छत्रीवाली : शर्म क्यों जब प्यार है

फिल्म छत्रीवाली अपना कोई जादू नहीं चलाती

छत्रीवाली : शर्म क्यों जब प्यार है

क्या कंडोम और सेक्स एजुकेशन को अपनाने का नजरिया बदलेगा। क्या ऋषि और सान्या की लव स्टोरी में इस झूठ से कुछ ट्विस्ट आएगा। क्या उनकी शादी बचेगी। यही कहानी है छत्रीवाली की, जो महिलाओं को कंडोम यूज कर खुश रहने की चाभी से रूढ़ीवादी ताला खोलने की मुहिम चलाती है, क्योंकि ये जादू नहीं केमिस्ट्री है।

शादी केमिस्ट्री और कंडोम वाली कहानी है छत्रीवाली, जो करनाल की सान्या है। एक केमिस्ट्री टीचर जो ट्यूशन पढ़ाती है और साथ नौकरी ढूंढ रही है। वो मिलती भी है तो कैंडो कंडोम की फैक्ट्री में क्वॉलिटी कंट्रोलर की। मरता क्या न करता नौकरी जैसी भी हो मिली वही बहुत है, लेकिन ऐसी नौकरी दुनिया को क्यों बताएं। इसलिए सान्या अपनी नौकरी हर एक से छुपाती है। अपनी मां से भी, जो जुएं में शकुनी मामा की भी मां है। ऐसे में समय से मिलता है ऋषि और दोनों को प्यार हो जाता है। 12वीं फेल ऋषि जो कालरा पूजा भंडार चलाता है। लव मैरिज अरेंज मैरिज बन जाती है। ऋषि का भाई बायोलॉजी पड़ाता है, लेकिन लड़के-लड़कियों को सेक्सुअल एजुकेशन पढ़ाने में झिझकता है और लड़कियों को उससे दूर रखता है। अपनी बेटी तक को पढ़ाने में उसे एतराज है। उसकी बीवी 45 की होने की दुआ मांगती है, ताकि पिल्स और अबॉर्शन से निजात मिले क्योंकि भाइयों को कंडोम पसंद नहीं, जिसका खामियाजा पत्नी को अपनी जान जोखिम में डाल चुकाना पड़ता है । इन्हीं मुद्दों को दर्शाती है छतरीवाली। क्या सान्या का कंडोम वाली जॉब का राज खुलेगा। अगर खुला तो क्या होगा। क्या कंडोम और सेक्स एजुकेशन को अपनाने का नजरिया बदलेगा। क्या ऋषि और सान्या की लव स्टोरी में इस झूठ से कुछ ट्विस्ट आएगा। क्या उनकी शादी बचेगी। यही कहानी है छत्रीवाली की, जो महिलाओं को कंडोम यूज कर खुश रहने की चाभी से रूढ़ीवादी ताला खोलने की मुहिम चलाती है, क्योंकि ये जादू नहीं केमिस्ट्री है। औरत को करना है प्यार तो कंडोम को करो स्वीकार। इस मुद्दे को उठाती है छत्रीवाली। कथा पटकथा लचर है, जिस मुद्दे पर ये फिल्म बनी वो हेलमेट और छतरी जैसी फिल्मों की कॉपी लगती है। किरदार भी ठूंसे हुए लगते हैं। संवाद में भी दम नहीं है। अभिनय में रकुल प्रीत सिंह ने जितनी अपने किरदार में जान भर सकती थी उसने भरा है।  सुमित व्यास का रोल भी उनकी अभिनय क्षमता के अनुरूप नहीं रहा। सतीश कौशिक के पास भी करने लायक कुछ नहीं है और राकेश बेदी प्रभावहीन लगे। डॉली और राजेश जैसे कलाकारो को भी वेस्ट किया है। निर्देशक तेजस कहानी कहने में चुके है। कॉमेडी का तड़का और सोशल मैसेज दोनों ही मसाले फीके हैं। सिनेमेटोग्रॉफी ठीक ठाक है पर दर्शक न किरदार से जुड़ते हैं न कहानी दिल छूती है। संगीत औसत है। ओवरऑल जी5 पर स्ट्रीम फिल्म छत्रीवाली अपना कोई जादू नहीं चलाती। 

-दानिश राही

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