अस्पतालों की हेल्प डेस्क मरीजों को कर रही होपलेस
जांच से लेकर भर्ती होने तक अस्पताल में होना पड़ता चक्कर घिन्नी
सबसे ज्यादा परेशानी ग्रामीण क्षेत्र से आए लोगों को होती है। संभाग का बड़ा अस्पताल होने से यहां कोटा, बारां, बूंदी, झालावाड़ से रेफर होकर मरीज इलाज के लिए आते हैं। लेकिन मरीजों कहां जांच करानी है, कौन से वार्ड में मरीज को ले जाना है। इसकी हेल्प डेस्क से सटीक जानकारी नहीं मिलने से मरीज लोगों को इधर उधर पूछताछ करनी पड़ती है।
कोटा। संभाग के सबसे बड़े अस्पतालों में मरीजों को नि:शुल्क इलाज, जांच और वार्ड में भर्ती होना आसान काम नहीं है। यहां मरीजों और तीमारदारों के लिए बनाई हेल्प डेस्क मरीजों के लिए हेल्पलेस ही साबित हो रही है। सरकार ने मरीजों के तीमारदारों की सहायता के लिए मुख्य गेट के पास बनाई हेल्प डेक्स पर तीमारदारों को ठीक से जानकारी ही नहीं मिलती है ऐसे में तीमारदार मरीजों के लिए अस्पताल में चक्कर घिन्नी की तरह इधर से उधर भटकते है। सबसे ज्यादा परेशानी ग्रामीण क्षेत्र से आए लोगों को होती है। संभाग का बड़ा अस्पताल होने से यहां कोटा, बारां, बूंदी, झालावाड़ से रेफर होकर मरीज इलाज के लिए आते हैं। लेकिन मरीजों कहां जांच करानी है, कौन से वार्ड में मरीज को ले जाना है। इसकी हेल्प डेस्क से सटीक जानकारी नहीं मिलने से मरीज लोगों को इधर उधर पूछताछ करनी पड़ती है।
वेंटिलेटर पर हैं एमबीएस अस्पताल की इमरजेंसी सेवाएं
संभाग के सबसे बड़े अस्पताल एमबीएस की इमरजेंसी सेवाएं वेंटिलेटर पर हैं। ओपीडी समय के बाद अस्पताल आने वाले मरीज (इमरजेंसी) की जानकारी के अभाव में घंटों इधर से उधर चक्कर काटने को मजबूर हो रहे हैं। कहने को तो यहां पर पूछताछ केंद्र और चिकित्सा हेल्प डेस्क बना रखी है पर अस्पताल बंद होने के बाद मरीजों और तीमारदारों को जानकारी देना वाला एक भी कार्मिक इन जगहों पर नहीं मिलता है। मिल जाए तो जानकारी ऐसी देगा की तीमारदार घूमता रहेगा। नांता निवासी रामनारायण बैरवा ने बताया कि एमबीएस अस्पताल में पहले तो पर्ची काउंटर पर लंबी लाइन में खड़ा रहा उसके बाद ओपीडी के बाहर कतार में पौन घंटा लगा, जैसे तैसे नंबर आया तो डॉक्टर ने एमआरआई जांच कराने को लिख दिया। पर्ची लेकर पूछताछ डेस्क पर गया तो कहा रसीद काउंटर जाऊ वहां से फार्म भरकर दिए तो आधार कार्ड फोटो काफी मांगी । जैराक्स कराकर लाकर दिया तो उन्होंने एक रसीद बना दी। रसीद लेकर एमआरई जांच कहां करानी है पूछने पर बताया कि ये जांच मेडिकल कॉलेज में होगी। आॅटो करके न्यू मेडिकल चिकित्सालय पहुंचा तो वहां काउंटर पर बताया कि इस पर तो डॉक्टर की सील ही नहीं लगी है। सील लगाकर लाओं। इसमें पूरा दिन हो गया। दुबारा एमबीएस आया तो यहां डॉक्टर साहब निकल गए सील के लिए अगले दिन आने को कहकर भेज दिया।
ईसीजी के लिए करना पड़ता है आधा घंटा इंतजार
तीमारदार रवि सिंह ने बताया कि सरकार ने जब से महंगी जांचे निशुल्क की उसके बाद से सरकारी अस्पताल में जांच और इलाज कराना आसान काम नहीं रहा। सरकार की ओर से जांच के लिए एमबीएस अस्पताल में ईसीजी करना तक आसान नहीं है। यहां कितनी ही इमरजेंसी क्यों ना हो आधा घंटा लगना तो आम बात है। मरीजों को दुर्घटना में घायल मरीज को स्ट्रेचर पर लेटा रखा था। पूछताछ पर कोई बताने वाला नहीं ईसीजी कहां करानी है कहां दिखाना है। पहले ईसीजी में एक आधे घंटे तक इंतजार किया, फिर सिटी स्कैन के लिए भेजा। वहां से आने के बाद यह नहीं बताया कि उसे कौन से वार्ड में भर्ती करना है। काफी देर तक इमरजेंसी के बाहर मरीज को स्ट्रेचर पर रखा बाद में सूचना देने पर ट्रॉली चालक को बुलाकर उसे वार्ड में भर्ती कराया। वहीं बोरखेडा के रामभरण को पैरों में तकलीफ थी। परिजन खुद सुबह 11 बजे से लेकर अस्पताल पहुंचे लेकिन वह भी भर्ती कराने को लेकर घूम रहे थे। दोपहर 2 वार्ड में भर्ती हुआ। ये तो केवल बानगी है। अस्पताल आने वाले ऐसे कई मरीज हैं, जिनको ये पता नहीं रहता कि एक्स-रे कहां होता है, भर्ती वार्ड कहां है, सिटी स्कैन कहां होती है, जांचें किधर होती हैं? जानकारी के अभाव में तीमारदार, मरीज को लेकर इधर से उधर घंटों तक भटकते रहते हैं। पूछताछ केंद्र और चिकित्सा हेल्प डेस्क पर जानकारी देने वाला अधिकांश समय मिलते ही नहीं है।
एमआरआई मशीन से जांच के लिए मिल रही लंबी तारीख
एमबीएस अस्पताल में एमआरआई मशीन की सुविधा नहीं है। एमबीएस अस्पताल में डॉक्टर द्वारा मरीज की एमआरआई जांच लिखने पर उसे न्यू मेडिकल चिकित्सालय जाना पड़ता है। वहां गंभीर मरीजों की जांच के लिए घंटो लग जाते है। बिना इमरजेंसी वाले मरीजों को तीन चार दिन आगे तारीख दी जाती है। यहां भी मरीजों को जांच के लिए लगने वाले आवश्यक दस्तावेजों की जानकारी नहीं होने से एक ही दिन में जांच कराना आसान नहीं है। एमआरआई जांच के लिए मरीजों की सुबह से लंबी कतारे लगना शुरू हो जाती है। एक दिन में एमआरआई कराना आसान नहीं है।
अस्पताल में मरीजों के लिए हेल्प डेक्स लगा रखी है। यहां मरीजों को पूरी जानकारी दी जाती है। मरीजों को जानकारी में किसी प्रकार की परेशानी आ रही है तो कार्मिकों को पूरी जानकारी देने के लिए पाबंद किया जाएगा। अस्पताल में जगह जगह वार्ड और कमरा नंबर के लिए बोर्ड भी लगे हुए है। संकेत भी लगे है।
- डॉ. समीर टंडन, उप अधीक्षक एमबीएस अस्पताल
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