भाया दसवारों तो अबकी घणो महंगो छ

पकौड़े-कचौडे से लेकर सोफ्टी तक हुई महंगी : झूलों का टिकट भी 100 रुपए से कम नहीं

भाया दसवारों तो अबकी घणो महंगो छ

मेले में महंगाई की मार लोगों की जेब पर भारी पड़ रही है। मेले में खाने-पीने की चीजों के दाम अधिक होने के साथ ही झूलों तक का किराया इतना अधिक है कि लोग सुनकर ही दंग रह गए।

कोटा । भाया दसवारों तो अबकी घणो महंगो छ, यह हम नहीं कह रहे मेला घूमने आए हर आदमी की व्यथा है।  कोरोना  काल के दो साल बाद आयोजित हो रहे रहे दशहरा मेले में इस बार महंगाई की मार पड़ रही है। खाने-पीने से लेकर अधिकतर चीजें महंगी हो गई हैं। वर्ष 2019 में आखिरी बार दशहरा मेला भरा था। उसके बाद कोरोना काल होने से दो साल तक मेला नहीं भरा। ऐसे में इस बार शुरुआत से ही लोगों को दशहरा मेला भरने का इंतजार था। व्यापारी से लेकर दुकानदार तक और आमजन से लेकर बच्चों तक को मेले का इंतजार था। जैसे ही मेला शुरू हुआ वैसे ही लोगों की खुशी  व उत्साह मेले में उमड़ रही भीड़ से लगाया जा सकता है। मेले में खरीदारी से अधिक अधिकतर खाने-पीने और झूलोÞ का आनंद लिया जाता है।  लेकिन हालत यह है कि मेले में महंगाई की मार लोगों की जेब पर भारी पड़ रही है। मेले में खाने-पीने की चीजों के दाम अधिक होने के साथ ही झूलों तक का किराया इतना अधिक है कि लोग सुनकर ही दंग रह गए। मेले में हर साल जहां गोभी के पकौडे  320 से 340 रुपए किलो के हिसाब से मिल रहे थे। नसीराबाद का कचौड़ा भी इसी दाम पर मिल रहा था। लेकिन इस बार इन दोनों के बढ़ गए हैं। गोभी के पकौड़े व नसीराबाद का कचौड़ा  380 से 400 रुपए किलो में मिल रहा है। एक पाव के भाव 95 से 100 रुपए है। लेकिन 95 रुपए पाव होने पर भी  ग्राहक से वसूले 100 रुपए ही जा रहे हैं। उसमें 5 रुपए के अतिरिक्त पकौड़े व कचौड़ा दिया जा रहा है। ऐसे में लोगों की जेब पर भार पड़ रहा है। इतना ही नहीं पहले जहां मेले में सोफ्टी 7 से 10 रुपए में मिल जाती थी। वह इस बार 30 रुपए से शुरू होकर 40 व 50 रुपए तक मिल रही है। ऐसे में जहां लोग परिवार समेत मेले में सोफ्टी खाने का आनंद लेते थे। उसमें कमी आई है। 

20 से 25 रुपए में काला जाम
सामान्य दिनों की तुलना में दशहरा मेले में काला जाम व हाथी जाम अधिक बिकता है। पहले इसकी कीमत 10 से 15 रुपए प्रति नग होती थी। लेकिन इस बार इसकी कीमत 20 से 25 रुपए प्रति नग है। लेकिन कुछ जगह पर 10 रुपए प्रति नग भी है लेकिन उसका आकार इतना छोटा  है कि वह गुलाब जामुन की तरह नजर आ रहा है। 

जेब पर अतिरिक्त भार
दिव्या दाधीच ने कहा कि  मेले में कई चीजों की कीमत अधिक होने से लोगों की जेब पर अतिरिक्त भार पड़ रहा है। यहां क्या खरीदें सबकुछ आजकल बाजार में उपलब्ध है। यहां तो केवल घूम फिरकर भीड़ देख लो और थोड़ बहुत झूला झूल लो। रंगमंच का कार्यक्रम देखना हो तो वहां चले जाओ। अब मेले में पहले जैसा मजा नहीं रहा। 

झूलों का टिकट 100 रुपए
इतना ही नहीं दशहरा समेत किसी भी मेले में सबसे अधिक क्रेज झूलों का रहता है। विशेष रूप से महिलाएं व बच्चे झृुलों को अधिक पसंद करते हैं। दो साल से झूले झूलने का इंतजार करने वालों को इस बार मेले में जैसे ही मौका मिला तो  उन्हें खुशी हुई । लेकिन जब वे मेला घूमने के दौरान झूला झूलने पहुंचे तो उसका टिकट सुनकर ही दंग रह गए। जिस झूले का टिकट 40 से 60 रुपए तक होता था वह इस बार कम से कम 100 रुपए का है। फिर चाहे वह नाव का झूला हो या ज्वाइंट व्हील वाला।  सांगोद से मेले में आए ग्रामीण श्याम लाल वर्मा से जब इस बारे में बातचीत की तो वह छूटते ही बोले भाया दसवारों तो अबकी मैंगो छ। जींकी जेब माइन पीसा होवे उई मजा लेवे। उनका कहना था कि वह कवि सम्मेलन सुनने हर बार सांगोद से आते ही हैं. इसबार शहर में कोई काम था तो सोचा मेला भी घूम लें। बच्चें के लिए कुछ खरीद लें। लेकिन महंगाई इतनी अधिक है कि खरीदारी के लिए जेब इजाजत ही नहीं दे रही। 

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टिकट की राशि अंकित नहीं 
दादाबाड़ी निवासी शैलेन्द्र सिंह ने कहा कि हर बार झूलों के बाहर टिकट खिड़की पर झूलों की राशि लिखी होती थी। जिससे दूर से पता चल जाता था। लेकिन इस बार अभी तक किसी भी झूला संचालक ने टिकट की राशि अंकित नहीं की है। जिससे मनमानी राशि वसूल की जा रही है। ऐसे में जहां परिवार के चार लोग एक साथ झूला झूल रहे थे वहीं महंगाई के चलते सिर्फ दो ही सदस्य झूृलकर अपना मनोरंजन कर पा रहे हैं।

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इनका कहना
हालांकि दुकानदारों का कहना है कि मेले में वे दूर दराज से आए हैं। उन्हें आने-जाने के किाराये से लेकर रहना खाना तक महंगा पड़ रहा है। झूलों व दुकानों को किराए पर लिया है वह भी महंगी पड़ी हैं। कई झूले वालों का कहना है कि उन्होंने तो नीलामी में महंगी दर पर झूलों की जगह ली है। ऐसे में उन पर भी तो महंगाई की मार पड़ी है। 

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