हिन्दी के ह्रदय में राजस्थान का अहम स्थान

हिन्दी दिवस पर नवज्योति विशेष

हिन्दी के ह्रदय में राजस्थान का अहम स्थान

हिन्दी की आधारशिलाएं राजस्थान की ही हैं। रासो साहित्य हो या महाकाव्य या दोहे। हिन्दी के दस प्रमुख महाकाव्यों में अधिकतर यहीं के हैं।

जयपुर। हिन्दी हमारी राज भाषा है; पर राजस्थान के बिना यह अधूरी है। हिन्दी की आधारशिलाएं राजस्थान की ही हैं। रासो साहित्य हो या महाकाव्य या दोहे। हिन्दी के दस प्रमुख महाकाव्यों में अधिकतर यहीं के हैं। ढोला मारू के दोहे हिन्दी में पढ़ाए जाते हैं, जो राजस्थान से हैं। बिहारी सतसई, पद्मावत, वृंद सतसई, वीर सतसई जैसे काव्य ग्रंथ हों या स्वामी दयानंद सरस्वती का लिखा सत्यार्थप्रकाश। ये सभी राजस्थान में रचे गए। हिन्दी भाषा का जो चदरिया आज पूरा हिंदुस्तान ओढ़ रहा है, उसके धागे राजस्थान के चरखों  पर कतने के बाद भी ही खड्डी तक पहुंचे। 

दुनिया की पहली बागी कवयित्री!
हिन्दी साहित्य में मीरा की पदावलियां निधि हैं। वे नागौर के कुड़की में 1377 में जन्मी।  कृष्ण भक्त थीं। उन्होंने कहा था, कोई कहै कारो, कोई कहै गोरो, मैं तो लियो है री आंखीं खोल। मीरा संत रैदास की शिष्य थीं और दुनिया की पहली बागी कवयित्री! उन्होंने जहर का प्याला पिया।

बिहारी सतसई
बिहारी और उनकी सतसई के बिना हिन्दी साहित्य की कल्पना ही नहीं की जा सकती। यह जयपुर में मिर्जा राजा जयसिंह के शासनकाल में सोलहवीं सदी में जयपुर में रची गई। 

पद्मावत
पद्मावत मलिक मुहम्मद जायसी की लिखा अवधी का महाकाव्य है।  इसमें सूफी जीवन दर्शन का वर्णन है, लेकिन इसकी कहानी चित्तौड़ के राणा रतनसेन और पद्मिनी की प्रेम कहानी है। 

उसने कहा था
यह हिन्दी की पहली आधुनिक कहानी मानी जाती है। इसे अब सौ साल हो चुके हैं। इसके लेखक चंद्रधर शर्मा गुलेरी अजमेर स्थित मेयो कॉलेज में संस्कृत के विभागाध्यक्ष थे। 

धागा प्रेम का
अब्दुदर्रहीम खानेखाना प्रसिद्ध कवि तो थे ही, वे अकबर के सेनापति भी थे। यह कम लोगों को जानकारी है कि वे रणथंभौर के जागीरदार भी रहे हैं। उनके दोहे प्रेम के धागे बुनते हैं। 

वृंद सतसई
वृंद हिन्दी के प्रख्यात कवि थे। वे नीति के दोहे लिखकर प्रसिद्ध हुए। वे मूलत: मेड़ता के थे। वृंद के पूर्वज बीकानेर के निवासी थे। वृंद की सतसई हिन्दी साहित्य में बेहद प्रसिद्ध है। 

वीर सतसई
वीर पुरुषों पर हिन्दी के प्रख्यात साहित्यकार वियोगी हरि की लिखी वीर सतसई का उल्लेख सभी इतिहासकारों ने प्रमुखता से किया है। यह हिन्दी की अनुपम निधि है। 

हल्दीघाटी
इस महाकाव्य को श्यामनारायण पांडेय ने रचा। यह  हिन्दी के प्रसिद्ध महाकाव्यों में एक माना जाता है। इसकी पृष्ठभूमि हल्दीघाटी का युद्ध और प्रताप तथा चेतक का शौर्य है। 

सत्यार्थ प्रकाश
उदयपुर में यह ग्रंथ रचने वाले दयानंद सरस्वती ने हिन्दी को आधुनिक बनाने का काम किया। हिन्दी के साहित्यकारों ने मानक भाषा के रूप में इसी ग्रंथ को शुरू में माना। 

गोली
आचार्य चतुरसेन शास्त्री किसी समय जयपुर में रहे थे और उन्होंने राजस्थान के रनिवासों का काफी अध्ययन किया था। इसी पर उनका यह उपन्यास हिन्दी भाषा की बड़ी निधि है।

ये है बेहतरीन गीतकार
राजस्थान ने हिन्दी सिनेमा को बेहतरीन गीतकार भी दिए। इनमें हसरत जयपुरी और भरत व्यास तो थे ही, विश्वेश्वर शर्मा और शमीम जयपुरी भी प्रमुख रहे हैं। इन्होंने कमाल गीत लिखे, जो हिन्दी साहित्य में अहम हैं। भरत व्यास का आधा है चंद्रमा, रात आधी, रात आधी तेरी मेरी बात आधी जैसे गीत दुर्लभ हैं। 

हिन्दी के नभ में राजस्थान के रचियता
हिन्दी के कवियों या साहित्यकारों में एक अहम नाम है : नंदकिशोर आचार्य। वे प्रदेश के अकेले ऐसे साहित्यकार हैं, जिन्हें केंद्रीय  साहित्य अकादमी का पुरस्कार मिला हुआ है। आचार्य मूलत: बीकानेर से हैं और उन्होंने कविता, नाटक, कहानी, समालोचना और अनुवाद संबंधी बहुत उल्लेखनीय काम किया है।

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