पृथ्वी के तापमान में वृद्धि : खतरे के संकेत

अनदेखी खतरनाक साबित होगी

पृथ्वी के तापमान में वृद्धि : खतरे के संकेत

बढ़ती जनसंख्या, बढ़ते उद्योगों एवं विध्वंस होते वनों एवं जंगलों के कारण विश्व ‘बढ़ते तापमान’ एवं जलवायु परिवर्तन जैसी ज्वलन्त समस्याओं से जूझता हुआ विनाश के कगार पर खड़ा है। गत एक शताब्दी के दौरान पृथ्वी के औसत तापमान में लगभग 0.74 डिग्री सेंटीग्रेड की वृद्धि हुई है एवं गत पचास वर्षों के दौरान वैश्विक तापमान में वृद्धि दुगुनी हो गई है।

चिन्ताजनक तथ्य है कि इक्कीसवीं सदी में तापमान में वृद्धि तीन से पांच डिग्री सेल्सियस होने का अनुमान है, जो कि समस्त विश्व के लिए खतरनाक स्थिति होगी। अमेरिकन अर्थशास्त्री एवं पर्यावरणविद् प्रोफेसर फ्रें क एंकरमैन ने भी विश्व समुदाय को आगाह किया है कि वैश्विकतापमान में वृद्धि की अनदेखी खतरनाक साबित होगी। हम अगर हालात पर नियंत्रण नहीं करते तो ये सारा आर्थिक ढांचा आगामी कुछ दशकों में बर्बाद हो जाएगा। पचास साल बाद शायद हम इस अर्थव्यवस्था को संचालित करने लायक हालत में नहीं बचेंगें। बढ़ती जनसंख्या, बढ़ते उद्योगों एवं विध्वंस होते वनों एवं जंगलों के कारण विश्व ‘बढ़ते तापमान’ एवं जलवायु परिवर्तन जैसी ज्वलन्त समस्याओं से जूझता हुआ विनाश के कगार पर खड़ा है। वैश्विक तापमान वृद्धि के कारण सम्पूर्ण पृथ्वी में परिवर्तन परिलक्षित हो रहे हैं, कहीं भारी वर्षा हो रही हैं, तो कहीं गर्मी और लू के थपेड़ों से लोग त्रस्त हैं, कई स्थानों पर अकाल व सूखे की छाया मंडरा रहीं है तो कई स्थानों पर कंपकंपाती ठंड है, कहीं गलेश्यिर टूट रहे हैं, तो कहीं समुद्र के जलस्तर में तीव्र बढ़ोतरी के कारण तटीय इलाकों पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। चिन्ताजनक अनुमान व्यक्त किया गया है कि गत एक शताब्दी के दौरान पृथ्वी के औसत तापमान में लगभग 0.74 डिग्री सेंटीग्रेड की वृद्धि हुई है एवं गत पचास वर्षों के दौरान वैश्विक तापमान में वृद्धि दुगुनी हो गई है।


मानव विकास रिपोर्ट में भी आईपीसीसी के अध्ययन के आधार पर यह चेतावनी समस्त विश्व को दी गई है कि यदि वर्तमान प्रवृत्ति के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग जारी रही तो जलवायु परिवर्तन के घातक परिणाम सामने आएंगे। इस रिपोर्ट में विशेष रूप से विकासशील और निर्धन देशों को सतर्क किया गया है कि जलवायु परिवर्तन के सर्वाधिक घातक प्रभाव इनको सहन करने पड़ेंगें, क्योंकि इनके पास ऐसी मुसीबतों का मुकाबला करने के लिए न तो पर्याप्त साधन उपलब्ध है और न ही कोई प्रभावी उपाय विद्यमान हैं।नि:संदेह रूप से भौतिकवाद की यह आंधी समस्त मानव जाति के अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न लगा रही है। आज हमारी धरती वैश्विक ताप के शिकंजे में फंसती जा रही है जिसका मूलभूत कारण प्राकृतिक संसाधनों का अनियंत्रित दोहन व तीव्र गति से औद्योगिक  विकास के लिए सतत प्रयत्नशील होना है। मानव की भौतिकवादी प्रवृत्ति के कारण भी जलवायु में परिवर्तन परिलक्षित हो रहे हैं। आज का मानव फ्र ीज, टीवी, कूलर, एसी, कम्प्यूटर व कार मोटरों का गुलाम बन गया है। यही नहीं, ये सब उपकरण ‘परिस्थति निर्धारक तत्व’ बन गए हैं। इन सब की वजह से वातावरण अनवरत प्रदूषित होता जा रहा है, गाड़ियों से निकलता धुंआ पर्यावरण को प्रदूषित कर रहा है, वहीं कारखानों से  उगलती चिमनियां पर्यावरण के लिए खतरनाक साबित हो रही हैं। क्लोरो फ्लोरो कार्बन गैस से वातावरण को नुकसान पहुंच रहा है।


