केरल: राज्यपाल और सरकार में बढ़ता टकराव

सार्वजानिक रूप से दोनों और से लगातार टिप्पणियां हो रही हैं

केरल: राज्यपाल और सरकार में बढ़ता टकराव

यह किसी से छिपा नहीं कि जब से केंद्र की बीजेपी नीत एनडीए सरकार ने आरिफ  मोहम्मद खान की केरल के राज्यपाल के रूप में नियुक्ति की है तब से उनके राज्य की वाम सरकार से कई मुद्दों पर मतभेद थे।

केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान और राज्य में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी नीत वाम मोर्चे की सरकार के बीच टकराहट लगातार बढ़ती जा रही है। रोज कोई न कोई मुद्दा आ ही जाता है। जिस पर दोनों पक्षों में सहमति नहीं बनती। राज्यपाल और राज्य सरकार में कुछ मुद्दों पर सहमति न होना एक सामान्य सी बात है। जो आपसी विचार-विमर्श से खत्म की जा सकती है। लेकिन दक्षिण के इन राज्य में असहमति के मुद्दों पर मीडिया के जरिए सार्वजानिक रूप से दोनों और से लगातार टिप्पणियां हो रही हैं। कुछ संवैधानिक प्रावधानों और परम्परा के अनुसार केंद्र में राष्टÑपति तथा राज्यों में राज्यपाल सरकारों से अहसमति सार्वजानिक  रूप से प्रकट नहीं करते। लेकिन केरल में अब यह सीमाएं पार कर दी गई हैं।

यह किसी से छिपा नहीं कि जब से केंद्र की बीजेपी नीत एनडीए सरकार ने आरिफ  मोहम्मद खान की केरल के राज्यपाल के रूप में नियुक्ति की है तब से उनके राज्य की वाम सरकार से कई मुद्दों पर मतभेद थे। वे राज्य की  वाम मोर्चा सरकार की आंख की किरकिरी बने हुए हैं।  राज्य सरकार उनको हटाए जाने की मांग तक कर चुकी है। उधर आरिफ  मोहम्मद खान इस बात पर पुख्ता है कि  राज्यपाल के रूप में  उनका सबसे पहला दायित्व नियम कानूनों और संविधान की रक्षा करना है। यह उनकी  जिम्मेदारी है कि सरकार संविधान के दायरे में रहकर ही काम करें और नियम कानून बनाए। लेकिन ऐसा लगता है कि राज्य की वाम सरकार अपने निहित राजनीतिक स्वार्थों के लिए  कुछ ऐसे कानून बनाना चाहती है, जो उसके अधिकारों से  बाहर है। राज्यपाल के रूप में आरिफ मोहम्मद खान औपचारिक और अनौचारिक दोनों रूप से सरकार को बता चुके हैं कि वे विधानसभा में पारित किसी ऐसे विधेयक पर अपने सहमति नहीं दे देंगे, जो राज्य सरकार के संवैधानिक अधिकारों से बाहर है। इसके बावजूद राज्य की वाम सरकार ने अपने बहुमत के आधार पर कम से कम दो ऐसे विधेयक पारित करवा लिए, जो उसके अधिकारों की सीमा से बाहर माने जाते हैं। उधर राज्यपाल का आरोप है कि सत्ताधारी दल के नेता उन पर दबाव बनाने के लिए कोई हथकंडा अपनाने से गुरेज नहीं कर रहें।

कुछ समय पूर्व राज्य के विश्वविद्यालय में उन्हें  कुलपति के रूप एक आयोजन के लिए आमंत्रित किया गया। वहां न केवल वाम दलों के नेता उनके प्रदर्शन के लिए पहुंच गए, जबकि सरकार की जिम्मेदारी ऐसे प्रदर्शन रोकने की थी। केवल इतना नहीं उन पर हमला तक किया गया। उनके सुरक्षा के लिए नियुक्त एडीसी की तत्परता से वे बच गए। इस हमले में एडीसी की वर्दी फट गई। राज्यपाल का आरोप है कि यह सब सोची समझी साजिश के अंतर्गत किया  गया है। राज्य सरकार उन पर लगातार दबाव बना रही थी वे वर्तमान विश्वविद्यालय के उपकुलपति का सेवाकाल बढ़ा दें। लेकिन विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में उन्होंने ऐसा करने से इंकार कर दिया, क्योंकि यह नियमों के विपरीत था। सरकार इस बात को लेकर उनसे नाराज थी। बाद में राज्य सरकार ने विधानसभा से एक विधेयक पारित कर विश्वविद्यालयों के उप कुलपतियों की नियुक्ति का अधिकार अपने हाथ में लेना चाहा। चूंकि संविधान के अनुसार यह अधिकार केवल राज्यपाल के पास ही है इसलिए उन्होंने इस विधेयक पर अपनी सहमति अभी ही तक नहीं दी है।

राज्य सरकार ने हाल ही में विधानसभा से एक विधेयक पारित कर लोकायुक्त के अधिकारों को कम कर दिया।  आरिफ  मोहम्मद खान ने इस पर भी अभी तक सहमति नहीं दी है। उनका कहना है कि केंद्र में लोकपाल तथा राज्यों में लोकायुक्तों की नियुक्ति केंद्रीय कानून के अनुसार की जाती है। राज्य सरकारें अपने यहां नियुक्त लोकायुक्तों के अधिकारों को कम नहीं कर सकती।

सामान्य तौर केंद्र में राष्टÑपति तथा राज्यों में राज्यपाल सीधे तौर पर मीडिया को संबोधित नहीं करते। उनको जो कुुछ कहना होता है वह सरकार के माध्यम से कह देते हैं। लेकिन पिछले दिनों से इस परम्परा से हटकर राजभवन में बाकायदा नियमित प्रेस कांफ्रेंस का आयोजन किया। आरिफ मोहम्मद खान की यह प्रेस कांफ्रेंस ढाई घंटे तक चली तथा इसमें राज्यपाल ने इन सभी मुद्दों पर खुलकर और विस्तार  से अपने पक्ष को रखा। उन्होंने बार-बार जोर देकर कहा कि वे ऐसे किसी विधेयक पर अपनी सहमति नहीं देंगे, जो उनके विचार से संविधान के अनुसार राज्य सरकारों के अधिकारों क्षेत्र से बाहर हैं। ऐसी आशंका है कि आने वाले दिनों में राज्य के राज्यपाल और वाम मोर्च सरकार में टकराहट और बढ़ेगी।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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