पीएफआई की राजनीतिक और नैतिक हार

पीएफआई अपनी विचारधारा से वहाबी संगठन है

पीएफआई की राजनीतिक और नैतिक हार

पीएफआई की फंडिंग भी इस पर प्रतिबंध की एक बड़ी वजह बनी है। ऐसी आशंका है कि अपनी गतिविधियों को चलाने के लिए पीएफआई ने दुबई के एक रेस्टोरेंट के जरिए लाखों रुपए हवाले से भारत में प्राप्त किए और इससे अपनी गतिविधियों को चलाया।

पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया आखिर उस परिणिति को पहुंच गया, जहां कयास लगाया जा रहा था। पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी पीएफआई अकेले नहीं बल्कि इसके साथी संगठनों कैम्पस फ्रंट ऑफ इंडिया, रिहैब फाउंडेशन ऑफ इंडिया, ऑल इंडिया इमाम काउंसिल, जूनियर फ्रंट, नेशनल कॉन्फण्ड्रेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गेनाइजेशन, नेशनल विमेंस फ्रंट और एम्पावर इंडिया फाउंडेशन पर भी पांच साल का प्रतिबंध लगा दिया गया। सबूतों की लम्बी शृंखला के बाद भारत सरकार ने 28 सितम्बर की अलसुबह राजपत्र में विस्तृत कारण गिनाते हुए यह प्रतिबंध लागू कर दिया। पिछली 22 तारीख से पीएफआई खबरों में था जब देशभर में उसके 100 कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया। फिर 27 तारीख को भी ऐसा ही अभियान चलाया गया और एक रात के फासले के बाद भारत में पीएफआई के कुल आठ संगठन पांच वर्ष के लिए प्रतिबंधित कर दिए गए।

पीएफआई पर गंभीर आरोप हैं। पीएफआई पर आरोप हैं कि दुर्दान्त आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट को जिन भारतीय नौजवानों ने ज्वाइन किया था उसमें कुछ पीएफआई से जुड़े थे। साल 2010 में पेपर में आपत्तिजनक सवाल पूछने के आरोप में एक कॉलेज प्रोफेसर के हाथ काटने का आरोप भी पॉपुलर फ्रंट पर है। तमिलनाडु में 2019 में वी. रामलिंगम और 2016 में शशि कुमार, केरल में नवम्बर 2021 में संजीत, 2021 में नन्दू, 2018 में अभिमन्यु, 2017 में बिबिन, कर्नाटक में 2017 में शरत, 2016 में आर. रुद्रेश, प्रवीण पुजारी और 2022 में प्रवीण नेत्तारू की हत्या में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के कार्यकर्ताओं का हाथ बताया जा रहा है। 

पीएफआई की फंडिंग भी इस पर प्रतिबंध की एक बड़ी वजह बनी है। ऐसी आशंका है कि अपनी गतिविधियों को चलाने के लिए पीएफआई ने दुबई के एक रेस्टोरेंट के जरिए लाखों रुपए हवाले से भारत में प्राप्त किए और इससे अपनी गतिविधियों को चलाया। गृह मंत्रालय का आरोप है कि इन पैसों को वैध दिखाने के लिए कई चैनल से घुमाया गया ताकि चंदे को सफेद दिखाया जा सकें।
पीएफआई अपनी विचारधारा से वहाबी संगठन है। पूरी दुनिया जिसे इस्लामी आतंकवाद पुकारती है दरअसल, वह वहाबी आतंकवाद है। यह नाम इस विचारधारा के संस्थापक इब्न अब्दुल वहाब के नाम पर रखी गई है। इस्लाम की कट्टर तफसीर हत्या को प्रमुख सजा के तौर पर स्थापित करने, महिलाओं, बच्चों के अधिकार निषेध और मनोरंजन की व्याख्या में अतिरंजना इस विचारधारा के प्रमुख हथियार हैं। इस्लामी स्टेट, अल कायदा, तालिबान, अल नुसरा, बोको हराम, हिज्बुल मुजाहिदीन या जैश-ए-मुहम्मद, हर संगठन की मूल विचारधारा वहाबी है। किसी संगठन को एक लक्ष्य के साथ स्थापित किया जा सकता है, लेकिन किसी को मानव बम के तौर पर मरने के लिए तैयार करने के लिए एक दुर्दान्त विचारधारा की जरूरत पड़ती है। पीएफआई ने भी उसी विचारधारा को एक मारक हथियार के तौर पर चुना। 

पॉपुलर फ्रंट पर सबसे पहले प्रतिबंध की मांग 2016 में दिल्ली की एक छोटी सी मस्जिद के इमाम मौलाना अशफाक हुसैन कादरी ने तत्कालीन गृह मंत्री राजनाथ सिंह से की थी। पीएफआई को जब आम लोग और मीडिया जानते भी नहीं थे तब एक इमाम की इस मांग के कारणों की गहराई में जाना चाहिए। अशफाक हुसैन कादरी ने आशंका जताई थी कि यह संगठन मारक है। युवाओं में वहाबी विचारधारा के पोषण के साथ कट्टरता और अलगाव की स्थिति पैदा कर रहा है। यह भारत संघ और भारत के संविधान के विरुद्ध है। ऐसे ही विचार बाद में मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इंडिया यानी एमएसओ के चैयरमेन शुजाअत अली कादरी ने व्यक्त किए। हाल के घटनाक्रम के बाद राजस्थान के संगठन तहरीक उलामा-ए-हिन्द के प्रवक्ता ने कहा कि पीएफआई पर आजीवन प्रतिबंध लगना चाहिए। अजमेर दरगाह के गद्दीनशीन ने इन प्रतिबंधों का स्वागत किया। इन सभी लोगों में समानता यह है कि यह सभी सूफी इस्लामी व्याख्या में विश्वास करते हैं। यह अन्तर उन सभी हितधारकों को समझना चाहिए, जो भारत में इस्लाम की विचारधारा और मुसलमान समाज की आंतरिक बनावट को समझना चाहते हैं।
 
सुन्नी वर्ग में आज भी भारत में बहुमत सूफी वर्ग का है। यह किसी न किसी सिलसिले से जुड़े हुए लोग हैं, जो तरीकत में विश्वास करते हैं। यह तरीकत उन सूफी बुजुर्गों के रूहानी प्रयोग हैं जो ख़ुदा की याद, जिक्र मजबूरों की सेवा, गरीबों की मदद, बीमारों की दवा और टूटे दिलों के लिए दुआ का नाम है। आश्चर्य की बात है कि ऐसी किसी तरीकत में वहाबी विचार विश्वास नहीं करती, मगर इसे मानने वाले भारत के राजनीतिक प्रतिनिधित्व तक में अपनी जगह बनाए बैठे हैं।

भारत में सूफीवाद के सबसे बड़े प्रयोग हुए हैं। यहां वहाबियत का पौधा वैसे भी फल नहीं दे सकता, लेकिन पीएफआई इस कोशिश में लगी रही कि वह एक दिन सामाजिक बंटवारा कर पाएगी। यहीं उसकी राजनीतिक और नैतिक हार हो जाती है।

-डॉ. अखलाक अहमद उस्मानी
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

Tags: islam pfi

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