कृषि कार्यों, घरेलू कार्यों तथा वाहनों में डीजल, पैट्रोल व अन्य ऊर्जा स्रोेतों का उपयोग तथा जनसंख्या वृद्धि के कारण लकड़ी, गैस व कैरोसिन का उपयोग उत्तरोत्तर बढ़ता जा रहा है। इन सब की वजह से वातावरण में कार्बन-डाई आक्साइड की मात्रा तेजी से बढ़ती जा रही हैं। वातावरण में कार्बन की मात्रा अधिक संचित होने के दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। समस्त विश्व में तूफान, चक्रवात, सुनामी व वनों में आग लगने की घटनाएं तेजी से बढ़ती जा रही है जो मानव सभ्यता के लिए खतरे के संकेत हैं। निसंदेह रूप से, वैश्विक तापमान में वृद्धि के कारण लोगों की पेयजल जैसी बुनियादी आवश्यकताएं पूरी नहीं होगी, क्योंकि स्वच्छ जल के भंडार हिमनद निरन्तर पिघलते जा रहे हैं। तापमान में परिवर्तन का प्रमुख दुष्प्रभाव विभिन्न देशों में बढ़ते जल संकट के रूप में देखा जा सकता है। ऐसा अनुमान है कि अफ्रीका में वर्ष 2030 तक जलवायु परिवर्तन के कारण करीब 7 करोड़ से लेकर 25 करोड़ लोगों को पानी का अभाव झेलना पड़ सकता है। विभिन्न शोध अध्ययनों के आधार पर ऐसा अनुमान प्रस्तुत किया गया है कि हमारे देश के कुछ हिस्सों यथा कच्छ, सौराष्ट एवं राजस्थान में जल संकट की स्थिति भयावह होने के कारण सूखे की गंभीर स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जबकि देश के दूसरे हिस्सों में बाढ़ की विभीषिका तबाही उत्पन्न हो सकती है, जिससे संक्रामक बीमारियों एवं महामारियों का प्रकोप बढ़ जाएगा।  बाढ़, तूफान व सूखा पड़ने से फसलों का चक्र नष्ट हो जाएगा एवं समुद्री जल स्तर बढ़ने से तटीय प्रदेशों के जलमग्न हो जाने जैसे घातक प्रभाव निरन्तर बढ़ते जाएंगें।आईपीसीसी की रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक तापमान में वृद्धि के फलस्वरूप वर्षा के प्रतिरूप में भी परिवर्तन दृष्टिगोचर हो रहे हैं। विभिन्न रिपोर्टों एवं आंकड़ों के विश्लेषण से यह तथ्य उभरकर सामने आया है कि विश्व में बढ़ते तापमान के कारण उत्पादन में कमी दर्ज की जा रही है, फसल चक्र अनियमित व असंतुलित होता जा रहा है। वर्तमान में पृथ्वी का पारिस्थितिकी तंत्र तेजी से परिवर्तित हो रहा है। मानव एवं पशुओं की दिनचर्या एवं जीवन चक्र असंतुलित होता जा रहा है।      

       
-डॉ. (श्रीमती) अनीता मोदी
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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