सतरंगी सियासत

ईरान में हिजाब विरोधी आंदोलन नित नए आयाम गढ़ रहा

सतरंगी सियासत

बिहार में नीतीश कुमार ने जब भाजपा को छोड़कर राजद और कांग्रेस का दामन थामा था। तब उनकी ही पार्टी जदयू ने संकेत देना शुरू कर दिया था। नीतीश पीएम मटेरियल।

सवाल टाइमिंग का!
ईरान में हिजाब विरोधी आंदोलन नित नए आयाम गढ़ रहा। वहां आज जो कुछ भी हो रहा। वह अस्सी के दशक की क्रांति के ठीक विपरीत हो रहा। वहीं, बीते सप्ताह कतर में फीफा वर्ल्ड कप की जोरदार शुरूआत हो गई। कतर सरकार द्वारा आयोजन से पूर्व दुनियां से किए गए वादों और हालिया उसके द्वारा उठाए गए कदमों में अंतर नजर आया। सो, सवाल उठे। इसी बीच, भारत के भगोड़े उपदेशक जाकिर नायक के पहुंचते ही विवाद शुरू हो गया। भारत की कड़ी आपत्ति के बाद बकायदा कतर सरकार की सफाई भी आई। लेकिन पूर्व में कतर भारत के संवेदनशील मामलों में दखल करता हुआ नजर आया। असल में, फीफा वर्ल्ड कप की तैयारियों में कतर काफी पैसा निवेश कर चुका। जबकि अब वसूली का समय। इसी बीच, जाकिर नाईक का वहां पहुंचना। अपने आप में संकेत। इसीलिए सवाल टाइमिंग का।

न भैंस आई, न...
एक कहावत। न भैंस आई, न बाड़ लगी ़... लेकिन जुलाहों में लठ्मलठ। यही हाल कांग्रेस की हिमाचल इकाई में हो रहा। जहां विधानसभा का मतदान हो चुका। अब सीएम पद पर कौन बैठेगा। इसकी दौड़ शुरू हो गई। संभावित दावेदार अपनी दावेदारी पक्की करने के लिए राजधानी दिल्ली तक दौड़ लगा रहे। बात सिर्फ सुखविंदर सुक्खू और पीसीसी चीफ प्रतिभा सिंह की ही नहीं। बल्कि मुकेश अग्निहोत्री एवं कर्नल धनीरम भी पीछे नहीं। इन सबको आस। कांग्रेस सत्ता में लौट रही। इसलिए अपनी पोजिशन मजबूत कर रहे। सो, इसके लिए आलाकमान को साधने की जुगत कर रहे। लेकिन सवाल आठ दिसंबर का। जिस दिन मतपेटियां खुलेंगी। तो आम जनता किसे आशीर्वाद देगी। यह देखने वाली बात। उधर, भाजपा में तो सब कुछ तय सा लग रहा। लेकिन कांग्रेस में वीरभद्र सिंह के जाने के बाद इस बार समीकरण्र बदले हुए।

दांव पर प्रतिष्ठा ...
मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव मानो अखिलेश यादव के लिए प्रतिष्ठा का सवाल। जहां उनकी पत्नी डिंपल यादव मैदान में। सामने भाजपा के रघुराज सिंह शाक्य। जो अखिलेश के चाचा शिवपाल यादव के कभी शागिर्द रहे। सामाजिक-जातिगत समीकरण बता रहे। मुकाबला कांटे का। नेताजी की विरासत को अखिलेश आगे ले जा पाएंगे या नहीं। यह भी चुनावी नजीते से तय हो जाएगा। इसी बीच, शिवपाल यादव की नाराजगी के समाचार। सो, अखिलेश में घबराहट। कहीं अंदरखाने आखिरी मौके पर खेल नहीं हो जाए। क्योंकि सपा आजमगढ़ और रामपुर जैसी परंपरागत सीटों को भी बचा नहीं पाई। इसलिए अखिलेश के लिए यहां करो या मरो के हालात। चुनाव हारे तो कहीं उद्धव ठाकरे जैसे हालात न हो जाए। ऐसे में, कही यूपी में सपा भी उसी राह पर न चल दे। क्योंकि नेजाती के जाने के बाद मोदीजी-योगीजी कोई राजनीतिक रहम करेंगे। इसमें संदेह!

