निर्वाचन आयोग ने चुनाव प्रक्रिया में सुधार लाने और पारदर्शिता को लेकर कानून मंत्रालय भेजे सुझाव
सभी दल बनाए रखना चाहते हैं अपने चंदे की गोपनीयता
आयोग ने अपने पत्र में मंत्रालय को जन प्रतिनिधित्व अधिनियम में संशोधनों की भी सिफारिश की है।चुनावों के दौरान उम्मीदवार चुनाव के लिए अलग से बैंक खाता खोलें और उनका लेन-देन सारा इसी खाते से हो। साथ ही चुनावी खर्च के ब्यौरे में इसकी जानकारी भी दी जाए।
निर्वाचन आयोग ने चुनाव प्रक्रिया में सुधार लाने और राजनीतिक दलों द्वारा उगाहे जाने वाले चंदे की पारदर्शिता को लेकर कानून मंत्रालय को एक सुझाव भेजा है। आयोग का कहना है कि राजनीतिक दलों को मिलने वाले नकद चंदे की सीमा बीस हजार रुपए से घटाकर दो हजार की जाए, साथ ही नकद चंदे को 20 प्रतिशत या अधिकतम 20 करोड़ रुपए तक सीमित रखा जाए। आयोग ने अपने पत्र में मंत्रालय को जन प्रतिनिधित्व अधिनियम में संशोधनों की भी सिफारिश की है। चुनाव आयोग यह भी चाहता है कि चुनावों के दौरान उम्मीदवार चुनाव के लिए अलग से बैंक खाता खोलें और उनका लेन-देन सारा इसी खाते से हो। साथ ही चुनावी खर्च के ब्यौरे में इसकी जानकारी भी दी जाए।
इन सुझावों या सिफारिशों से जाहिर होता है कि आयोग राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे की व्यवस्था में सुधार और पारदर्शिता लाना चाहता है। गौरतलब है कि हाल ही में आयोग ने नियमों का उल्लंघन करने वाले 284 दलों का पंजीकरण रद्द कर दिया था। इसके अलावा आयकर विभाग ने पिछले दिनों कर चोरी के आरोप में कई राजनीतिक इकाइयों के ठिकानों पर छापे भी मारे थे। देखें तो राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे में पारदर्शिता लाने की मांग काफी पुरानी है, लेकिन कोई भी दल इस पारदर्शिता के पक्ष में नहीं दिखता। सभी दल अपने चंदे की गोपनीयता ही बनाए रखना चाहते हैं। चुनावी बांड की व्यवस्था करते समय उम्मीद बंधी थी कि पार्टियों को चंदे के रूप में देकर काले धन को छिपाने की प्रवृत्ति पर लगाम लगेगी। मगर यह व्यवस्था भी विफल साबित रही। कोई भी बैंक चंदा देने वाले की पहचान बता नहीं सकता। इस तरह चंदे की पारदर्शिता तो दूर, राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे की मात्रा में बेतहाशा अंतर आया है। केन्द्र सरकार काले धन को लेकर कड़ा रूख रखती है, इसलिए उसे आयोग के सुझावों को मान लेने में कोई दिक्कत तो नहीं होनी चाहिए। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि चुनाव काले धन के आधार पर लड़ा जाता है और जमकर खर्च किया जाता है। देखना है सरकार चुनाव के सुझावों को कितना अमल में लाती है, अन्यथा आयोग को ही कोई अपनी व्यवस्था लागू करनी होगी।
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