बाल श्रमिकों की बढ़ती संख्या चिंताजनक

बच्चों को झेलना पड़ता है मानसिक आघात

बाल श्रमिकों की बढ़ती संख्या चिंताजनक

भारत में तमाम आर्थिक विकास के बावजूद निर्धनता एक बड़ी समस्या है। भारत की एक तिहाई से अधिक आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करती है। रहने की खराब स्थिति, आय के निम्न स्तर और रोजगार की कमी के कारण निर्धन परिवारों के पास अपने बच्चों को पढ़ाने के बजाए काम पर रखने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

बच्चे देश का वर्तमान ही नहीं बल्कि भविष्य भी होते हैं। किसी देश के बच्चे वर्तमान में जितने महफूज व सुविधा सम्पन्न होंगे, जाहिर है कि उस देश का भविष्य भी उतना ही उज्ज्वल होगा। लेकिन जो सपने हमारे महापुरुषों ने बच्चों के खुशहाल जीवन को लेकर देखे थे, वे अब सवाल की शक्ल ले चुके हैं। यह दुर्भाग्य ही है कि निरंतर विकास की राह में गतिमान भारत में आज भी करोड़ों बच्चे दो जून की रोटी के लिए मोहताज हैं। जिस उम्र में बच्चों के हाथों में स्कूल जाने के लिए किताबों से भरा बस्ता होना चाहिए, उस उम्र में उनके सिर पर मजदूरी का बोझा है। बाल श्रम अधिनियम के मुताबिक देश में 14 वर्ष से कम बच्चों से मजदूरी व जोखिम वाला काम करवाना अपराध है, इसके बावजूद बच्चों से जोखिम वाले काम करवाने का सिलसिला बदस्तूर जारी है। गौरतलब है कि देश में 8.3 मिलियन से अधिक बाल मजदूर हैं, जिनकी उम्र 5 से 14 साल के बीच है। संयुक्त राष्ट्र की संस्था अंतरराष्ट्रिय श्रम संगठन बाल श्रम को ऐसे काम के रूप में परिभाषित करता है जो बच्चों को उनके बचपन, उनकी क्षमता और उनकी गरिमा से वंचित करता है तथा जो शारीरिक और मानसिक विकास के लिए हानिकारक है। बाल श्रम कई अलग-अलग गतिविधियों जैसे कृषि, निर्माण, खनन और घरेलू सेवा में फैला हुआ है।

अलग-अलग कारणों से बच्चों को बाल श्रम के लिए मजबूर किया जाता है। प्रवास, आपात स्थिति, अच्छे काम की उपलब्धता की कमी और निर्धनता जिसे सबसे अधिक प्रभावित करने वाले कारक के रूप में जाना जाता है। इसके अलावा बच्चों पर अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए भारी तनाव होता है, क्योंकि ज्यादातर मामलों में इनके पास आय का कोई अन्य साधन नहीं होता है। बाल श्रम के कारण छोटी उम्र में बच्चों को शारीरिक व मानसिक आघात झेलना पड़ता है। हिंसा का सामना करने वाले ये बच्चे बड़े होकर मानसिक बीमारियों जैसे अवसाद, अपराधबोध, चिंता, आत्मविश्वास की कमी और निराशा के शिकार हो जाते हैं। बाल श्रम भारत के साथ अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और यहां तक कि यूरोप में कई जगहों पर मौजूद हैं। भारत के मुख्य राज्य जहां बाल श्रम मौजूद है, वे बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्टÑ हैं। ये वे राज्य हैं जहां देश की कुल आधे से अधिक बाल श्रमिक आबादी काम करती है। उत्तर प्रदेश में बाल श्रमिकों की संख्या सबसे अधिक है, जिसमें भारत के 20 प्रतिशत से अधिक बाल श्रमिक अकेले इस राज्य के निवासी हैं। इनमें से अधिकतर बाल मजदूर रेशम उद्योग में कार्यरत हैं जो इस क्षेत्र में प्रचलित है। पांच साल से कम उम्र के बच्चे सप्ताह में सात दिन, दिन में बारह घंटे से अधिक कारखानों में काम करते हैं।

भारत में तमाम आर्थिक विकास के बावजूद निर्धनता एक बड़ी समस्या है। भारत की एक तिहाई से अधिक आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करती है। रहने की खराब स्थिति, आय के निम्न स्तर और रोजगार की कमी के कारण निर्धन परिवारों के पास अपने बच्चों को पढ़ाने के बजाए काम पर रखने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। अक्सर आर्थिक दबाव को कम करने और अतिरिक्त धन प्राप्त करने के लिए इन बच्चों को उनके माता-पिता द्वारा बाल तस्करों के हाथों बेच दिया जाता है। भारत में बाल श्रम से निपटने के लिए पिछले कुछ दशकों में कई कानून लागू हुए हैं। इन कानूनों में 1976 का बंधुआ श्रम (उन्मूलन) प्रणाली अधिनियम और 2016 का बाल श्रम (निषेध और विनियमन) संशोधन विधेयक शामिल है। भारत सरकार ने बच्चों के शोषण की जांच के लिए गुरुपदस्वामी जैसी समितियों और संस्थानों का भी गठन किया है। श्रम और रोजगार मंत्रालय ने भी 1980 के दशक के उत्तरार्ध से बाल श्रमिकों के पुनर्वास के लिए कई परियोजनाओं को लागू किया है। बाल श्रम को समाप्त करने की लड़ाई में सरकार की मदद करने के लिए केयर इंडिया, चाइल्ड राइट्स एंड यू ए हैंड इन हैंड इंडिया जैसे गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) की स्थापना की गई है। कड़वी हकीकत है हमारे समाज ने किसी न किसी तरह बाल श्रम को एक सामाजिक आदर्श के रूप में स्वीकार किया है।

जब हम एक समाज के रूप में इस शोषणकारी और अपमानजनक प्रथा के प्रति जीरो टॉलरेंस का रवैया अपनाएंगे, तभी हम इसे समाप्त कर पाएंगे। इन बच्चों को बचाना ही एकमात्र समाधान नहीं है। इसके लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। भारत में बाल श्रम व इसके शोषण को रोकने के लिए बाल श्रम के खिलाफ  कानूनों को और अधिक सख्ती से लागू किया जाना चाहिए। इसके अलावा भारत में बाल श्रम को समाप्त करने के लिए गरीबी और असमानता को दूर करना महत्वपूर्ण है। गरीबी और बाल श्रम के दुष्चक्र को तोड़ने के लिए शिक्षा तक पहुंच जरूरी है। समझना होगा की कोई देश तभी विकास के नित नए सोपान तय कर सकता है, जब उस देश के बच्चे शारीरिक, मानसिक व शैक्षणिक रूप से समृद्धशाली हो। बाल श्रम, बंधुआ मजदूरी, बाल विवाह, बाल वेश्यावृत्ति आदि कुछ ऐसी सामाजिक बुराइयां हैं, जिनकी बुनियाद समाज में व्याप्त अशिक्षा, गरीबी और बेरोजगारी से बनती है।              

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-देवेन्द्रराज सुथार
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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