ तो? क्या चुनावी तारीखें आगे खिसक जाएंगी? फिर वैसे भी कांग्रेस भारत जोड़ो यात्रा शुरू करने जा रही। जिसे 2024 की तैयारियों के लिए देशज जनसंपर्क अभियान भी बताया जा रहा। हालांकि कांग्रेस के रणनीतिकार इससे इनकार कर रहे। वह केन्द्र सरकार पर निशाना साध रहे।
कांग्रेस मन ना भावे!
मराठा क्षत्रप शरद पवार भविष्य में कांग्रेस के साथ गठबंधन को राजी नहीं। वह शिवसेना के साथ सहज और अपनी संभावनाएं भी देख रहे। लेकिन कांग्रेस को साथ लेने में अपना नुकसान समझ रहे। मतलब आजकल शिवेसना के अलावा कांग्रेस शरद पवार को मन नहीं भा रही। असल में, कांग्रेस महाराष्ट्र में टूट के कगार पर बताई जा रही। ज्यों-ज्यों मुंबई महानगर पालिका के चुनाव नजदीक आ रहे। सियासी समीकरण बन, बिगड़ रहे। फिर राजनीति के दिग्गज पवार क्यों न अपना फायदा सबसे पहले देखें। इसीलिए उन्हें कांग्रेस से ज्यादा शिवसेना भा रही। क्योंकि फिर आगे आम चुनाव और विधानसभा चुनाव भी। यदि कांग्रेस को साथ रखा। तो बंटवारे में एक तो सीट कम मिलेंगी। और फिर वोट का गणित सबसे महत्वपूर्ण। कांग्रेस का वोट बैंक लगभग वही। जो मुख्य रूप से एनसीपी और शिवसेना का। बस यहीं शिवसेना पवार को अपने लिए मुफिद लग रही। फिर राजनीतिक लड़ाई भी तो भाजपा से। जो पवार परिवार पर लगातार शिकंजा कस रही।
-दिल्ली डेस्क
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