अंतिम बार!
अगले सप्ताह भारत जोड़ो यात्रा मरूधरा में प्रवेश कर रही। इसके पहले ही सीएम गहलोत का बयान आ गया। कहा, जिन्होंने सरकार गिराने की अगुवाई की। उन्हें कैसे सत्ता क्यों सौंपी जाए? क्योंकि चर्चा यह कि गुजरात चुनाव के बाद किसी बड़े फैसले के आसार। सीएम गहलोत का बयान भी इसी की निरंतरता में माना जा रहा। सो, उनकी भी तैयारी! आलाकमान कोई फैसला ले, उसके पहले उसे आगाह करना उनका काम। यदि विधायक कुछ भी करें। तो जिम्मेदारी उनकी नहीं होगी। इसीलिए बयान के जरिए खुलकर जाहिर कर दिया। उधर, पायलट लगातार अपने समर्थकों को दिलासा दे रहे। थोड़ा सब्र रखें। सब कुछ अच्छा होने वाला। फिलहाल यात्रा को सफल बनावाएं। कोई गड़बड़ न हो। इसका भी पूरा ख्याल रखें। वैसे जूनियर बैंसला यानी विजय सिंह बैंसला सामने आ चुके। कहा, सचिन पायलट को सीएम बनाएं। वरना यात्रा को बाधित किया जाएगा।

डेमेज कंट्रोल!
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के आक्रामक तेवरों से कांग्रेस नेतृत्व सकते में। सीएम गहलोत की भाष उनके स्वभाव के विपरीत बताई जा रही। इसीलिए तुरंत जयराम रमेश के दो बयान आए। संतुलन साधने की कोशिश की जा रही। मतलब, बीच के रास्ते की जुगत। लेकिन क्या उसका समय निकल चुका? पायलट का भी संयत भाषा में जवाब आया। क्या उन्हें अनुमान कि आलाकमान क्या करने जा रहा? इसीलिए इंतजार का विकल्प चुना। फिर डेमेज कंट्रोल के लिए केसी वेणुगोपाल जयपुर आ रहे। लेकिन क्या वह अपना टास्क पूरा कर पाएंगे। वैसे अजय माकन का इस्तीफा फ्रेशर टेक्टिस माना जा रहा! किसके लिए? फिर भारत जोड़ो यात्रा को सही सलामत पूरी करवाने का दबाव। इसीलिए बयानबाजी की टाइमिंग बेहद महत्वपूर्ण। यदि कुछ भी असहज करने वाला हुआ तो? क्योंकि अभी तक किसी भी राज्य में कांग्रेस को परेशानी नहीं हुई। फिर राजस्थान तो पार्टी शासित।

मिशन कहां?
बिहार में नीतीश कुमार ने जब भाजपा को छोड़कर राजद और कांग्रेस का दामन थामा था। तब उनकी ही पार्टी जदयू ने संकेत देना शुरू कर दिया था। नीतीश पीएम मटेरियल। इसके लिए वह नई दिल्ली आकर कांग्रेस नेतृत्व समेत तमाम विपक्षी दिग्गजों से मिले भी। लेकिन जल्द ही समझ आ गया। दिल्ली के चक्कर में पटना की कुर्सी से भी रूखसती के आसार। सो, संभल गए और शांत बैठ गए। राजद और तेजस्वी की ओर से नीतीश को संकेत दिया गया। आप दिल्ली की सोचें। पटना का हम देख लेंगे। लेकिन जब दिल्ली को टटोला, तो शांत हो गए। हां, यह काम तो ममता दीदी ने भी किया था। इसके लिए नीतीश वाला काम उन्होंने भी किया। लेकिन जल्द ही समझ आ गया। डगर इतनी आसान नहीं। क्योंकि सबसे पहले अपने ही दगा देंगे। सो, दोनों का मिशन दिल्ली फेल तो नहीं?

भारत की परेशानी!
पड़ोसी पाक में जनरल आसिफ मुनीर नए सेनाध्यक्ष नियुक्त हो गए। उन्हें जनरल कमर बाजवा का खास शागिर्द बताया जा रहा। साथ में, पुलवामा के वह मास्टर माइंड भी। तिस पर नए पाक जनरल अपनी बदनाम खुफिया एजेंसी आईएसआई के डीजी भी रह चुके। सो, अनुमान लगाया जा रहा। भारत की परेशानी बढ़ेगी और सीमा पर तनाव के कयास। लेकिन हालात इसके उलट भी। सबसे पहले उन्हें पूर्व पीएम इमरान खान से भी निपटना होगा। जो पीएम पद से हटाए जाने क बाद से सड़कों पर। वह सेना पर भी सीधे निशाना साधने से नहीं चूक रहे। लेकिन भारत में भी नेतृत्व और उसकी सोच परंपरागत नहीं। बल्कि हिसाब बराबर करने वाला। बात चाहे पुलवामा की हो या उरी की। ऐसे में पाक के नए जनरल अपने घर को ठीक करेंगे या सीमा पार इधर कुछ हरकत करवाएंगे। यह देखने वाली बात!

-दिल्ली डेस्क 

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