जानें राज-काज में क्या है खास

जानें राज-काज में क्या है खास

ना माया मिली, ना राम

ना माया मिली, ना राम
सूबे में हाथ वाले भाई लोगों की हालत कुछ ज्यादा ही खराब है। पावर चैयर के लिए 16 महीनों तक उछलकूद भी खूब की। न रात देखा और न ही दिन। कई देवताओं के देवरे ढोकने में भी कसर नहीं छोड़ी। इंदिरा गांधी भवन में बने पीसीसी के ठिकाने पर चर्चा है कि जोधपुर वाले अशोकजी भाई साहब की वर्किंग स्टाइल वाली किताब के हर पन्ने को पढ़ लेते तो आज यह दशा नहीं होती। और तो और सूबे में होने वाली चुनावी जंग में टिकट मिलना तक मुश्किल है। अब बेचारों को न माया मिली और न ही राम।


खेल-खेल में खेल

खेल-खेल में कब कौन खेल जाए, कुछ पता नहीं चलता, बाद में चर्चा करने वाले करते रहे, कुछ नहीं होता। लेकिन जब खेल में कोई रोड़ा बनता है, तो उसकी रवानगी हो जाती है, तो उसकी चर्चा हुए बिना नहीं रहती। राज का काज करने वालों में ऐसे ही एक साहब की चर्चा जोरों पर है। साहब भी छोटे-मोटे नहीं, बल्कि मराठा भूमि से ताल्लुकात रखते हैं और वर्ष 99 के बैच के हैं। रामायण के पात्रों के नाम वाले साहब ने भी भाले से बाटी सेकने में कोई कसर नहीं छोड़ी। खेल वाले महकमे में 37 साल वाले साहब के खेल में रोड़ा बने विकासजी भी लोअर-टीशर्ट वाली फाइल वाले मामले में टस से मस नहीं हुए। चर्चा है कि मराठी साहब भी खेल वाले भाई साहब से एक कदम आगे निकले और गांवों के ओलम्पिक की आड़ में होने वाले खेल को उजागर करने में बड़े साहब से लेकर सीएमओ तक कोई कसर नहीं छोड़ी। यह दीगर बात है कि इस खेल का खामियाजा साहब को रवानगी से चुकाना पड़ा। अब साहब देवताओं की सार संभाल करने वाले महकमे में खेलों से दूर रहने की प्रार्थना करने में जुट गए हैं।


नजरें यूपी की तरफ

सूबे में भगवा वाले भाई लोगों की नजरें अब पड़ोसी प्रांत की तरफ टिकी हुई है। टिके भी क्यों नहीं, यूपी में होने वाले चुनावों के नतीजों पर ही अपने सूबे के नेताओं का भाग्य जो टिका है। सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में बने कमल वाली पार्टी के ठिकाने पर चर्चा है कि यूपी में होने वाली जंग में कमल कम खिलता है, तो दिल्ली वाले मोटा भाई और छोटा भाई के साथ ही भारती भवन में चिंतन-मंथन करने के सिवाय कोई चारा नहीं बचेगा। मंथन के बाद जो अमृत निकलेगा, उसमें मैडम के सिवाय किसी अन्य को वरदान मिलने की संभावना के बारे में सोचना भी बेइमानी होगी।


किसको क्या मिला

सूबे में संडे को दिन भर हर गली और चौराहों पर एक चर्चा खूब चली। चर्चा भी छोटी-मोटी नहीं, बल्कि कैबिनेट एक्सटेंशन को लेकर है। हर कोई किसी से पूछने में लगा था कि आखिर किसको क्या मिला। न कोई ड्रॉप हुआ और न ही सामने वालों की मंशा पूरी हुई। राज का काज करने वाले भी चटकारे लेकर बतियाते हैं कि जब ये ही होना था, तो डेढ़ साल तक सांस ऊपर-नीचे कराने क्या जरूरत थी। जोड़-बाकी और गुणा-भाग में लगे भाई लोगों के भी माजरा समझ के बाहर है, चूंकि उनके भी समझ में नहीं आया कि आखिर किसको क्या मिला।

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तेवर पीसीसी चीफ के

आजकल हाथ वालों के साथ साथ भगवा में भी पीसीसी चीफ के तेवरों को लेकर खुसरफुसर हो रही है। राज का काज करने वाले भी लंच केबिन में अपने हिसाब से अर्थ निकाल रहे हैं। पीसीसी चीफ लक्ष्मणगढ़ वाले गोविन्दजी की जुबान खुलती है, तो उसका असर सीधे दिन में राज की कुर्सी के सपने देखने वालों पर दिखाई देता है। इतनी तेज गति से जुबान तो नाथद्वारा वाले प्रोफेसर और झुंझुनूं वाले डॉक्टर साहब की भी नहीं चली। हाथ वाले भाई लोग भी नहीं समझ पा रहे हैं कि माजरा क्या है। भगवा वाले भी इधर उधर सूंघने की कोशिश कर रहे हैं। इंदिरा गांधी भवन में आने वाले गांधी टोपी वालों का तर्क है कि गोविन्दजी भाई साहब तो केवल मोहरा है, इशारा और कहीं से हैं।


इंतजार आंख फूटने का

आजकल सरदार पटेल मार्ग स्थित भगवा वालों के दफ्तर में एक किस्सा जोरों पर है। वहां आने वाले हर किसी को चटकारे लेकर सुनाया जाता है। हमें भी भाई साहब ने सुनाया तो हंसे बिना नहीं रह सके। भाई साहब ने सुनाया कि आजकल यहां तू मेरी आंख फोड़, मैं तेरी फोडंू वाला किस्सा चल रहा है। तिगड़ी ने आमेर वाले भाई साहब के खिलाफ आवाज उठाई, तो भाई साहबों ने ध्रियावद और वल्लभनगर के रिजल्ट का अड़ंगा ला दिया। अब दोनों खेमे एक-दूसरे की आंख फोड़ने के इंतजार में हैं।
(यह लेखक के अपने विचार हैं)

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